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________________ पातालखण्ड ] * श्रीराम-दरबारमें अगस्त्यजीका आगमन, देवताओंकी प्रार्थनासे भगवानका अवतार . 421 सुखी और विभीषण राजा हुए-यह बड़े सौभाग्यको महान् सौभाग्यजनक फलको प्रकट करनेवाला है; बात है। श्रीराम ! आज आपका दर्शन पाकर मेरे मनका खाली खजाना भर गया। मेरे सारे पाप नष्ट हो गये। यो कहकर महर्षि कुम्भज चुप हो गये। भगवान्के दर्शनजनित आहादसे उनका चित्त विह्वल हो रहा था। उस समय श्रीरघुनाथजीने उन ज्ञान-विशारद मुनिसे पुनः इस प्रकार प्रश्न किया- 'मुने ! मैं आपसे कुछ बातें पूछ रहा हूँ, आप उन्हें विस्तारपूर्वक बतलावें। देवताओंको पीड़ा देनेवाला वह रावण, जिसे मैंने मारा है, कौन था ? तथा उस दुरात्माका भाई कुम्भकर्ण भी कौन था? उसकी जाति-उसके बन्धु-बान्धव कौन थे? सर्वज्ञ ! आप इन सब बातोंको विस्तारके साथ जानते हैं, अतः मुझे सब बताइये।' भगवान्की ये बातें सुनकर तपोनिधि कुम्भज ऋषिने इन सबका उत्तर देना आरम्भ किया"राजन् ! सम्पूर्ण जगत्की सृष्टि करनेवाले जो ब्रह्माजी हैं, उनके पुत्र महर्षि पुलस्त्य हुए। पुलस्त्यजीसे मुनिवर विश्रवाका जन्म हुआ, जो वेदविद्यामें अत्यन्त प्रवीण थे। उनकी दो पत्नियाँ थीं, जो बड़ी पतिव्रता और सदाचारिणी क्योंकि इस समय मुझे आपके इन युगल चरणोंका दर्शन थीं। उनमेसे एकका नाम मन्दाकिनी था और दूसरी मिला है जो अत्यन्त पुण्य प्रदान करनेवाला है। इस कैकसी नामसे प्रसिद्ध थी। पहली स्त्री मन्दाकिनीके प्रकार स्तुतियुक्त पदोंसे माता-पिताका स्तवन करके कुबेर गर्भसे कुबेरका जन्म हुआ, जो लोकपालके पदको प्राप्त पुनः अपने भवनको लौट गये। रावण बड़ा बुद्धिमान् हुए हैं। उन्होंने भगवान् शङ्करके प्रसादसे लङ्कापुरीको था, उसने कुबेरको देखकर अपनी मातासे पूछा-'माँ ! अपना निवास स्थान बनाया था। कैकसी विद्युन्माली ये कौन है, जो मेरे पिताजीके चरणोंकी सेवा करके फिर नामक दैत्यकी पुत्री थी, उसके गर्भसे रावण, कुम्भकर्ण लौट गये है? इनका विमान तो वायुके समान वेगवान् तथा पुण्यात्मा विभीषण-ये तीन महाबली पुत्र उत्पन्न है। इन्हें किस तपस्यासे ऐसा विमान प्राप्त हुआ है?' हुए। महामते ! इनमें रावण और कुम्भकर्णकी बुद्धि शेषजी कहते हैं-मुने ! रावणका वचन सुनकर अधर्ममें निपुण हुई; क्योंकि वे दोनों जिस गर्भसे उत्पन्न उसकी माता रोषसे विकल हो उठी और कुछ आँखें टेढ़ी हुए थे, उसकी स्थापना सन्ध्याकालमें हुई थी। करके अनमनी होकर बेटेसे बोली- अरे ! मेरी बात एक समयकी बात है, कुबेर परम शोभायमान सुन, इसमें बहुत शिक्षा भरी हुई है। जिनके विषयमें तू पुष्पक विमानपर आरूढ़ हो माता-पिताका दर्शन करनेके पूछ रहा है, वे मेरी सौतकी कोखके रन-कुबेर यहाँ लिये उनके आश्रममें गये। वहाँ जाकर वे अधिक उपस्थित हुए थे, जिन्होंने अपनी माताके विमल वंशको कालतक माता-पिताके चरणोंमें पड़े रहे। उस समय अपने जन्मसे और भी उज्ज्वल बना दिया है। परन्तु तू उनका हदय हर्षसे विह्वल हो रहा था और सम्पूर्ण तो मेरे गर्भका कीड़ा है, केवल अपना पेट भरनेमें ही शरीरमें रोमाञ्च हो आया था। वे बोले-'माता और लगा हुआ है। कुवेरने तपस्यासे भगवान् शङ्करको सन्तुष्ट पिताजी ! आजका दिन मेरे लिये बहुत ही सुन्दर तथा करके लङ्काका निवास, मनके समान वेगशाली विमान
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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