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________________ ॥ॐ श्रीपरमात्मने नमः॥ संक्षिप्त पद्मपुराण पाताल-खण्ड शेषजीका वात्स्यायन मुनिसे रामाश्वमेधकी कथा आरम्भ करना, श्रीरामचन्द्रजीका लङ्कासे अयोध्याके लिये विदा होना PHE नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। आपको ऐसी बुद्धि प्राप्त हुई है, जो श्रीरामचन्द्रजीके देवी सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥* युगल चरणारविन्दोंका मकरन्द पान करनेके लिये ऋषि बोले-महाभाग सूतजी ! हमने आपके लोलुप रहती है। सभी ऋषि-महर्षि साधु पुरुषोंके मुखसे समूचे स्वर्ग-खण्डकी मनोहर कथा सुनी; LIN आयुष्मन् ! अब हमलोगोंको श्रीरामचन्द्रजीका चरित्र | सुनाइये। सूतजीने कहा-महर्षिगण ! एक समय मुनिवर वात्स्यायनने पृथ्वीको धारण करनेवाले नागराज भगवान् अनन्तसे इस परम निर्मल कथाके विषयमें प्रश्न किया। श्रीवात्स्यायन बोले-भगवन् ! शेषनाग ! मैंने आपके मुखसे संसारकी सृष्टि और प्रलय आदिके विषयकी सब बातें सुनौं; भूगोल, खगोल, ग्रह-तारे और नक्षत्र आदिकी गतिका निर्णय, महत्तत्त्व आदिकी सृष्टियोंके तत्त्वका पृथक्-पृथक् निरूपण तथा सूर्यवंशी राजाओंके अद्भुत चरित्रका भी मैंने श्रवण किया है। इसी प्रसङ्गमें आपने भगवान् श्रीरामचन्द्रजीकी कथाका भी वर्णन किया है, जो अनेकों महापापोंको दूर करनेवाली है। परन्तु उन भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके अश्वमेध यज्ञकी EिAM कथा संक्षेपसे ही सुननेको मिली, अतः अब मैं उसे समागमको श्रेष्ठ बतलाते हैं। इसका कारण यही है कि आपके द्वारा विस्तारके साथ सुनना चाहता हूँ। यह वही सत्सङ्ग होनेपर श्रीरघुनाथजीकी उस कथाके लिये कथा है जो कहने, सुनने तथा स्मरण करनेसे बड़े-बड़े अवसर मिलता है, जो समस्त पापोंका नाश करनेवाली पातकोको भी नष्ट कर डालती है। इतना ही नहीं, वह है। देवता और असुर प्रणाम करते समय अपने मनोवाञ्छित वस्तुको देनेवाली तथा भक्तोंके चित्तको मुकुटोंकी मणियोंसे जिनके चरणोंकी आरती उतारते हैं, प्रसन करनेवाली है। उन्हीं भगवान् श्रीरामका स्मरण कराकर आपने मुझपर भगवान् शेषने कहा-ब्रह्मन्! आप बहुत बड़ा अनुग्रह किया है। जहाँ ब्रह्मा आदि देवता भी ब्राह्मणकुलमें श्रेष्ठ एवं धन्यवादके पात्र है; क्योंकि मोहित होकर कुछ नहीं जान पाते, उसी श्रीरघुनाथ Milijan * भगवान् नारायण, पुरुषश्रेष्ठ र, उनकी लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती तथा उसके वक्ता महर्षि वेदव्यासको नमस्कार करके जय (इतिहास-पुराण) का पाठ करना चाहिये।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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