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________________ पातालखण्ड] • अम्बरीष-नारद-संवाद तथा नारदजीके द्वारा निर्गुण एवं सगुण ध्यानका वर्णन . ५७५ ...................................................................................................... सर्वथा प्रयत्न करके मेरी प्रियाकी शरण ग्रहण करनी अद्भुत रहस्यको सदा गोपनीय रखें-इसे हर एकके चाहिये। रुद्र ! मेरी प्रियाका आश्रय लेकर तुम भी मुझे सामने प्रकट न करें। अपने वशमें कर सकते हो। यह बड़े रहस्यकी बात है, शौनकने कहा-गुरुदेव ! आपकी कृपासे आज जिसे मैंने तुम्हें बता दिया है। तुम्हें यत्नपूर्वक इसे छिपाये मैं कृतकृत्य हो गया, क्योंकि आपने मेरे सामने यह रखना चाहिये। अब तुम भी मेरी प्रियतमा श्रीराधाकी रहस्योंका भी रहस्य प्रकाशित किया है। शरण लो और मेरे युगल-मन्त्रका जप करते हुए सदा सूतजी कहते हैं-ब्रह्मन् ! आप भी अहर्निश मेरे इस धाममें निवास करो।' युगल-मन्त्रका जप करते हुए इन धोका पालन कीजिये। यह कहकर दयानिधान श्रीकृष्ण मेरे दाहिने कानमें थोड़े ही दिनोंमें आपको भगवान्के दास्यभावकी प्राप्ति हो पूर्वोक्त युगल-मन्त्रका उपदेश देकर मेरे देखते-देखते वहीं जायगी। मैं भी यमुनाके तट पर भगवान् गोपीनाथके नित्यअपने गणोंसहित अन्तर्धान हो गये। तबसे मैं भी निरन्तर धाम वृन्दावनमें जा रहा हूँ। महादेवजीके मुखसे निकला यहीं रहता हूँ। नारद ! इस प्रकार मैंने तुम्हारे पूछे हुए हुआ यह उत्तम चरित्र परम पवित्र है, इसमें महान् अनुभव विषयका साङ्गोपाङ्ग वर्णन कर दिया। भरा हुआ है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इसका श्रवण करते हैं, सूतजी कहते हैं-शौनकजी! पूर्वकालमें वे अवश्य ही भगवान्के परमपदको प्राप्त होते हैं। यह स्वर्ग भगवान् शङ्करने साक्षात् श्रीकृष्णके मुखसे इस रहस्यका तथा मोक्षकी प्राप्तिका भी कारण और समस्त पापोंका ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने नारदजीसे कहा और नारदजीने नाशक है। जो लोग सदा भगवान् विष्णुकी सेवामें तत्पर मुझे इसका उपदेश दिया था। [वही आज मैंने यहाँ रहकर इसका भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, उन्हें विष्णुलोकसे आपको सुनाया है।] आपको भी उचित है कि इस परम कभी किसी तरह भी पुनः इस संसारमें नहीं आना पड़ता। अम्बरीष-नारद-संवाद तथा नारदजीके द्वारा निर्गुण एवं सगुण ध्यानका वर्णन P ऋषियोंने कहा-महाभाग ! हमलोगोंने आपके मुखसे भगवान् श्रीकृष्णका अत्यन्त अद्भुत चरित्र सुना है और इससे हमें पूरा संतोष हुआ है। अहो ! भगवान् श्रीकृष्णका माहात्म्य भक्तोंको सदति प्रदान करनेवाला है, उससे किसको तृप्ति हो सकती है। अतः हम पुनः श्रीकृष्णका चरित्र सुनना चाहते है। सूतजी बोले-द्विजवरो! आपने बहुत उत्तम प्रश्न किया, यह जगत्को तारनेवाला है। आपलोग स्वयं तो कृतार्थ ही हैं। क्योंकि श्रीकृष्णके भक्तोंका मनोरथ सदा पूर्ण रहता है। श्रीकृष्णका पावन चरित्र साधु पुरुषोंको अत्यन्त हर्ष प्रदान करनेवाला है। अब मैं इस विषयमें एक अत्यन्त अद्भुत उपाख्यान सुनाता हूँ। एक समयकी बात है, भगवान्के प्रिय भक्त देवर्षि नारदजी सब लोकोमे घूमते हुए मथुरामें गये और वहाँ राजा अम्बरीषसे मिले, जिनका चित्त श्रीकृष्णकी आराधनामें , MINISTRITI
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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