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________________ • अर्चवस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण माता कैकेयीके कहनेसे वनमें जाना, गङ्गापार करके समुद्र-लखन और दूसरे तटपर उनका पहुँचना-ये सब चित्रकूट पर्वतपर पहुँचना तथा वहाँ सौता और लक्ष्मणके प्रसङ्ग किष्किन्धाकाण्डके अन्तर्गत हैं। यह काण्ड अद्भुत साथ निवास करना-इत्यादि प्रसङ्गोका वर्णन है। इसके है। अब सुन्दरकाण्डका वर्णन सुनिये, जहाँ श्रीरामअतिरिक्त न्यायके अनुसार चलनेवाले भरतने जब अपने चन्द्रजीकी अद्भुत कथाका उल्लेख है। हनुमान्जीका भाई श्रीरामके वनमें जानेका समाचार सुना तो वे भी उन्हें सीताकी खोजके लिये लङ्काके प्रत्येक घरमें घूमना तथा लौटानेके लिये चित्रकूट पर्वतपर गये, किन्तु उन्हें जब न वहाँके विचित्र-विचित्र दृश्योंका देखना, फिर सीताका लौटा सके तो स्वयं भी उन्होंने अयोध्यासे बाहर नन्दिग्राममें दर्शन, उनके साथ बातचीत तथा वनका विध्वंस, कुपित वास किया। ये सब बाते भी बालकाण्डके ही अन्तर्गत है। हुए राक्षसोके द्वारा हनुमान्जीका बन्धन, हनुमान्जीके इसके बाद आरण्यककाण्डमें आये हुए विषयोंका वर्णन द्वारा लङ्काका दाह, फिर समुद्रके इस पार आकर उनका सुनिये। सीता और लक्ष्मणसहित श्रीरामका भिन्न-भिन्न वानरोंसे मिलना। श्रीरामचन्द्रजीको सीताकी दी हुई मुनियोंके आश्रमोंमें निवास करना, वहाँ-वहाँक स्थान पहचान अर्पण करना, सेनाका लङ्काके लिये प्रस्थान, आदिका वर्णन, शूर्पणखाको नाकका काटा जाना, खर समुद्रमें पुल बाँधना तथा सेनामें शुक और सारणका और दूषणका विनाश, मायामय मृगके रूपमें आये हुए आना-ये सब विषय सुन्दरकाण्डमें हैं। इस प्रकार मारीचका मारा जाना, राक्षस रावणके द्वारा राम-पनी सुन्दरकाण्डका परिचय दिया गया। युद्धकाण्डमें युद्ध सीताका हरण, श्रीरामका विरहाकुल होकर वनमें भटकना और सीताकी प्राप्तिका वर्णन है। उत्तरकाण्डमें श्रीरामका और मानवोचित लीलाएँ करना, फिर कबन्धसे भेंट होना, ऋषियोंके साथ संवाद तथा यज्ञका आरम्भ आदि है। पम्पासरोवरपर जाना और श्रीहनुमान्जोसे मिलाप उसमें श्रीरामचन्द्रजीको अनेकों कथाओंका वर्णन है, जो होना-ये सभी कथाएँ आरण्यककाण्डके नामसे प्रसिद्ध श्रोताओंके पापको नाश करनेवाली हैं। इस प्रकार मैंने हैं। तदनन्तर श्रीरामद्वारा सप्त ताल-वृक्षोंका भेदन, छः काण्डोंका वर्णन किया। ये ब्रह्महत्याके पापको भी दूर बालिका अद्भुत वध, सुग्रीवको राज्यदान, लक्ष्मणके द्वारा करनेवाले हैं। उनकी कथाएँ बड़ी मनोहर हैं। मैंने यहाँ सुग्रीवको कर्तव्य-पालनका सन्देश देना, सुग्रीवका नगरसे संक्षेपसे ही इनका परिचय दिया है। जो छः काण्डोंसे निकलना, सैन्यसंग्रह, सीताको खोजके लिये वानरोका चिह्नित और चौबीस हजार श्लोकोंसे युक्त है, उसी भेजा जाना । वानरोंकी सम्पातिसे भेंट, हनुमान्जीके द्वारा वाल्मीकिनिर्मित ग्रन्थको रामायण नाम दिया गया है। सीताका आगमन, यज्ञका आरम्भ, अश्वकी मुक्ति, उसके पूर्वजन्मकी कथा, यज्ञका उपसंहार और रामभक्ति तथा अश्वमेध-कथा-श्रवणकी महिमा शेषजी कहते हैं-मुने! तदनन्तर लक्ष्मणने 'माताजी! आप पतिव्रता हैं, श्रीरघुनाथजी बारम्बार आकर पुनः जानकीके चरणोंमें प्रणाम किया। आपको बुला रहे है। पतिव्रता स्त्री अपने पतिके विनयशील लक्ष्मणको आया देख पुनः अपने बुलाये अपराधको मनमें नहीं लाती; इसलिये इस उत्तम रथपर जानेकी बात सुनकर सौताने कहा-'सुमित्रानन्दन ! बैठिये और मेरे साथ चलनेकी कृपा कीजिये।' पतिको मुझे श्रीरामचन्द्रजीने महान् वनमें त्याग दिया है, अतः ही देवता माननेवाली जानकीने लक्ष्मणकी ये सब बातें अब मैं कैसे चल सकती हूँ? यहीं महर्षि वाल्मीकिके सुनकर आश्रमकी सम्पूर्ण तपस्विनी स्त्रियों तथा वेदवेत्ता आश्रमपर रहूँगी और निरन्तर श्रीरामका स्मरण किया मुनियोंको प्रणाम किया और मन-ही-मन श्रीरामका करूंगी।' उनकी बात सुनकर लक्ष्मणने कहा- स्मरण करती हुई वे रथपर बैठकर अयोध्यापुरीकी ओर
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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