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________________ पातालखण्ड] . शत्रुघ्न आदिका घोड़ेसहित आरण्यक मुनिके आश्रमपर जाना . ४८५ .............. अच्छा, अब तुमलोग बताओ, किसलिये यहाँ आये खड़ा हूँ। मुनीश्वर ! मुझे श्रीरघुनाथजीके दासकी हो? कौन धर्मात्मा राजा अश्वमेध नामक महान् यज्ञका चरण-धूलि समझिये।' हनुमानजी श्रीरामभक्त होनेके अनुष्ठान कर रहा है? ये सब बातें यहाँ बतलाकर कारण अत्यन्त शोभा पा रहे थे। उनकी उपर्युक्त बातें अश्वकी रक्षाके लिये जाओ और श्रीरघुनाथजीके सुनकर आरण्यक मुनिको बड़ा हर्ष हुआ और उन्होंने चरणोंका निरन्तर स्मरण करते रहो। हनुमान्जीको हृदयसे लगा लिया। दोनोंके हृदयसे आरण्यक मुनिके ये वचन सुनकर सब लोगोंको प्रेमको धारा फूटकर बह रही थी। दोनों ही आनन्दबड़ा विस्मय हुआ। वे श्रीरघुनाथजीका स्मरण करते हुए सुधामें निमग्न होकर शिथिल एवं चित्रलिखित-से प्रतीत उनसे बोले-'ब्रह्मर्षिवर! इस समय आपका दर्शन हो रहे थे। श्रीरघुनाथजीके चरणकमलोंके प्रेमसे दोनोंका पाकर हम सब लोग पवित्र हो गये; क्योंकि आप ही मानस भरा हुआ था। अतः दोनों ही बैठकर आपसमें श्रीरामचन्द्रजीकी कथा सुनाकर यहाँ सब लोगोंको पवित्र भगवानकी मनोहारिणी कथाएँ कहने लगे। मुनिश्रेष्ठ करते रहते हैं। आपने हमलोगोंसे जो कुछ पूछा है, वह आरण्यक श्रीरामके चरणोंका ध्यान कर रहे थे। सब हम बता रहे हैं। आप हमारे यथार्थ वचनको श्रवण हनुमान्जीने उनसे यह मनोहर वचन कहा—'महर्षे ! ये करें। महर्षि अगस्त्यजीके कहनेसे भगवान् श्रीराम ही श्रीरघुनाथजीके भ्राता महावीर शत्रुघ्न आपको प्रणाम कर सब सामग्री एकत्रित करके अश्वमेधयज्ञका अनुष्ठान कर रहे हैं। ये उद्धट वीरोंसे सेवित भरतकुमार पुष्कल भी रहे हैं। उन्हींका यज्ञसम्बन्धी अश्व यहाँ आया है और आपके चरणोंमें शीश झुकाते हैं तथा इधरकी ओर जो उसीकी रक्षा करते हुए हम सब लोग भी अश्वके साथ ये महान् बली और अनेक गुणोंसे विभूषित सज्जन खड़े ही आपके आश्रमपर आ पहुंचे हैं। महामते ! यही हैं, इन्हें श्रीरघुनाथजीके मन्त्री समझिये। अत्यन्त भयङ्कर हमारा वृत्तान्त है; औप इसे हृदयङ्गम करें।' योद्धा महायशस्वी राजा सुबाहु भी आपको प्रणाम करते रसायनके समान मनको प्रिय लगनेवाला यह उत्तम हैं। ये श्रीरामचन्द्रजीके चरणकमलोंका मकरन्द पान वचन सुनकर राम-भक्त ब्राह्मण आरण्यक मुनिको बड़ा करनेवाले मधुकर है। ये राजा सुमद हैं, जिन्हें हर्ष हुआ। वे कहने लगे-'आज मेरे मनोरथरूपी पार्वतीजीने श्रीरघुनाथजीके चरणोंकी भक्ति प्रदान की है, वृक्षमें फल आ गया, वह उत्तम शोभासे सम्पन्न हो जिससे ये संसार-समुद्रके पार हो चुके है; ये भी आपके गया। मेरी माताने जिसके लिये मुझे उत्पन्न किया था, चरणोंमें नमस्कार करते हैं। जिन्होंने अपने सेवकके वह शुभ उद्देश्य.आज पूरा हो गया। आजतक हविष्यके मुखसे श्रीरामचन्द्रजीके अश्वको आया हुआ सुनकर द्वारा मैंने जो हवन किया है, उस अग्निहोत्रका फल आज अपना सारा राज्य ही भगवानको समर्पण कर दिया है, मुझे मिल गया; क्योंकि अब मैं श्रीरामचन्द्रजीके वे राजा सत्यवान् भी पृथ्वीपर माथा टेककर आपके युगल-चरणारविन्दोंका दर्शन करूँगा। अहा ! जिनका चरणोंमें प्रणाम करते हैं।' मैं प्रतिदिन अपने हृदयमें ध्यान करता था, वे मनोहर हनुमान्जीके ये वचन सुनकर आरण्यक मुनिने बड़े रूपधारी अयोध्यानाथ भगवान् श्रीराम निश्चय ही मेरे आदरके साथ सबको हदयसे लगाया और फल-मूल नेत्रोंके समक्ष होकर दर्शन देंगे। हनुमानजी मुझे हृदयसे आदिके द्वारा सबका स्वागत-सत्कार किया। फिर शत्रुघ्न लगाकर मेरी कुशल पूछेगे। वे संतोंके शिरोमणि हैं; मेरी आदि सब लोगोंने बड़ी प्रसन्नताके साथ महर्षिके भक्ति देखकर उन्हें बड़ा सन्तोष होगा।' आरण्यक आश्रमपर निवास किया। प्रातःकाल नर्मदामें नित्यकर्म मुनिके ये वचन सुनकर कपिश्रेष्ठ हनुमान्जीने उनके दोनों करके वे महान् उद्योगी सैनिक आगे जानेको उद्यत हुए। चरण पकड़ लिये और कहा-'ब्रह्मर्षे ! मैं ही हनुमान् शत्रुघ्ने आरण्यक मुनिको पालकीपर बिठाकर अपने हूँ, स्वामिन् ! मैं आपका सेवक हैं और आपके सामने सेवकोंद्वारा उन्हें श्रीरघुनाथजीकी निवासभूत अयोध्या
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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