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________________ ४९८ ********* * अर्थयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • भक्तिसे आपके चरणों में मस्तक झुकाते हैं। * शेषजी कहते हैं— श्रीरघुनाथजीका ऐसा वचन सुनकर भगवान् शिवने मूर्च्छित पड़े हुए राजा वीरमणिको अपने हाथके स्पर्श आदिसे जीवित किया। इसी प्रकार उनके दूसरे पुत्रोंको भी, जो बाणोंसे पीड़ित होकर अचेत अवस्थामें पड़े थे, जिलाया। भगवान् भूतनाथने राजाको तैयार करके पुत्र-पौत्रोंसहित उन्हें श्रीरघुनाथजीके चरणोंमें गिराया । वात्स्यायनजी! धन्य हैं राजा वीरमणि, जिन्होंने श्रीरघुनाथजीका दर्शन किया। जो लाखों योगियोंके लिये उनकी योगनिष्ठाके द्वारा भी दुर्लभ हैं, उन्हीं भगवान् श्रीरामको प्रणाम करके समस्त राज परिवारके लोग कृतार्थ हो गये उनका शरीर धारण करना सफल हो गया। इतना ही नहीं, वे ब्रह्मादि देवताओंके भी पूजनीय बन गये। शत्रुघ्न, हनुमान् और पुष्कल आदि उद्भट योद्धा जिनकी स्तुति करते हैं, उन श्रीरामचन्द्रजीको राजा वीरमणिने शिवजीकी प्रेरणासे वह उत्तम अश्व दे दिया [ संक्षिप्त पद्मपुराण शेषजी कहते हैं— द्विजश्रेष्ठ ! तदनन्तर बँधे हुए चँवरसे सुशोभित वह यज्ञ सम्बन्धी अश्व हजारों योद्धाओंसे सुरक्षित होकर भारतवर्षके अन्तमें स्थित हेमकूट पर्वतपर गया, जो चारों ओरसे दस हजार योजन लंबा-चौड़ा है। उसके सुन्दर शिखर सोने-चाँदी आदि धातुओंके हैं। वहाँ एक विशाल उद्यान है, जो बहुत ही सुन्दर और भाँति-भाँतिके वृक्षोंसे सुशोभित है। घोड़ा उसमें प्रवेश कर गया। वहाँ जानेपर उस अश्वके सम्बन्धमें सहसा एक आश्चर्यजनक घटना हुई उसे बतलाता हूँ, सुनिये - अकस्मात् उसका सारा शरीर अकड़ गया, वह हिल-डुल नहीं पाता था। मार्ग में साथ ही पुत्र, पशु और बान्धवों सहित अपना सारा राज्य भी समर्पण कर दिया। तदनन्तर, श्रीरामचन्द्रजी समस्त शत्रुओं तथा सेवकोंसे अभिवन्दित होकर मणिमय रथपर बैठे-बैठे ही अन्तर्धान हो गये। मुने! विश्ववन्दित श्रीरामको तुम मनुष्य न समझो। जलमें, थलमें, सब जगह तथा सबके भीतर सदा वे ही स्थित रहते हैं। भगवान् शङ्करने भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके सेवक राजासे विदा ली और कहा- 'राजन् ! श्रीरामचन्द्रजीका आश्रय ही संसारमें सबसे दुर्लभ वस्तु है, अतः तुम श्रीरघुनाथजीकी ही शरणमें रहो।' यों कहकर प्रलय और उत्पत्तिके कर्ता-धर्ता भगवान् शिव स्वयं भी अदृश्य हो समस्त पार्षदोंके साथ कैलासको चले गये। इसके बाद राजा वीरमणि श्रीरामके चरण कमलोंका ध्यान करते हुए स्वयं भी अपनी सेना लेकर महाबली शत्रुघ्नके साथ-साथ गये। जो श्रेष्ठ मनुष्य श्रीरामचन्द्रजीके इस चरित्रका श्रवण करेंगे, उन्हें कभी सांसारिक दुःख नहीं होगा । ★ अश्वका गात्र-स्तम्भ, श्रीरामचरित्र कीर्तनसे एक स्वर्गवासी ब्राह्मणका राक्षसयोनिसे उद्धार तथा अश्वके गात्र स्तम्भकी निवृत्ति खड़ा खड़ा वह हेमकूट पर्वतकी ही भाँति अविचल प्रतीत होने लगा। अक्षके रक्षकोंने शत्रुनके पास जाकर पुकार मचायी - 'स्वामिन्! हम नहीं जानते घोड़ेको क्या हो गया। अकस्मात् उसका सम्पूर्ण शरीर स्तब्ध हो गया है। इस बातपर विचार कर जो कुछ करना उचित जान पड़े, कीजिये।' यह सुनकर राजा शत्रुघ्नको बड़ा विस्मय हुआ वे अपने समस्त सैनिकोंके साथ अश्वके निकट गये। पुष्कलने अपनी बाँहसे पकड़कर उसके दोनों चरणोंको धरतीसे ऊपर उठानेका प्रयत्न किया। परन्तु वे अपने स्थानसे हिल भी न सके। तब शत्रुघ्नने सुमतिसे पूछा—'मन्त्रिवर! घोड़ेको क्या हुआ है, जो इसका * ममास्ति हृदये शवों भवतो हृदये त्वहम् । आवयोरन्तरं नास्ति मूढाः पश्यन्ति दुर्धियः ॥ ये भेदं विदधत्यद्धा आवयोरेकरूपयोः कुम्भीपाकेषु पच्यन्ते नराः कल्पसहस्रकम् ॥ ये त्वद्भक्ताः सदासंस्ते मद्भक्ता धर्मसंयुताः । मद्भक्ता अपि भूयस्या भक्त्या तव नतिङ्कराः ॥ (४६ । २०-२२ )
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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