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________________ पातालखण्ड ] • राजा सुरथके द्वारा अश्वका पकड़ा जाना और राजाका युद्धके लिये तैयार होना। · wwww बोले— 'नृपश्रेष्ठ ! मुझे बालिपुत्र अङ्गद समझो। श्रीशत्रुजीने मुझे दूत बनाकर तुम्हारे निकट भेजा है। MLUN ASSESS 1433 1865 इस समय तुम्हारे कुछ सेवकोंने आकर मेरे यज्ञ-सम्बन्धी घोड़ेको पकड़ लिया है। अज्ञानवश उनके द्वारा सहसा यह बहुत बड़ा अन्याय हो गया है अब तुम प्रसन्नता पूर्वक श्रीशत्रुघ्रजीके पास चलो और उनके चरणोंमें पड़कर अपने राज्य और पुत्रोंसहित वह अश्व शीघ्र ही समर्पित कर दो। अन्यथा श्रीशत्रुघ्रके बाणोंसे घायल होकर पृथ्वीतलकी शोभा बढ़ाते हुए सदाके लिये सो जाओगे; तुम्हें अपना मस्तक कटा देना होगा।' अङ्गदके मुखसे इस तरहकी बातें सुनकर राजा सुरथने उत्तर दिया – 'कपिश्रेष्ठ! तुम सब कुछ ठीक ही कह रहे हो, तुम्हारा कहना मिथ्या नहीं है; परंतु मैं शत्रुम आदिके भयसे उस अश्वको नहीं छोड़ सकता। यदि भगवान् श्रीराम स्वयं ही आकर मुझे दर्शन दें तो मैं उनके चरणोंमें प्रणाम करके पुत्रोंसहित अपना राज्य, कुटुम्ब, धन, धान्य तथा प्रचुर सेना- सब कुछ समर्पण कर दूँगा। क्षत्रियोंका धर्म ही ऐसा है कि उन्हें स्वामीसे भी विरोध करना पड़ता है। उसमें भी यह धार्मिक युद्ध है। ५०५ ------- मैं केवल श्रीरामचन्द्रजीके दर्शनकी इच्छासे ही युद्ध कर रहा हूँ। यदि श्रीरघुनाथजी मेरे घरपर नहीं पधारेंगे तो मैं इस समय शत्रुघ्र आदि सभी प्रधान वीरोंको क्षणभरमें जीतकर कैद कर लूंगा ।' अङ्गद बोले- राजन् ! जिन्होंने मान्धाताके शत्रु लवण नामक दैत्यको खेलमें ही मार डाला था, जिनके द्वारा संग्राममें कितने ही बलवान् वैरी परास्त हुए हैं तथा जिन्होंने इच्छानुसार चलनेवाले विमानपर बैठे हुए विद्युन्माली नामक राक्षसका वध किया है, उन्हीं वीरशिरोमणि श्रीशत्रुनको तुम कैद करोगे! मुझे तो ऐसा जान पड़ता है, तुम्हारी बुद्धि मारी गयी है। श्रेष्ठ अस्त्रोंका ज्ञाता महाबली पुष्कल, जिसने युद्धमें रुद्रके प्रधान गण वीरभद्रके छक्के छुड़ा दिये थे, श्रीशत्रुमका भतीजा है। श्रीरघुनाथजीके चरण कमलोका चिन्तन करनेवाले हनुमान्जी भी सदा उनके निकट ही रहते हैं। तुमने हनुमान्जीके अनेकों पराक्रम सुने होंगे। उन्होंने त्रिकूट पर्वतसहित समूची लङ्कापुरीको क्षणभरमें फूंक डाला और दुष्ट बुद्धिवाले राक्षसराज रावणके पुत्र अक्षकुमारको मौतके घाट उतार दिया। अपने सैनिकोंकी जीवन रक्षाके लिये वे देवताओं सहित द्रोण पर्वतको अपनी पूँछके अग्रभागमें लपेटकर कई बार लाये हैं। हनुमान्जीका चरित्र वल कैसा है, इस बातको श्रीरघुनाथजी ही जानते हैं; इसीलिये अपने प्रिय सेवक इन पवनकुमारको थे मनसे तनिक भी नहीं बिसारते। वानरराज सुग्रीव आदि वीर, जो सारी पृथ्वीको ग्रस लेनेकी शक्ति रखते हैं, राजा शत्रुनका रुख जोहते हुए उनकी सेवा करते हैं। कुशध्वज, नीलरल, महान् अस्त्रवेत्ता रिपुताप, प्रतापाश्य, सुबाहु, विमल, सुमद और श्रीरामभक्त सत्यवादी राजा वीरमणि – ये तथा अन्य भूपाल श्रीशत्रुघ्रकी सेवामें रहते हैं। इन वीरोंके समुद्रमें एक मच्छरके समान तुम्हारी क्या हस्ती है। इन बातोंको भलीभाँति समझकर चलो। शत्रुघ्नजी बड़े दयालु हैं; उन्हें पुत्रोंसहित अश्व समर्पित करके तुम कमलनयन श्रीरामचन्द्रजीके पास जाना। वहीं उनका दर्शन करके अपने शरीर और जन्म दोनोंको सफल बना सकते हो।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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