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________________ पातालखण्ड - तीर्थयात्राकी विधि एवं शालग्रामशिलाकी महिमा . और वह अत्यन्त सुन्दर दिखायी देने लगा। चार भुजा परिवर्तनपर विस्मय-विमुग्ध हो रहा हूँ।' बालककी बात आदि भगवत्सारूप्यको प्राप्त हो शङ्ख, चक्र आदि धारण सुनकर हम सब लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ और हमने किये जब वह बालक घर आया तो हमलोगोंने बारम्बार भी इन परम दुर्लभ भगवान्का दर्शन किया। साथ ही सब उसकी ओर देखकर पूछा-'तुम्हारा यह अद्भुत खरूप प्रकारके स्वादसे परिपूर्ण जो अन्न आदिका प्रसाद मिला, कैसे हो गया?' तब बालक अपने आश्चर्ययुक्त वृत्तान्तका उसको भी खाया। उसके खाते ही भगवान्की कृपासे हम वर्णन करने लगा-'मैं नीलगिरिके शिखरपर गया था, सब लोग चार भुजाधारी हो गये। साधुश्रेष्ठ ! तुम भी वहाँ मैंने देवाधिदेव भगवानका दर्शन किया है, वहीं जाकर भगवानका दर्शन करो, वहाँ अन्नका प्रसाद ग्रहण भगवान्को भोग लगाया हुआ मनोहर प्रसाद भी मुझे करके तुम भी चतुर्भुज हो जाओगे। विप्रवर ! तुमने मिल गया था, जिसके भक्षण करनेमात्रसे इस समय मेरा हमलोगोंसे जो बात पूछी और जिसको कहनेके लिये हमें ऐसा चतुर्भुज खरूप हो गया है। मैं स्वयं ही अपने इस आज्ञा दी थी, वह सब वृत्तान्त हमलोगोंने कह सुनाया। तीर्थयात्राकी विधि, राजा रत्नग्रीवकी यात्रा तथा गण्डकी नदी एवं शालग्रामशिलाकी महिमाके प्रसंगमें एक पुल्कसकी कथा ब्राह्मण कहते हैं-राजन् ! भीलोंके ये अद्भुत शरीरमें झुर्रियाँ पड़ गयी हो, सिरके बाल पक गये हों वचन सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, साथ ही मैं बहुत अथवा वह अभी नौजवान हो, आयी हुई मौतको कोई प्रसन्न भी हुआ। पहले गङ्गा-सागर-संगममें स्नान करके नहीं टाल सकता; ऐसा समझकर भगवान्की शरणमें मैंने अपने शरीरको पवित्र किया। फिर मणियों और जाना चाहिये।* भगवान्के कीर्तन, श्रवण-वन्दन तथा माणिक्योंसे चित्रित नीलाचलके शिखरपर चढ़ गया। पूजनमें ही अपना मन लगाना चाहिये / स्त्री, पुत्रादि, अन्य महाराज ! वहाँ जाकर मैंने देवता आदिसे वन्दित संसारी वस्तुओंमें नहीं, यह सारा प्रपञ्च नाशवान, क्षणभर भगवानका दर्शन किया और उन्हें प्रणाम करके कृतार्थ हो रहनेवाला तथा अत्यन्त दुःख देनेवाला है, परन्तु भगवान् गया। भगवान्का प्रसाद ग्रहण करनेसे मुझे शङ्ख, चक्र जन्म, मृत्यु और जरा-तीनों ही अवस्थाओंसे परे हैं, वे आदि चिह्नोंसे सुशोभित चतुर्भुज स्वरूपकी प्राप्ति हुई। भक्ति-देवीके प्राणवल्लभ और अच्युत (अविनाशी) पुरुषोत्तमके दर्शनसे पुनः मुझको गर्भ में नहीं प्रवेश करना हैं-ऐसा विचारकर भगवानका भजन करना उचित है। पड़ेगा। राजन् ! तुम भी शीघ्र ही नीलाचलको जाओ और मनुष्य काम, क्रोध, भय, द्वेष, लोभ और दम्भसे अथवा गर्भवासके दुःखसे छूटकर अपने आत्माको कृतार्थ करो। जिस किसी प्रकारसे भी यदि भगवान्का भजन करे तो ___ उन परम बुद्धिमान् श्रेष्ठ ब्राह्मणके वचन सुनकर उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता। भगवान्का ज्ञान होता है राजा रत्नग्रीवका सारा शरीर पुलकित हो गया और पापरहित साधुसंग करनेसे; साधु वे ही हैं जिनकी कृपासे उन्होंने मुनिसे तीर्थयात्राकी विधि पूछी। मनुष्य संसारके दुःखसे छुटकारा पा जाते हैं। महाराज ! तब ब्राह्मणने कहा-राजन् ! तीर्थयात्राकी काम और लोभसे रहित तथा वीतराग साधु पुरुष जिस उत्तम विधिका वर्णन आरम्भ करता हूँ, सुनो; इससे विषयका उपदेश देते हैं, वह संसार-बन्धनकी निवृत्ति देव-दानववन्दित भगवानकी प्राप्ति हो जाती है। मनुष्यके करनेवाला होता है। / तीर्थो में श्रीरामचन्द्रजीके भजनमें * वलीपलितदेहो वा यौवनेनान्वितोऽपि वा। ज्ञात्वा मृत्युमनिस्तीर्य हरि शरणमाव्रजेत् // (19 / 10) +स हरियिते साधुसंगमात् पापवर्जितात् / येषां कृपातः पुरुषा भवन्त्यसुखवर्जिताः // ते साधवः शान्तरागाः कामलोभविवर्जिताः / अवन्ति यन्महाराज तत्संसारनिवर्तकम्। (19 / 14-15)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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