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________________ पातालखण्ड ]. सीताजीके त्यागकी बातसे शत्रुघ्रकी मूर्च्छा वाल्मीकिके आश्रमपर लव कुशका जन्म • -------------- जप करती हुई दिन व्यतीत करती थीं, समय आनेपर उन्होंने दो सुन्दर पुत्रोंको जन्म दिया, जो आकृतिमें श्रीरामचन्द्रजीके समान तथा अश्विनीकुमारोंकी भाँति मनोहर थे। जानकीके पुत्र होनेका समाचार सुनकर मुनिको बड़ी प्रसन्नता हुई। वे मन्त्रवेत्ताओंमें श्रेष्ठ थे, अतः उन बालकोंके जातकर्म आदि संस्कार उन्होंने हो सम्पन्न किये। महर्षि वाल्मीकिने उन बालकोंके संस्कार-सम्बन्धी सभी कर्म कुशों और उनके लवों (टुकड़ों) द्वारा ही किये थे अतः उन्होंक नामपर उन दोनोंका नाम क्रमशः कुश और लव रखा। जिस समय उन शुद्धात्मा महर्षिने पुत्रोंका मङ्गल कार्य सम्पन्न किया, उस समय सीताजीका हृदय आनन्दसे भर गया। उनके मुख और नेत्र प्रसन्नतासे खिल उठे। उसी दिन लवणासुरको मारकर शत्रुघ्नजी भी अपने थोड़े-से सैनिकोंके साथ वाल्मीकि मुनिके सुन्दर आश्रमपर रात्रिमें आये थे। उस समय वाल्मीकिजीने उन्हें सिखा दिया था कि तुम श्रीरघुनाथजीको जानकीके पुत्र होनेकी बात न बताना, मैं ही उनके सामने सारा वृत्तान्त कहूँगा।' जानकीके वे दोनों पुत्र वहाँ बढ़ने लगे। उनका ५२७ रूप बड़ा ही मनोहर था। सीता उन्हें कन्द, मूल और फल खिलाकर पुष्ट करने लगीं। वे दोनों परम सुन्दर और अपनी रूप-माधुरीसे उन्मत्त बना देनेवाले थे। शुक्ल पक्षको प्रतिपदाके चन्द्रमाकी भाँति मनको मोहनेवाले दोनों कुमारोंका समयानुसार उपनयन संस्कार हुआ, इससे उनकी मनोहरता और भी बढ़ गयो । महर्षि वाल्मीकिने उपनयनके पश्चात् उन्हें अङ्गसहित वेद और रहस्योंसहित धनुर्वेदका अध्ययन कराया। उसके बाद स्वरचित रामायण - काव्य भी पढ़ाया। उन्होंने भी उन बालकोंको सुवर्णभूषित धनुष प्रदान किये, जो अभेद्य और श्रेष्ठ थे। जिनकी प्रत्यञ्चा बहुत ही उत्तम थी तथा जो शत्रु समुदायके लिये अत्यन्त भयंकर थे। धनुषके साथ ही बाणोंसे भरे दो अक्षय तरकश, दो खड्ग तथा बहुत-सी अभेद्य ढालें भी उन्होंने जानकीकुमारोको अर्पण किये। धनुर्वेदके पारगामी होकर वे दोनों बालक धनुष धारण किये बड़ी प्रसन्नताके साथ आश्रममें विचरा करते थे। उस समय सुन्दर अश्विनीकुमारोंकी भाँति उनकी बड़ी शोभा होती थी। जानकीजी ढाल-तलवार धारण किये अपने दोनों सुन्दर कुमारोंको देख-देखकर THI
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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