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. . अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण ..................................................................amretterre.....
उसके देवता साक्षात् ब्रह्माजी हैं। दूसरा मध्यम पुष्कर इस लोकमें ब्रह्माजीका भक्त कहलाता है? मनुष्योंमें है, जिसके देवता विष्णु हैं तथा तीसरा कनिष्ठ पुष्कर है, कैसे लोग ब्रह्मभक्त माने गये हैं ? यह मुझे बताइये। जिसके देवता भगवान् रुद्र हैं। यह पुष्कर नामक वन पुलस्त्यजी बोले-राजन् ! भक्ति तीन प्रकारकी आदि, प्रधान एवं गुह्य क्षेत्र है। वेदमें भी इसका वर्णन कही गयी है—मानस, वाचिक और कायिक । इसके आता है। इस तीर्थमें भगवान् ब्रह्मा सदा निवास करते सिवा भक्तिके तीन भेद और हैं-लौकिक, वैदिक तथा हैं। उन्होंने भूमण्डलके इस भागपर बड़ा अनुग्रह किया आध्यात्मिक । ध्यान-धारणापूर्वक बुद्धिके द्वारा वेदार्थका है। पृथ्वीपर विचरनेवाले सम्पूर्ण जीवापर कृपा करनेके जो विचार किया जाता है, उसे मानस भक्ति कहते हैं। लिये ही ब्रह्माजीने इस तीर्थको प्रकट किया है। यहाँको यह ब्रह्माजीकी प्रसन्नता बढ़ानेवाली है। मन्त्र-जप, यज्ञवेदीको उन्होंने सुवर्ण और हीरेसे मढ़ा दिया तथा वेदपाठ तथा आरण्यकोंके जपसे होनेवाली भक्ति नाना प्रकारके रत्नोंसे सुसज्जित करके उसके फर्शको सब वाचिक कहलाती है। मन और इन्द्रियोंको रोकनेवाले प्रकारसे सुशोभित एवं विचित्र बना दिया। तत्पश्चात् व्रत, उपवास, नियम, कृच्छ्र, सान्तपन तथा चान्द्रायण लोकपितामह भगवान् ब्रह्माजी वहाँ आनन्दपूर्वक रहने आदि भिन्न-भिन्न व्रतोंसे, ब्रह्मकृच्छ्र नामक उपवाससे एवं लगे। साथ ही भगवान् श्रीविष्णु, रुद्र, आठों वसु, दोनों अन्यान्य शुभ नियमोंके अनुष्ठानसे जो भगवानकी अश्विनीकुमार, मरुद्गण तथा स्वर्गवासी देवता भी आराधना की जाती है, उसको कायिक भक्ति कहते हैं। देवराज इन्द्रके साथ वहाँ आकर विहार करने लगे। यह यह द्विजातियोंकी त्रिविध भक्ति बतायी गयी। गायके घी, तीर्थ सम्पूर्ण लोकोंपर अनुग्रह करनेवाला है। मैंने इसकी दूध और दही, रत्न, दीप, कुश, जल, चन्दन, माला, यथार्थ महिमाका तुमसे वर्णन किया है। जो ब्राह्मण विविध धातुओं तथा पदार्थ; काले अगरकी सुगन्धसे अग्निहोत्र-परायण होकर संहिताके क्रमसे विधिपूर्वक युक्त एवं घी और गूगुलसे बने हुए धूप, आभूषण, मन्त्रोंका उच्चारण करते हुए इस तीर्थमें वेदोंका पाठ करते सुवर्ण और रत्न आदिसे निर्मित विचित्र-विचित्र हार, हैं, वे सब लोग ब्रह्माजीके कृपापात्र होकर उन्होंके समीप नृत्य, वाद्य, संगीत, सब प्रकारके जंगली फल-मूलोंके निवास करते हैं।
उपहार तथा भक्ष्य-भोज्य आदि नैवेद्य अर्पण करके भीष्पजीने पूछा-भगवन्! तीर्थनिवासी मनुष्य ब्रह्माजीके उद्देश्यसे जो पूजा करते हैं, वह मनुष्योंको पुष्कर वनमें किस विधिसे रहना चाहिये? लौकिक भक्ति मानी गयी है। ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा क्या केवल पुरुषोंको ही वहाँ निवास करना चाहिये या सामवेदके मन्त्रोंका जप और संहिताओंका अध्यापन स्त्रियोंको भी? अथवा सभी वर्गों एवं आश्रमोंके लोग आदि कर्म यदि ब्रह्माजीके उद्देश्यसे किये जाते हैं, तो वहाँ निवास कर सकते हैं?
वह वैदिक भक्ति कहलाती है। वेद-मन्त्रोंके उच्चारणपुलस्त्यजी बोले-राजन् ! सभी वर्गों एवं पूर्वक हविष्यकी आहुति देकर जो क्रिया सम्पन्न की आश्रमोके पुरुषों और स्त्रियोंको भी उस तीर्थमें निवास जाती है वह भी वैदिक भक्ति मानी गयी है। अमावास्या करना चाहिये। सबको अपने-अपने धर्म और आचारका अथवा पूर्णिमाको जो अग्निहोत्र किया जाता है, यज्ञोंमें पालन करते हुए दम्भ और मोहका परित्याग करके रहना जो उत्तम दक्षिणा दी जाती है, तथा देवताओंको जो उचित है। सभी मन, वाणी और कर्मसे ब्रह्माजीके भक्त पुरोडाश और चरु अर्पण किये जाते है ये सब वैदिक एवं जितेन्द्रिय हों। कोई किसीके प्रति दोष-दृष्टि न करे। भक्तिके अन्तर्गत है। इष्टि, धृति, यज्ञ-सम्बन्धी सोमपान सब मनुष्य सम्पूर्ण प्राणियोंके हितैषी हों; किसीके भी तथा अग्नि, पृथ्वी, वायु, आकाश, चन्द्रमा, मेघ और हृदयमें खोटा भाव नहीं रहना चाहिये।
सूर्यके उद्देश्यसे किये हुए जितने कर्म हैं, उन सबके भीष्पजीने पूछा-ब्रह्मन् ! क्या करनेसे मनुष्य देवता ब्रह्माजी ही हैं।