SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 548
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . . [संक्षिप्त परापुराण . . . . . . . भी उन्होंने अनेकों भार सुवर्ण और रत्न आदिके द्वारा श्रीरामके हाथका स्पर्श होते ही उस अश्वने पशु-शारीरका सत्कार किया। उस यज्ञमें श्रीरामने ब्राह्मणोंको बहुत IRAN TS दक्षिणा दी। दीनों, अंधों और दुःखियोंको भी नाना प्रकारके दान दिये। विचित्र-विचित्र वस्त्र तथा मधुर भोजन वितीर्ण किये। भगवान्ने शास्त्रकी आज्ञाके अनुसार ऐसा दान किया, जो सबको सन्तोष देनेवाला था। उन्हें सबको दान देते देख महर्षि कुम्भजको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने अचको नहलानेके निमित्त अमृतके समान जल मंगानेके लिये चौसठ राजाओंको उनकी रानियोंसहित बुलाया। श्रीरामचन्द्रजी सब प्रकारके अलङ्कारोंसे सुशोभित सीताजीके साथ सोनेके घड़ेमें जल ले आनेके लिये गये। उनके पीछे माण्डवीके साथ भरत, उर्मिलाके साथ लक्ष्मण, श्रुतिकीर्तिके साथ शत्रुघ्न, कान्तिमतौके साथ पुष्कल, कोमलाके साथ लक्ष्मीनिधि, महामूर्तिके साथ विभीषण, सुमनोहारीके साथ सुरथ तथा मोहनाके साथ सुग्रीव भी चले। इसी प्रकार और कई राजाओंको वसिष्ठ ऋषिने भेजा। उन्होंने स्वयं भी शीतल एवं पवित्र जलसे भरी हुई सरयूमें जाकर वेदमन्त्रके परित्याग करके तुरंत दिव्यरूप धारण कर लिया। द्वारा उसके जलको अभिमन्त्रित किया। वे बोले-'हे घोड़ेका शरीर छोड़कर दिव्यरूपधारी मनुष्यके रूपमें जल! तुम सम्पूर्ण लोकोंकी रक्षा करनेवाले प्रकट हुए उस अश्वको देखकर यज्ञमें आये हुए सब श्रीरामचन्द्रजीके यज्ञके लिये निश्चित किये हुए इस लोगोंको बड़ा विस्मय हुआ। यद्यपि श्रीरामचन्द्रजी स्वयं अश्वको पवित्र करो। सब कुछ जानते थे, तो भी सब लोगोंको इस रहस्यका मुनिके अभिमन्त्रित किये हुए उस जलको राम ज्ञान करानेके लिये उन्होंने पूछा- दिव्य शरीर आदि सभी राजा ब्राह्मणोंद्वारा सुसंस्कृत यज्ञ-मण्डपमें ले धारण करनेवाले पुरुष ! तुम कौन हो? अश्व-योनिमें आये। उस निर्मल जलसे दूधके समान वेत अश्वको क्यों पड़े थे तथा इस समय क्या करना चाहते हो? ये नहलाकर महर्षि कुम्भजने मन्त्रद्वारा रामके हाथसे उसे सब बातें बताओ।' अभिमन्त्रित कराया। श्रीरामचन्द्रजी अश्वको लक्ष्य रामकी बात सुनकर दिव्यरूपधारी पुरुषने कहाकरके बोले-'महाबाह ! ब्राह्मणोंसे भरे हुए इस 'भगवन् ! आप बाहर और भीतर सर्वत्र व्याप्त हैं; अतः यज्ञ-मण्डपमें तुम मुझे पवित्र करो।' ऐसा कहकर आपसे कोई बात छिपी नहीं है। फिर भी यदि पूछ रहे श्रीरामने सीताके साथ उस अश्वका स्पर्श किया। उस हैं तो मैं आपसे सब कुछ ठीक-ठीक बता रहा हूँ। समय सम्पूर्ण ब्राह्मणोंको कौतूहलवश यह बड़ी विचित्र पूर्वजन्ममें मैं एक परम धर्मात्मा ब्राह्मण था, किन्तु मुझसे बात मालूम पड़ी। वे आपसमें कहने लगे-'अहो! एक अपराध हो गया। महाबाहो ! एक दिन मैं जिनके नामका स्मरण करनेसे मनुष्य बड़े-बड़े पापोंसे पापहारिणी सरयूके तटपर गया और वहाँ सान, पितरोंका छुटकारा पा जाते हैं, वे ही श्रीरामचन्द्रजी यह क्या कह तर्पण तथा विधिपूर्वक दान करके वेदोक्त रीतिसे आपका रहे हैं [क्या अश्व इन्हें पवित्र करेगा ?] ।' यज्ञ-मण्डपमें ध्यान करने लगा। महाराज ! उस समय मेरे पास
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy