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________________ . अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण निकलकर उस स्थानको चले, जहाँ उनके पुत्रको पीड़ा उठ बैठा और बोला-'मेरा धनुष कहाँ है? और पहुँचानेवाले शत्रुघ्न मौजूद थे। पुष्कल यहाँसे कहाँ चला गया? मुझसे भिड़कर मेरे 'राजा सुबाहुको सुवर्णभूषित रथपर सवार हो नगरसे बाणोंके आघातसे पीड़ित होकर वह युद्ध छोड़कर कहाँ निकलते देख समस्त शत्रुओंपर प्रहार करनेवाली शत्रुघ्नकी भाग गया ?' पुत्रके ये वचन सुनकर राजा सुबाहु बड़े सेना युद्धके लिये तैयार हो गयी। राजा सुबाहके भाईका प्रसन्न हुए और उसे छातीसे लगा लिया। पिताको नाम था सुकेतु, वे गदायुद्धमें प्रवीण थे। वे भी अपने उपस्थित देख दमनने लज्जासे गर्दन झुका ली। उसका रथपर सवार होकर युद्धके लिये आये। राजाका पुत्र सारा शरीर अस्त्रोंकी मारसे घायल हो गया था, तो भी चित्राङ्ग सब प्रकारकी युद्धकलामें निपुण था। वह भी उसने बड़ी भक्तिके साथ पिताके चरणोंमें मस्तक रखकर रथारूढ़ होकर शीघ्र ही शत्रुघ्नकी मतवाली सेनापर चढ़ प्रणाम किया। बेटेको पुनः रथपर बिठाकर युद्धकर्ममें आया। उसके छोटे भाईका नाम था विचित्र । वह विचित्र कुशल राजा सुबाहुने सेनापतिसे कहा-'इस युद्ध में तुम प्रकारसे संग्राम करनेमें कुशल था। अपने भाईका दुःख अपनी सेनाको क्रौश-व्यूहके रूपमें खड़ी करो; उस सुनकर उसके मनमें बड़ी व्यथा हो रही थी, इसलिये वह व्यूहको जीतना शत्रुके लिये अत्यन्त कठिन है। उसीका भी सोनेके रथपर सवार हो । युद्धके लिये उपस्थित हुआ। आश्रय लेकर मैं राजा शत्रुघ्रकी सेनापर विजय प्राप्त इनके सिवा और भी अनेकों धनुर्धर वीर, जो सभी अस्त्र- करूंगा।' महाराज सुबाहुकी बात सुनकर सेनापतिने शस्त्रोंके ज्ञाता थे, राजाकी आज्ञा पाकर वीरोंसे भरी हुई अपने सैनिकोंका क्रौञ्च नामक सुन्दर व्यूह बनाया । उसमें संग्राम-भूमिमें गये। राजा सुबाहुने बड़े रोषमें भरकर मुखके स्थानपर सुकेतु और कण्ठकी जगह चित्राङ्ग खड़े युद्धक्षेत्रमें पदार्पण किया और वहाँ अपने पुत्रको बाणोंसे हुए। पंखोंके स्थानपर दोनों राजकुमार-दमन और पीड़ित एवं मूर्च्छित देखा । अपने प्यारे पुत्र दमनको रथको विचित्र थे। स्वयं राजा सुबाहु व्यूहके पुच्छ भागमें स्थित बैठकमें मूर्छित होकर पड़ा देख राजाको बड़ा दुःख हुआ हुए। मध्यभागमें उनकी विशाल सेना थी, जो रथ, गज, और वे पल्लवोंसे उसके ऊपर हवा करने लगे। उन्होंने अश्व और पैदल-इन चारों अङ्गोंसे शोभा पा रही कुमारके शरीरपर जलका छींटा दिया और अपने कोमल थी। इस प्रकार विचित्र क्रौञ्चव्यूहकी रचना करके हाथसे उसका पर्श किया। इससे महान् अत्रवेत्ता वीरवर सेनाध्यक्षने राजासे निवेदन किया-'महाराज! व्यूह दमनको धीरे-धीरे चेत हो आया। होशमें आते ही दमन सम्पन्न हो गया।' - * राजा सुबाहुकी प्रशंसा तथा लक्ष्मीनिधि और सुकेतुका द्वन्द्वयुद्ध शेषजी कहते हैं-मुनिवर ! राजा सुबाहुकी मनुष्य निवास करते हैं, जो भगवान् विष्णुकी भक्तिसे सेनाका आकार बड़ा भयंकर दिखायी देता था, वह पापरहित हो गये हैं। ये धर्मज्ञोंमें श्रेष्ठ राजा सुबाहु उसी मेघोंकी घटाके समान जान पड़ती थी। उसे देखकर नगरीके स्वामी हैं। इस समय ये अपने पुत्र-पौत्रोंके साथ शत्रुघ्नने अपने मन्त्री सुमतिसे गम्भीर वाणीमें तुम्हारे सामने विराजमान हैं। ये नरेश सदा अपनी ही कहा-'मन्त्रिवर ! मेरा घोड़ा किसके नगरमें जा पहुँचा स्त्रीके प्रति अनुराग रखते हैं। परायी स्त्रियोंपर कभी दृष्टि है? यह सेना तो समुद्रकी लहरोंके समान दिखायी नहीं डालते। इनके कानोंमें सदा विष्णुकी ही कथा पड़ती है।' - गूंजती है। अन्य विषयोंका प्रतिपादन करनेवाली सुमतिने कहा-राजन् ! यहाँसे पास ही चक्राङ्का कथा-वार्ता ये कभी नहीं सुनते। प्रजाकी आयके छठे नामवाली सुन्दर नगरी विराजमान है। उसके भीतर ऐसे भागसे अधिक दूसरेका धन कभी नहीं ग्रहण करते। ये
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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