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________________ पातालखण्ड ] * शत्रुनका राजा सुमदको साथ लेकर आगे जाना और च्यवनका सुकन्यासे ब्याह . 437 कालमSRA और उन्होंने सब लोगोंको आज्ञा दी-'धन-धान्यसे प्रकट की तथा वे वीरोंसे सुशोभित हो अपने अश्वरनको सम्पन्न जो मेरे आत्मीय जन हैं, वे सब लोग अपने-अपने घरोंपर तोरण आदि माङ्गलिक वस्तुओंकी रचना करें।' इन सब बातोंके लिये आज्ञा देकर स्वयं राजा सुमद अपने पुत्र-पौत्र और रानी आदि समस्त परिवारको साथ लेकर शत्रुघ्रके पास गये। शत्रुघ्नने पुष्कल आदि योद्धाओं तथा मन्त्रियोंके साथ देखा, वीर राजा सुमद आ रहे हैं। राजाने आकर बड़ी प्रसन्नताके साथ शत्रुघ्नको प्रणाम किया और कहा-'प्रभो! आज मैं धन्य और कृतार्थ हो गया। आपने यहाँ दर्शन देकर मेरा बड़ा सत्कार किया। मैं चिरकालसे इस अश्वके आगमनकी प्रतीक्षा कर रहा था। माता कामाक्षा देवीने पूर्वकालमें जिस बातके लिये मुझसे कहा था, वह आज और इस समय पूरी हुई है। श्रीरामके छोटे भाई महाराज शत्रुनजी ! अब चलकर मेरी नगरीको देखिये, यहाँके मनुष्योंको कृतार्थ कीजिये तथा मेरे समस्त कुलको पवित्र बनाइये।' ऐसा कहकर राजाने चन्द्रमाके समान कान्तिवाले श्वेत गजराजपर शत्रुघ्न और महावीर पुष्कलको चढ़ाया तथा पीछे स्वयं भी सवार हुए। फिर साथ लिये राज-मन्दिरमें उतरे / उस समय सारा राजभवन महाराज सुमदकी आज्ञासे भेरी और पणव आदि बाजे तोरण आदिसे सजाया गया था तथा स्वयं राजा सुमद बजने लगे, वीणा आदिकी मधुर ध्वनि होने लगी तथा इन शत्रुघ्नजीको आगे करके चल रहे थे। महलमें पहुंचकर समस्त वाद्योंकी तुमुल ध्वनि चारों ओर व्याप्त हो गयी। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक अर्घ्य आदिके द्वारा शत्रुघ्नजीका धीरे-धीरे नगरमें आकर सब लोगोंने शत्रुनजीका पूजन किया और अपना सब कुछ भगवान् श्रीरामकी अभिनन्दन किया-उनकी वृद्धिके लिये शुभकामना सेवामे अर्पण कर दिया। शत्रुघ्नका राजा सुमदको साथ लेकर आगे जाना और च्यवन मुनिके आश्रमपर पहुँचकर सुमतिके मुखसे उनकी कथा सुनना-च्यवनका सुकन्यासे ब्याह शेषजी कहते हैं-तदनन्तर नरश्रेष्ठ राजा सुमदने न? ये सब लोग धन्य हैं, जो सदा आनन्दमग्न होकर श्रीरघुनाथजीकी उत्तम कथा सुननेके लिये उत्सुक होकर अपने नेत्र-पुटोंके द्वारा श्रीरघुनाथजीके मुखारविन्दका स्वागत-सत्कारसे सन्तुष्ट हुए शत्रुघ्नजीसे वार्तालाप मकरन्द पान करते रहे हैं। नरश्रेष्ठ ! अब मेरी आरम्भ किया। कुल-परम्परा तथा राज्य-भूमि आदि सब वस्तुएँ पूर्ण सुमद बोले-महामते ! सम्पूर्ण लोकोंके सफल हो गयीं। दयासे द्रवित होनेवाली माता शिरोमणि, भक्तोंकी रक्षाके लिये अवतार ग्रहण कामाक्षा देवीने पूर्वकालमें मुझपर बड़ी कृपा की थी। करनेवाले तथा मुझपर निरन्तर अनुग्रह रखनेवाले राजाओंमें श्रेष्ठ वीर सुमदके ऐसा कहनेपर शत्रुनने भगवान् श्रीराम अयोध्यामें सुखपूर्वक तो विराज रहे हैं श्रीरघुनाथजीके गुणोंको प्रकट करनेवाली सब कथाएँ
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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