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________________ उत्तरखण्ड ] • अन्नदान, जलदान, तडाग-निर्माण, वृक्षारोपण तथा सत्यभाषण आदिकी महिमा • ६२३ अज्ञानतिमिरध्वंसिन् व्रतेनानेन केशव। देकर वस्त्राभूषण एवं केसरके द्वारा पूजनपूर्वक तीन प्रसादसमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥. ब्राह्मण-दम्पतीको भोजन कराये। घृत-मिश्रित खीरके 'देवेश्वर ! मैंने काम-क्रोधसे रहित होकर इस द्वारा यथेष्ट भोजन करानेके पश्चात् दक्षिणासहित पान, व्रतके द्वारा उपवास किया है। देवेश! आप ही मेरे फूल और गन्ध आदि दान करे। अपनी शक्तिके अनुसार शरणदाता है। देव ! जनार्दन ! इस व्रतको ग्रहण करके बाँसके अनेक पात्र बनवाकर उन्हें पके हुए नारियल, मैंने इसके जिस अङ्गकी पूर्ति न की हो, वह सब आपके पकवान, वस्त्र तथा भाँति-भाँतिके फलोंसे भरे। प्रसादसे पूर्ण हो जाय । कमलनयन ! आपको नमस्कार सपत्नीक आचार्यको वस्त्र पहनाये। दिव्य आभूषण देकर है। जलशायी नारायण ! आपको प्रणाम है। केशव ! चन्दन और मालासे उनका पूजन करे। फिर उन्हें सब आपके ही प्रसादसे मैंने इस व्रतका अनुष्ठान किया है। सामग्रियोंसे युक्त दूध देनेवाली गौ दान करे । गौके साथ अज्ञानान्धकारका विनाश करनेवाले केशव ! आप इस दक्षिणा, वस्त्र, आभूषण, दोहनपात्र तथा अन्याय व्रतसे प्रसन्न होकर मुझे ज्ञान-दृष्टि प्रदान करें।' सामग्री भी दे। श्रीलक्ष्मीनारायणको प्रतिमा भी सब तदनन्तर रातमें जागरण, गान तथा पुस्तकका सामग्रियोसहित आचार्यको दे। सब तीर्थोमें स्नान स्वाध्याय करे। गानविद्या तथा नृत्यकलामें प्रवीण करनेवाले मनुष्योंको जो पुण्य प्राप्त होता है, वह सब इस पुरुषोंद्वारा संगीत और नृत्यकी व्यवस्था करे। अत्यन्त व्रतके द्वारा देव-देव विष्णुके प्रसादसे प्राप्त हो जाता है। सुन्दर एवं पवित्र उपाख्यानोंके द्वारा रात्रिका समय व्यतीत व्रत करनेवाला पुरुष इस लोकमें मनको प्रिय लगनेवाला करे। निशाके अन्तमें प्रभात होनेपर जब सूर्यदेवका उदय सम्पूर्ण पदार्थों और प्रचुर भोगोंका उपभोग करके अन्तमें हो जाय, तब ब्राह्मणोंको निमन्त्रित करके भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुकी कृपासे भगवान् विष्णुके परमधामको प्राप्त वैष्णव श्राद्ध करे। यज्ञोपवीत, वस्त्र, माला तथा चन्दन होता है। अन्नदान, जलदान, तडाग-निर्माण, वृक्षारोपण तथा सत्यभाषण आदिकी महिमा नारदजीने पूछा-भगवन् । गुणोंमें श्रेष्ठ वाले महात्मा ब्राह्मणको अवश्य दान दे। नारद ! जो ब्राह्मणोंको देनेकी इच्छा रखनेवाला मनुष्य इस लोकमें याचना करनेवाले पीड़ित ब्राह्मणको अन्न दे, वही किन-किन वस्तुओंका दान करे? यह सब बताइये। विद्वानोंमें श्रेष्ठ है। यह दान आत्माके पारलौकिक सुखका महादेवजी बोले-देवर्षिप्रवर ! सुनो-लोकमें साधन है। रास्तेका थका-माँदा गृहस्थ ब्राह्मण यदि तत्त्वको जानकर सज्जन पुरुष अन्नदानकी ही प्रशंसा करते भोजनके समय घरपर आकर उपस्थित हो जाय तो हैं; क्योंकि सब कुछ अनमें ही प्रतिष्ठित हैं । अतएव साधु कल्याणकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको अवश्य उसे अन्न महात्मा विशेषरूपसे अत्रका ही दान करना चाहते हैं। देना चाहिये। अन्नदाता इहलोक और परलोकमें भी सुख अन्नके समान कोई दान न हुआ है न होगा। यह चराचर उठाता है। थके-माँदे अपरिचित राहगीरको जो विना जगत् अत्रके ही आधारपर टिका हुआ है। लोकमें अन्न क्लेशके अन्न देता है, वह सब धोका फल प्राप्त करता है। ही बलवर्धक है। अन्नमें ही प्राणोंकी स्थिति है। अतिथिकी न तो निन्दा करे और न उससे द्रोह ही रखे। कल्याणकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको उचित है कि वह उसे अन्न अर्पण करे। उस दानकी विशेष प्रशंसा है।। अपने कुटुम्बको कष्ट देकर भी अनकी भिक्षा माँगने- महामुने! जो मनुष्य अत्रसे देवताओं, पितरों, • उत्तरखण्डके २६वे अध्यायसे उद्धृत ।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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