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________________ ६६६ • अर्चयस्य हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • समयका ज्ञान ही नहीं रहा अतः राजाधिराज कुबेरने 'कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमासे बिछुड़ गया। मुनि श्रेष्ठ ! इस समय किसी शुभ कर्मके प्रभावसे मैं आपके निकट आ पहुँचा हूँ। संतोंका चित्त स्वभावतः परोपकारमें लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधीको कर्तव्यका उपदेश दीजिये । मार्कण्डेयजीने कहा- तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, असत्य भाषण नहीं किया है; इसलिये मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रतका उपदेश करता हूँ। तुम आषाढ़ के कृष्णपक्षमें 'योगिनी' एकादशीका व्रत करो। इस व्रतके पुण्यसे तुम्हारी कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायगी। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं— ऋषिके ये वचन सुनकर हेममाली दण्डकी भाँति मुनिके चरणोंमें पड़ गया। मुनिने उसे उठाया, इससे उसको बड़ा हर्ष हुआ । मार्कण्डेयजीके उपदेशसे उसने योगिनी एकादशीका व्रत किया, जिससे उसके शरीरकी कोढ़ दूर हो गयी। मुनिके कथनानुसार उस उत्तम व्रतका अनुष्ठान करनेपर वह पूर्ण सुखी हो गया। नृपश्रेष्ठ ! यह योगिनीका व्रत ऐसा ही [ संक्षिप्त पद्मपुराण बताया गया है। जो अट्ठासी हजार ब्राह्मणोंको भोजन कराता है, उसके समान ही फल उस मनुष्यको भी मिलता है, जो योगिनी एकादशीका व्रत करता है। 'योगिनी' महान् पापको शान्त करनेवाली और महान् पुण्य फल देनेवाली है। इसके पढ़ने और सुननेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। युधिष्ठिरने पूछा - भगवन्! आषाढ़के शुरूपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बतलानेकी कृपा करें। भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन्! आषाढ़ शुपक्षकी एकादशीका नाम 'शयनी' है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान् पुण्यमयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली सब पापोंको हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषाढ़ शुक्लपक्षमें शयनी एकादशीके दिन जिन्होंने कमल-पुष्पसे कमललोचन भगवान् विष्णुका पूजन तथा एकादशीका उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओंका पूजन कर लिया। हरिशयनी एकादशीके दिन मेरा एक स्वरूप राजा बलिके यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागरमें शेषनागकी शय्यापर तबतक शयन करता है, जबतक आगामी कार्तिककी एकादशी नहीं आ जाती; अतः आषाढशुक्ला एकादशीसे लेकर कार्तिकशुक्ला एकादशीतक मनुष्यको भलीभाँति धर्मका आचरण करना चाहिये। जो मनुष्य इस व्रतका अनुष्ठान करता है, वह परम गतिको प्राप्त होता है, इस कारण यत्त्रपूर्वक इस एकादशीका व्रत करना चाहिये । एकादशीको रातमें जागरण करके शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान् विष्णुकी भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये। ऐसा करनेवाले पुरुषके पुण्यकी गणना करनेमें चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। राजन् ! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशीके उत्तम व्रतका पालन करता है, वह जातिका चाण्डाल होनेपर भी संसारमें सदा मेरा प्रिय करनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाशके पत्तेपर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासेमें भगवान् विष्णु सोये रहते हैं; इसलिये मनुष्यको भूमिपर
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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