SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 590
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण हो। श्रीविष्णु ही तुम्हारे देवता है; इसीलिये तुम्हें वैष्णवी वस्त्र-धोती-चादर धारण करे। तदनन्तर त्रिलोकीको कहते हैं। देवि ! तुम जन्मसे लेकर मृत्युतक समस्त तृप्त करनेके लिये तर्पण करे। सबसे पहले श्रीब्रह्माका पापोंसे मेरी रक्षा करो। स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्षमें तर्पण करे; फिर श्रीविष्णु, श्रीरुद्र और प्रजापतिका । कुल साढ़े तीन करोड़ तीर्थ है-ऐसा वायु देवताका तत्पश्चात् 'देवता, यक्ष, नाग, गन्धर्व, अप्सरा, असुरगण, कथन है। माता जाह्नवी ! वे सभी तीर्थ तुम्हारे अंदर क्रूर सर्प, गरुड, वृक्ष, जीव-जन्तु, पक्षी, विद्याधर, मेघ, मौजूद है। देवलोकमें तुम्हारा नाम नन्दिनी और नलिनी आकाशचारी जीव, निराधार जीव, पापी जीव तथा है। इनके सिवा दक्षा, पृथ्वी, वियद्गङ्गा, विश्वकाया, धर्मपरायण जीवोंको तृप्त करनेके लिये मैं उन्हें जल शिवा, अमृता, विद्याधरी, महादेवी, लोकप्रसादिनी अर्पण करता हूँ।' यह कहकर उन सबको जलाञ्जलि दे। क्षेमकरी, जाह्नवी, शान्ता और शान्तिप्रदायिनी आदि देवताओंका तर्पण करते समय यज्ञोपवीतको बायें तुम्हारे अनेकों नाम है।' कंधेपर डाले रहे। तत्पश्चात् उसे गलेमें मालाको भाँति सानके समय इन पवित्र नामोंका कीर्तन करना कर ले और दिव्य मनुष्यों, ऋषि-पुत्रों तथा ऋषियोंका चाहिये; इससे त्रिपथगामिनी भगवती गङ्गा उपस्थित हो भक्तिपूर्वक तर्पण करे। सनक, सनन्दन, सनातन और जाती हैं। सात बार उपर्युक्त नामोंका जप करके संपुटके सनत्कुमार-ये दिव्य मनुष्य हैं। कपिल, आसुरि, बोदु आकारमें दोनों हाथोंको जोड़कर उनमें जल ले और तथा पञ्चशिख- ये प्रधान ऋषिपुत्र हैं। ये सभी मेरे चार, छ: या सात बार मस्तकपर डाले। इस प्रकार स्रान दिये हुए जलसे तृप्त हों' ऐसा कहकर इन्हें जल दे। इसी करके पूर्ववत् मृत्तिकाको भी विधिवत् अभिमन्त्रित करे प्रकार मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, और उसे शरीरमें लगाकर नहा ले। मृत्तिकाको प्रचेता, वसिष्ठ, नारद तथा अन्यान्य देवर्षियों एवं अभिमन्त्रित करनेका मन्त्र इस प्रकार है- ब्रह्मर्षियोंका अक्षतसहित जलके द्वारा तर्पण करे। अश्वक्रान्ते रथकाने विष्णुकाते वसुन्धरे। इस प्रकार ऋषि-तर्पण करनेके पश्चात् यज्ञोपवीतको मृत्तिके हर मे पापं यन्मया दुष्कृतं कृतम् ॥ दायें कंधेपर करके बायें घुटनेको पृथ्वीपर टेककर बैठे। उद्घृतासि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना। फिर अग्निपात्त, सौम्य, हविष्मान्, उष्मप, कव्यवाद् नमस्ते सर्वलोकानां प्रभवारणि सुव्रते ॥ अनल, बर्हिषद्, पिता-पितामह आदि तथा मातामह (८९ । २२-२३) आदि सब लोगोंका विधिवत् तर्पण करके निम्नाङ्कित वसुन्धरे ! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते मन्त्रका उच्चारण करेहैं। भगवान् श्रीविष्णुने भी वामन-अवतार धारण करके येऽवान्धवा बान्धवा ये येऽन्यजन्पनि बान्धवाः । तुम्हें एक पैरसे नापा था। मृत्तिके ! मैंने जो बुरे कर्म ते तृप्तिमखिला यान्तु येऽप्यस्मत्तोयकाक्षिणः ॥ किये हों, मेरे उस सब पापोंको तुम हर लो। देवि! सैकड़ों भुजाओंवाले भगवान् श्रीविष्णुने वराहका रूप 'जो लोग मेरे बान्धव न हो, जो मेरे बान्धव हों तथा धारण करके तुम्हें जलसे बाहर निकाला था। तुम सम्पूर्ण जो दूसरे किसी जन्म में मेरे बान्धव रहे हो, वे सब मेरे लोकोंकी उत्पत्तिके लिये अरणीके समान हो- अर्थात् दिये हुए जलसे तृप्त हो। उनके सिवा और भी जो जैसे अरणी-काष्ठसे आग प्रकट होती है, उसी प्रकार कोई प्राणी मुझसे जलकी अभिलाषा रखते हों, वे भी तुमसे सम्पूर्ण लोक उत्पन्न होते हैं। सुव्रते! तुम्हें मेरा तृप्ति लाभ करें।' नमस्कार है।' यों कहकर उनकी तृप्तिके उद्देश्यसे जल गिराना इस प्रकार स्रान करनेके पश्चात् विधिपूर्वक चाहिये। तत्पश्चात् विधिपूर्वक आचमन करके अपने आचमन करके जलसे बाहर निकले और दो शुद्ध श्वेत आगे कमलकी आकृति बनावे और सूर्यदेवके नामोंका
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy