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________________ पातालखण्ड ] -------------- • शत्रुन आदिका घोड़ेसहित आरण्यक मुनिके आश्रमपर जाना सुमतिने कहा- मुने! ये सब लोग रघुकुल- श्रीराम स्मरण करनेमात्र से सारे पापोंको दूर कर देते हैं। * पूर्वकालकी बात है, मैं तत्त्वज्ञानकी इच्छासे ज्ञानी गुरुका अनुसन्धान करता हुआ बहुत से तीर्थोंमें भ्रमण करता रहा; किन्तु किसीने मुझे भी तत्त्वत्का उपदेश नहीं दिया। उसी समय एक दिन भाग्यवश मुझे लोमश मुनि मिल गये। वे स्वर्गलोकसे तीर्थयात्राके लिये आये थे। उन महर्षिको प्रणाम करके मैंने पूछा - 'स्वामिन्! मैं इस अद्भुत और दुर्लभ मनुष्य शरीरको पाकर भयङ्कर भव-सागरके पार जाना चाहता हूँ, ऐसी दशामें मुझे क्या करना चाहिये ?' मेरी यह बात सुनकर वे मुनिश्रेष्ठ बोले- 'विप्रवर! एकाग्रचित्त होकर पूर्ण श्रद्धाके साथ सुनो, संसार-समुद्रसे तरनेके लिये दान, तीर्थ, व्रत, नियम, यम, योग तथा यज्ञ आदि अनेकों साधन हैं। ये सभी स्वर्ग प्रदान करनेवाले हैं; किन्तु महाभाग ! मैं तुमसे एक परम गोपनीय तत्त्वका वर्णन करता हूँ, जो सब पापों का नाश करनेवाला और संसार सागर से पार उतारनेवाला है। नास्तिक और श्रद्धाहीन पुरुषको इसका उपदेश नहीं देना चाहिये। निन्दक, शठ तथा भक्तिसे द्वेष रखनेवाले पुरुषके लिये भी इस तत्त्वत्का उपदेश करना मना है जो काम और क्रोधसे रहित हो, जिसका चित्त शान्त हो तथा जो भगवान् श्रीरामका भक्त हो उसीके सामने इस गूढ़ तत्त्वका वर्णन करना चाहिये। यह समस्त दुःखोंका नाश करनेवाला सर्वोत्तम साधन है। श्रीरामसे बड़ा कोई देवता नहीं, श्रीरामसे बढ़कर कोई व्रत नहीं, श्रीरामसे बड़ा कोई योग नहीं तथा श्रीरामसे बढ़कर कोई यज्ञ नहीं है। श्रीरामका स्मरण, जप और पूजन करके मनुष्य परम पदको प्राप्त होता है। उसे इस लोक और परलोककी उत्तम समृद्धि मिलती है। श्रीरघुनाथजी सम्पूर्ण कामनाओं और फलोंके दाता हैं। मनके द्वारा स्मरण और ध्यान करनेपर वे अपनी उत्तम भक्ति प्रदान करते हैं, जो संसार-समुद्रसे तारनेवाली है। चाण्डाल भी नरेशके अश्वकी रक्षा कर रहे हैं। वे इस समय सब सामग्रियोंसे युक्त अश्वमेध यज्ञका अनुष्ठान करनेवाले हैं। आरण्यक बोले-सब सामग्रियोंको एकत्रित करके भाँति-भाँति के सुन्दर यज्ञोंका अनुष्ठान करनेसे क्या लाभ ? वे तो अत्यन्त अल्प पुण्य प्रदान करनेवाले हैं तथा उनसे क्षणभङ्गुर फलकी ही प्राप्ति होती है। स्थिर ऐश्वर्यपदको देनेवाले तो एकमात्र रमानाथ भगवान् श्रीरघुवीर ही हैं। जो लोग उन भगवान्‌को छोड़कर दूसरेकी पूजा करते हैं, वे मूर्ख हैं। जो मनुष्योंके स्मरण करनेमात्रसे पहाड़ जैसे पापोंका भी नाश कर डालते हैं, उन भगवान्को छोड़कर मूढ़ मनुष्य योग याग और व्रत आदिके द्वारा क्लेश उठाते हैं। सकाम पुरुष अथवा निष्काम योगी भी जिनका अपने हृदयमें चिन्तन करते हैं तथा जो मनुष्योंको मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं, वे भगवान् ४७९ * मूढो लोको हरिं त्यक्त्वा करोत्यन्यसमर्चनम्। रघुवीर रमानार्थ स्थिरैश्वर्यपदप्रदम् ॥ यो नरैः स्मृतमात्रोऽसौ हरते पापपर्वतम्। तं मुक्त्वा विश्यते मूढो योगयागव्रतादिभिः ॥ सकामैयोगिभिर्वापि चिन्त्यते कामवर्जितैः । अपवर्गप्रदे नृणां स्मृतमात्राखिलाघहम् ॥ (३५ । ३१–३४)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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