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________________ उत्तरखण्ड ] • मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी 'मोक्षा' एकादशीका माहात्म्य . करते ही भगवान् विष्णुके शरीरसे एक कन्या प्रकट हुई, श्रीविष्णु बोले-कल्याणी ! तुम जो कुछ जो बड़ी ही रूपवती, सौभाग्यशालिनी तथा दिव्य अस्त्र- कहती हो, वह सब पूर्ण होगा। शस्त्रोंसे युक्त थी। वह भगवान्के तेजके अंशसे उत्पन्न भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-युधिष्ठिर ! ऐसा हुई थी। उसका बल और पराक्रम महान् था। वर पाकर महाव्रता एकादशी बहुत प्रसन्न हुई। दोनों युधिष्ठिर ! दानवराज मुरने उस कन्याको देखा। कन्याने पक्षोंकी एकादशी समान रूपसे कल्याण करनेवाली है। युद्धका विचार करके दानवके साथ युद्ध के लिये याचना इसमें शुक्ल और कृष्णका भेद नहीं करना चाहिये। यदि की। युद्ध छिड़ गया। कन्या सब प्रकारकी युद्धकलामें उदयकालमें थोड़ी-सी एकादशी, मध्यमें पूरी द्वादशी और निपुण थी ! वह मुर नामक महान् असुर उसके हुंकार- अन्तमे किश्चित् त्रयोदशी हो तो वह 'त्रिस्पृशा' एकादशी मात्रसे राखका ढेर हो गया। दानवके मारे जानेपर कहलाती है। वह भगवान्को बहुत ही प्रिय है। यदि एक भगवान् जाग उठे। उन्होंने दानवको धरतीपर पड़ा देख, त्रिस्पृशा एकादशीको उपवास कर लिया जाय तो एक पूछा-'मेरा यह शत्रु अत्यन्त उम्र और भयङ्कर था, सहस्त्र एकादशीव्रतोंका फल प्राप्त होता है तथा इसी प्रकार किसने इसका वध किया है?' द्वादशीमें पारण करनेपर सहस्रगुना फल माना गया है। कन्या बोली-स्वामिन् ! आपके ही प्रसादसे अष्टमी, एकादशी, षष्ठी, तृतीया और चतुर्दशी-ये यदि मैंने इस महादैत्यका वध किया है। पूर्व तिथिसे विद्ध हों तो उनमें व्रत नहीं करना चाहिये। श्रीभगवान्ने कहा-कल्याणी ! तुम्हारे इस परवर्तिनी तिथिसे युक्त होनेपर ही इनमें उपवासका विधान कर्मसे तीनों लोकोंके मुनि और देवता आनन्दित हुए हैं! है। पहले दिन दिन और रातमें भी एकादशी हो तथा अतः तुम्हारे मनमें जैसी रुचि हो, उसके अनुसार मुझसे दूसरे दिन केवल प्रातःकाल एक दण्ड एकादशी रहे तो कोई वर माँगो; देवदुर्लभ होनेपर भी वह वर मैं तुम्हें पहली तिथिका परित्याग करके दूसरे दिनकी द्वादशीयुक्त +गा, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। एकादशीको ही उपवास करना चाहिये। यह विधि मैंने वह कन्या साक्षात् एकादशी ही थी। उसने कहा, दोनों पक्षोंकी एकादशीके लिये बतायी है। जो मनुष्य 'प्रभो ! यदि आप प्रसन्न हैं तो मैं आपकी कृपासे सब एकादशीको उपवास करता है, वह वैकुण्ठधाममें, जहाँ तीर्थोंमें प्रधान, समस्त विघ्नोंका नाश करनेवाली तथा साक्षात् भगवान् गरुडध्वज विराजमान हैं, जाता है। जो सब प्रकारकी सिद्धि देनेवाली देवी होऊँ । जनार्दन ! जो मानव हर समय एकादशीके माहात्म्यका पाठ करता है, लोग आपमें भक्ति रखते हुए मेरे दिनको उपवास करेंगे, उसे सहस्र गोदानोंके पुण्यका फल प्राप्त होता है। जो दिन उन्हें सब प्रकारकी सिद्धि प्राप्त हो। माधव ! जो लोग या रातमें भक्तिपूर्वक इस माहात्म्यका श्रवण करते हैं, वे उपवास, नक्त अथवा एकभुक्त करके मेरे व्रतका पालन निस्सन्देह ब्रह्महत्या आदि पापोंसे मुक्त हो जाते हैं। करें, उन्हें आप धन, धर्म और मोक्ष प्रदान कौजिये।' एकादशीके समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है। मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी 'मोक्षा' एकादशीका माहात्म्य युधिष्ठिर बोले-देवदेवेश्वर ! मैं पूछता श्रीकृष्णने कहा-नृपश्रेष्ठ ! मार्गशीर्ष मासके हूँ-मार्गशीर्ष मासके शुक्लपक्षमें जो एकादशी होती है, कृष्णपक्षमें 'उत्पत्ति' नामकी एकादशी होती है, जिसका उसका क्या नाम है ? कौन-सी विधि है तथा उसमें किस वर्णन मैंने तुम्हारे समक्ष कर दिया है। अब शुक्लपक्षकी देवताका पूजन किया जाता है? स्वामिन् ! यह सब एकादशीका वर्णन करूँगा, जिसके श्रवणमात्रसे वाजपेय यथार्थरूपसे बताइये। यज्ञका फल मिलता है। उसका नाम है-'मोक्षा'
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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