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________________ पातालखण्ड] * तीर्थयात्राकी विधि एवं शालग्रामशिलाकी महिमा . 453 समय जिह्वापर भगवान्का पवित्र नाम आता है और बारंबार पीटते हुए लोहशङ्क, कुम्भीपाक अथवा अतिरौरव उसीकी छातीपर तथा आसपास शालग्रामशिला मौजूद नरकमें ले जायेंगे।' ऐसा कहकर यमदूत ज्यों ही उसे ले रहती है। प्राणोंके निकलते समय अपने विश्वास या जानेको उद्यत हुए त्यों ही महाविष्णुके चरणकमलोंकी भावनामें ही यदि शालग्रामशिलाकी स्फुरणा हो जाय तो सेवा करनेवाले एक भक्त महात्मा वहाँ आ पहुँचे। उन उस जीवकी निःसन्देह मुक्ति हो जाती है। पूर्वकालमें वैष्णव महात्माने देखा कि यमदूत पाश, मुगर और दण्ड भगवान्ने बुद्धिमान् राजा अम्बरीषसे कहा था कि आदि कठोर आयुध धारण किये हुए हैं तथा पुल्कसको 'ब्राह्मण, संन्यासी तथा चिकनी शालग्रामशिला-ये लोहेकी साँकलोंसे बांधकर ले जानेको उद्यत हैं। तीन इस भूमण्डलपर मेरे स्वरूप हैं। पापियोंका पाप भगवद्भक्त महात्मा बड़े दयालु थे। उस समय नाश करनेके लिये मैंने ही ये स्वरूप धारण किये हैं।' पुल्कसकी अवस्था देखकर उनके हृदयमें अत्यन्त करुणा जो अपने किसी प्रिय व्यक्तिको शालग्रामकी पूजा भर आयी और उन्होंने मन-ही-मन इस प्रकार विचार करनेका आदेश देता है वह स्वयं तो कृतार्थ होता ही है, किया-यह पुल्कस मेरे समीप रहकर अत्यन्त कठोर अपने पूर्वजोंको भी शीघ्र ही वैकुण्ठमें पहुँचा देता है। यातनाको प्राप्त न हो, इसलिये मैं अभी यमदूतोंसे इसको इस विषयमें काम-क्रोधसे रहित वीतराग महर्षिगण छुटकारा दिलाता हूँ।' ऐसा सोचकर वे कृपालु मुनीश्वर एक प्राचीन इतिहासका उदाहरण दिया करते हैं। पूर्व- हाथमें शालग्रामशिला लेकर पुल्कसके निकट गये और कालकी बात है, धर्मशून्य मगधदेशमें एक पुल्कस- भगवान् शालग्रामका पवित्र चरणामृत, जिसमें तुलसीदल जातिका मनुष्य रहता था, जो लोगोंमें शबरके नामसे भी मिला हुआ था, उसके मुखमें डाल दिया। फिर प्रसिद्ध था। सदा अनेकों जीव-जन्तुओंकी हत्या करना और दूसरोंका धन लूटना, यही उसका काम था। राग-द्वेष और काम-क्रोधादि दोष सर्वदा उसमें भरे रहते थे। एक दिन वह व्याध समस्त प्राणियोंको भय पहुँचाता हुआ घूम रहा था, उसके मनपर मोह छाया हुआ था; इसलिये वह इस बातको नहीं जानता था कि उसका काल समीप आ पहुँचा है। यमराजके भयङ्कर दूत हाथों में मुद्र और पाश लिये वहाँ पहुँचे। उनके ताँबे-जैसे लाल-लाल केश, बड़े-बड़े नख तथा लंबी-लंबी दाढ़ें थीं। वे सभी काले-कलूटे दिखायी देते थे तथा हाथोंमें लोहेकी साँकलें लिये हुए थे। उन्हें देखते ही प्राणियोंको मूर्छा आ जाती थी। वहाँ पहुँचकर वे कहने लगे-'सम्पूर्ण जीवोंको भय पहुँचानेवाले इस पापीको बाँध लो।' तदनन्तर सब यमदूत उसे लोहेके पाशसे बाँधकर बोले-'दुष्ट ! दुरात्मा ! तूने कभी मनसे भी शुभकर्म नहीं किये; इसलिये हम तुझे रौरव-नरकमें डालेंगे। जन्मसे / लेकर अबतक तूने कभी भगवान्की सेवा नहीं की। उसके कानमें उन्होंने राम-नामका जप किया, मस्तकपर समस्त पापोंको दूर करनेवाले श्रीनारायणदेवका कभी तुलसी रखी और छातीपर महाविष्णुकी शालग्रामशिला स्मरण नहीं किया; अतः धर्मराजकी आज्ञासे हम तुझे रखकर कहा-'यातना देनेवाले यमदूत यहाँसे चले
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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