SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 655
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरखण्ड] • फाल्गुन मासको 'विजया' तथा 'आमलकी' एकादशीका माहात्म्य . ६५५ ... ... .............. ... करे। कलशके सामने बैठकर वह सारा दिन उत्तम वसिष्ठजीने कहा-महाभाग ! सुनो-पृथ्वीपर कथा-वार्ता आदिके द्वारा व्यतीत करे तथा रातमें भी वहाँ 'आमलकी'की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, यह बताता हूँ। जागरण करे । अखण्ड व्रतकी सिद्धिके लिये घीका दीपक आमलकी महान् वृक्ष है, जो सब पापोंका नाश करनेवाला जलाये। फिर द्वादशीके दिन सूर्योदय होनेपर उस कलशको है। भगवान् विष्णुके थूकनेपर उनके मुखसे चन्द्रमाके किसी जलाशयके समीप-नदी, झरने या पोखरेके तटपर समान कान्तिमान् एक विन्दु प्रकट हुआ। वह विन्दु ले जाकर स्थापित करे और उसकी विधिवत् पूजा करके पृथ्वीपर गिरा। उसीसे आमलकी (आँवले) का महान् देव-प्रतिमासहित उस कलशको वेदवेता ब्राह्मणके लिये वृक्ष उत्पन्न हुआ। यह सभी वृक्षोंका आदिभूत कहलाता दान कर दे। महाराज ! कलशके साथ ही और भी बड़े- है। इसी समय समस्त प्रजाको सृष्टि करनेके लिये बड़े दान देने चाहिये । श्रीराम ! आप अपने यूथपतियोंके भगवान्ने ब्रह्माजीको उत्पन्न किया। उन्हींसे इन प्रजाओंकी साथ इसी विधिसे प्रयलपूर्वक 'विजया'का व्रत कीजिये। सृष्टि हुई । देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, नाग तथा इससे आपकी विजय होगी। निर्मल अन्तःकरणवाले महर्षियोंको ब्रह्माजीने जन्म दिया। ब्रह्माजी कहते है-नारद ! यह सुनकर उनमेंसे देवता और ऋषि उस स्थानपर आये, जहाँ श्रीरामचन्द्रजीने मुनिके कथनानुसार उस समय 'विजया' विष्णुप्रिया आमलकीका वृक्ष था। महाभाग ! उसे एकादशीका व्रत किया । उस व्रतके करनेसे श्रीरामचन्द्रजी देखकर देवताओंको बड़ा विस्मय हुआ। वे एक-दूसरेपर विजयी हुए। उन्होंने संग्राममें रावणको मारा, लङ्कापर दृष्टिपात करते हुए उत्कण्ठापूर्वक उस वृक्षकी ओर देखने विजय पायो और सीताको प्राप्त किया। बेटा ! जो मनुष्य लगे और खड़े-खड़े सोचने लगे कि प्लक्ष (पाकर) आदि इस विधिसे व्रत करते हैं, उन्हें इस लोकमें विजय प्राप्त वृक्ष तो पूर्व कल्पकी ही भांति है, जो सब-के-सब हमारे होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है। परिचित हैं, किन्तु इस वृक्षको हम नहीं जानते। उन्हें इस भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-युधिष्ठिर ! इस प्रकार चिन्ता करते देख आकाशवाणी हुई–'महर्षियो ! कारण 'विजया'का व्रत करना चाहिये। इस प्रसङ्गको यह सर्वश्रेष्ठ आमलकीका वृक्ष है, जो विष्णुको प्रिय है। पढ़ने और सुननेसे वाजपेय यज्ञका फल मिलता है। इसके स्मरणमात्रसे गोदानका फल मिलता है। स्पर्श युधिष्ठिरने कहा-श्रीकृष्ण ! मैंने विजया करनेसे इससे दूना और फल भक्षण करनेसे तिगुना पुण्य एकादशीका माहात्म्य, जो महान् फल देनेवाला है, सुन प्राप्त होता है। इसलिये सदा प्रयत्नपूर्वक आमलकीका लिया। अब फाल्गुन शुक्लपक्षकी एकादशीका नाम और सेवन करना चाहिये । यह सब पापोंको हरनेवाला वैष्णव माहात्म्य बतानेकी कृपा कीजिये। वृक्ष बताया गया है। इसके मूलमें विष्णु, उसके ऊपर भगवान् श्रीकृष्ण बोले-महाभाग धर्मनन्दन ! ब्रह्मा, स्कन्ध परमेश्वर भगवान् रुद्र, शाखाओंमें मुनि, सुनो-तुम्हें इस समय वह प्रसङ्ग सुनाता हूँ, जिसे राजा टहनियोंमें देवता, पत्तोंमें वसु, फूलोंमें मरुद्गण तथा मान्धाताके पूछनेपर महात्मा वसिष्ठने कहा था। फाल्गुन फलोंमें समस्त प्रजापति वास करते हैं। आमलकी शुक्लपक्षको एकादशोका नाम 'आमलकी' है। इसका सर्वदेवमयी बतायी गयी है।* अतः विष्णुभक्त पुरुषोंके पवित्र व्रत विष्णुलोककी प्राप्ति करानेवाला है। लिये यह परम पूज्य है।' मान्धाताने पूछा-द्विजश्रेष्ठ ! यह 'आमलकी' ऋषि बोले-[अव्यक्त स्वरूपसे बोलनेवाले कब उत्पन्न हुई, मुझे बताइये। महापुरुष ! ] हमलोग आपको क्या समझे-आप कौन * तस्या मूले स्थितो विष्णुस्तदूध्वं च पितामहः । स्कन्ये च भगवान् रुद्रः संस्थितः परमेश्वरः ।। शास्त्रामु मुनयः सर्वे प्रशाखासु च देवताः । पर्णेषु वसवो देवाः पुष्पेषु मरुतस्तथा ॥
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy