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________________ उत्तरखण्ड ] • महाराज दशरथका शानका सतुष्ट करक लाकका कल्याण करना • . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . उपलब्ध होता है। तीनों काल स्नान करनेवाला मनुष्य अभीष्ट गतिकी प्राप्ति होती है, जो पवित्र धर्मका आचरण रूपवान् होता है । वायु पीकर रहनेवाला यज्ञका फल पाता करता है, वह स्वर्गलोकमें सम्मानित होता है । जो द्विजश्रेष्ठ है। जो उपवास करता है, वह चिरकालतक स्वर्गमें बृहस्पतिजीके इस पवित्र मतका स्वाध्याय करते हैं, उनकी निवास करता है। जो सदा भूमिपर शयन करता है, उसे आयु, विद्या, यश और बल-ये चार बातें बढ़ती हैं। महाराज दशरथका शनिको संतुष्ट करके लोकका कल्याण करना नारदजीने पूछा-सुरश्रेष्ठ ! शनैश्वरकी दी हुई देखकर शनि कुछ भयभीत हो हंसते हुए पीड़ा कैसे दूर होती है? यह मुझे बताइये। बोले- 'राजेन्द्र ! तुम्हारा महान् पुरुषार्थ शत्रुको भय महादेवजी बोले-देवर्षे ! सुनो, ये शनैश्चर पाय देवताओंमें प्रसिद्ध कालरूपी महान् ग्रह हैं। इनके मस्तकपर जटा है, शरीरमे बहुत-से रोएँ हैं तथा ये दानवोको भय पहुँचानेवाले हैं। पूर्वकालकी बात है, रघुवंशमें दशरथ नामके एक बहुत प्रसिद्ध राजा हो गये हैं। वे चक्रवर्ती सम्राट्, महान् वौर तथा सातों द्वीपोंके स्वामी थे। उन दिनों ज्योतिषियोंने यह जानकर कि शनैश्चर कृत्तिकाके अन्तमें जा पहुंचे हैं, राजाको सूचित किया'महाराज ! इस समय शनि रोहिणीका भेदन करके आगे बढ़ेंगे; यह अत्यन्त उप शाकटभेद नामक योग है, जो देवताओं तथा असुरोंके लिये भी भयंकर है। इससे बारह वर्षांतक संसारमें अत्यन्त भयानक दुर्भिक्ष फैलेगा।' यह सुनकर राजाने मन्त्रियोंके साथ विचार किया और वसिष्ठ आदि ब्राह्मणोंसे पूछा-द्विजवरो ! बताइये, इस संकटको रोकनेका यहाँ कौन-सा उपाय है?' वसिष्ठजी बोले-राजन् ! यह रोहिणी प्रजापति ब्रह्माजीका नक्षत्र है, इसका भेद हो जानेपर प्रजा कैसे रह पहुंचानेवाला है। मेरी दृष्टि में आकर देवता, असुर, सकती है। ब्रह्मा और इन्द्र आदिके लिये भी यह योग मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग-सब भाम हो जाते असाध्य है। है; किन्तु तुम बच गये। अतः महाराज ! तुम्हारे तेज और महादेवजी कहते है-नारद ! इस बातपर विचार पौरुषसे मैं संतुष्ट हूँ। वर मांगो; तुम अपने मनसे जो कुछ करके राजा दशरथने मनमें महान् साहसका संग्रह किया चाहोगे, उसे अवश्य दूंगा।' और दिव्यास्त्रीसहित दिव्य धनुष लेकर आरूढ हो बड़े दशरथने कहा-शनिदेव ! जबतक नदियाँ और वेगसे वे नक्षत्र-मण्डलमें गये। रोहिणीपृष्ठ सूर्यसे सवा समुद्र है, जबतक सूर्य और चन्द्रमासहित पृथ्वी कायम है, लाख योजन ऊपर है; वहाँ पहुँचकर राजाने धनुषको तबतक आप रोहिणीका भेदन करके आगे न बढ़े। साथ कानतक खींचा और उसपर संहाराषका संधान किया। ही कभी बारह वर्षोंतक दुर्भिक्ष न करें। वह अस्त्र देवता और असुरोंके लिये भयंकर था। उसे शनि बोले-एवमस्तु । A
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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