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________________ पातालखण्ड ] • शत्रुनके बाणसे लवकी मूळ, कुशका रणक्षेत्रमें आना, कुश और लवको विजय . ५३३ जानकी ! तुम्हारे पुत्र लवने किसी बड़े राजा महाराजाके अत्यन्त व्याकुल हैं तथा उनके नेत्रोंसे आँसू बह रहे हैं। घोड़ेको जबरदस्ती पकड़ लिया है। राजाके पास सेना भी तब वे अपनी जननीसे बोले-'माँ ! मुझ पुत्रके रहते है तथा उनका मान-सम्मान भी बहुत है। घोड़ा पकड़नेके हुए तुमपर कैसा दुःख आ पड़ा? शत्रुओंका मर्दन बाद लवका राजाकी सेनाके साथ भयङ्कर युद्ध हुआ। करनेवाला मेरा भाई लव कहाँ है? वह बलवान् वीर किन्तु सीता मैया ! तुम्हारे वीर पुत्रने सब योद्धाओंको दिखायी क्यों नहीं देता? कहाँ घूमने चला गया? मेरी मार गिराया। उसके बाद वे लोग फिर लड़ने आये। माँ ! तुम रोती क्यों हो? बताओ न, लव कहाँ है?' परन्तु उसमें भी तुम्हारे सुन्दर पुत्रकी ही जीत हुई । उसने जानकीने कहा-बेटा ! किसी राजाने लवको राजाको बेहोश कर दिया और युद्धमें विजय पायी। पकड़ लिया है। वह अपने घोड़ेकी रक्षाके लिये यहाँ तदनन्तर, कुछ ही देरके बाद उस भयङ्कर राजाको मू» आया था। सुना है, मेरे बोने उसके यज्ञसम्बन्धी दूर हो गयी और उसने क्रोधमें भरकर तुम्हारे पुत्रको अश्वको पकड़कर बाँध लिया था। लव बलवान् है, उसे रणभूमिमें मूर्च्छित करके गिरा दिया है। अकेले ही अनेकों शत्रुओंसे लड़ना पड़ा है। फिर भी सीता बोलीं-हाय ! राजा बड़ा निर्दयी है, वह उसने बहुत-से अश्व-रक्षकोंको परास्त किया है। परन्तु बालकके साथ क्यों युद्ध करता है ? अधर्मके कारण अन्तमें उस राजाने लवको युद्धमें मूर्छित करके बाँध उसकी बुद्धि दूषित हो गयी है, तभी उसने मेरे बच्चेको लिया है, यह बात इन बालकोंने बतायी है, जो उसके धराशायी किया है। बालको ! बताओ, उस राजाने मेरे साथ ही गये थे। यही सुनकर मुझे दुःख हुआ है। पुत्रको कैसे युद्धमें गिराया है तथा अब वह कहाँ जायगा? वत्स! तुम समयपर आ गये। जाओ और उस श्रेष्ठ पतिव्रता जानकी बालकोसे इस प्रकारकी बाते कह राजाके हाथसे लवको बलपूर्वक छुड़ा लाओ। रही थीं, इतनेहीमें वीरवर कुश भी महर्षियोंके साथ कुश बोले-माँ ! तुम जान लो कि लव अब आश्रमपर आ पहुँचे। उन्होंने देखा, माता जानकी उस राजाके बन्धनसे मुक्त हो गया। मैं अभी जाकर राजाको सेना और सवारियोंसहित अपने बाणोंका निशाना बनाता हूँ। यदि कोई अमर देवता या साक्षात् रुद्र आ गये हों तो भी अपने तीखे बाणोंकी मारसे उन्हें व्यथित करके मैं लवको छुड़ा लैंगा। माता! तम रोओ मत; वीर पुरुषोंका संग्राममें मूर्छित होना उनके यशका कारण होता है। युद्धसे भागना ही उनके लिये कलङ्ककी बात है। ___ शेषजी कहते हैं-मुने ! कुशके इस वचनसे शुभलक्षणा सीताको बड़ी प्रसत्रता हुई। उन्होंने पुत्रको सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्र दिये और विजयके लिये आशीर्वाद देकर कहा-'बेटा ! युद्ध-क्षेत्रमें जाकर मूर्छित हुए लवको बन्धनसे छुड़ाओ।' माताकी यह आज्ञा पाकर कुशने कवच और कुण्डल धारण किये तथा जननीके चरणों में प्रणाम करके बड़े वेगसे रणकी ओर प्रस्थान किया। वे वेगपूर्वक युद्धके लिये संग्रामभूमिमें उपस्थित हुए, वहाँ पहुँचते ही उनकी दृष्टि
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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