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________________ • अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण सुख देनेवाला है। दान स्वर्गकी सीढ़ी है, दान सब तथा मनसे भगवान्के चरणोंका ध्यान करके जीव पापोंका नाश करनेवाला है। गोविन्दका भक्तिपूर्वक कृतार्थ हो जाता है-इसमें अन्यथा विचार करनेकी किय हुआ भजन महान् पुण्यकी वृद्धि करनेवाला है। आवश्यकता नहीं है। विद्वान् पुरुष भगवान्में ही मन यदि मनुष्यमें बल हो तो उसे व्यर्थ ही नष्ट न करे। लगाये और हृदयमें उन्हींकी भावना करे; ऐसा आलस्य छोड़कर भगवान्के सामने नृत्य करे और गीत करनेवाला मनुष्य अन्तमें भगवान्को ही प्राप्त होता गाये। मनुष्यके पास जो कुछ हो, उसे भगवान् है-इसमें कुछ विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है। श्रीकृष्णको समर्पित कर दे। श्रीकृष्णको समर्पित की हुई जो मनसे भी निरन्तर चिन्तन करनेपर भक्तको अपना पद वस्तु कल्याणदायिनी होती है और किसीको दी हुई वस्तु प्रदान कर देते हैं, उन आदि-अन्तरहित भगवान् केवल दुःख देनेवाली होती है। नेत्रोंसे श्रीहरिकी ही नारायणका कौन मनुष्य सेवन नहीं करेगा। जो प्रतिमा आदिका दर्शन तथा कानोंसे श्रीकृष्णके गुण और श्रीविष्णुके चरणारविन्दोंमें निरन्तर चित्त लगाये रहता है, नामोंका ही अहर्निश श्रवण करे। विद्वान् पुरुषोंको अपनी भगवान्की प्रसन्नताके लिये अपनी शक्तिके अनुसार दान जिलासे श्रीहरिके चरणोदकका आस्वादन करना चाहिये। किया करता है तथा उन्हीके युगल चरणोंमें प्रणाम नासिकासे श्रीगोविन्दके चरणारविन्दोंपर चढ़े हुए करता, मन लगाता और अनुराग रखता है, वह इस श्रीतुलसीदलको सँघकर, त्वचासे हरिभक्तका स्पर्श कर मनुष्यलोकमें निश्चय ही पूज्यभावको प्राप्त होता है।* श्रीहरिके पुराणमय स्वरूपका वर्णन तथा पद्मपुराण और स्वर्गखण्डका माहात्म्य सूतजी कहते है-ब्राह्मणो ! इस प्रकार संसारमें (५) श्रीमद्भागवतको भगवान्का ऊरुयुगल कहा गया जिनकी महिमा समस्त लोकोंका उद्धार करनेवाली है, है। (६) नारदीय पुराण नाभि है। (७) मार्कण्डेयपुराण उन नानारूपधारी परमेश्वर विष्णुका एक विग्रह पुराण भी दाहिना तथा (८) अग्निपुराण बायाँ चरण है। है। पुराणोंमें पापुराणका बहुत बड़ा महत्त्व है। (९) भविष्यपुराण महात्मा श्रीविष्णुका दाहिना घुटना (१) ब्रह्मपुराण श्रीहरिका मस्तक है। (२) पद्मपुराण है। (१०) ब्रह्मवैवर्तपुराणको बायाँ घुटना बताया गया हृदय है। (३) विष्णुपुराण उनकी दाहिनी भुजा है। है। (११) लिङ्गपुराण दाहिना और (१२) वाराहपुराण (४) शिवपुराण उन महेश्वरकी बायीं भुजा है। बायाँ गुल्फ (घुडी) है। (१३) स्कन्दपुराण रोएँ तथा * यदासौ कृष्यते याम्यैर्दूतैः किं धनमन्वियात् । तस्माद् द्विजातिसत्कार्य द्रविणं सर्वसौख्यदम्॥ दानं स्वर्गस्य सोपान दान किल्विषनाशनम । गोविन्दभक्तिभजन महापण्यविवर्धनम् ॥ बलं यदि भवेन्मल्ये न वृथा तव्ययं चरेत् । हरेरने नल्यगीतं कर्यादेवमतन्द्रितः ।। यत्किञ्चिद् विद्यते पुंसां तच कृष्णे समर्पयेत् । कृष्णार्पितं कुशलदमन्यार्पितमसौख्यदम्।। चक्षुभ्यां श्रीहरेरेव प्रतिमादिनिरूपणम् । श्रोत्राभ्यां कलयेत्कृष्णगुणनामान्यहर्निशम् ॥ जिदया हरिपादाम्बु स्वादितव्यं विचक्षणैः । प्राणेनानाय गोविन्दपादायतुलसीदलम् ॥ खचाऽऽस्पृश्य हरेर्भक्तं मनसाऽऽध्याय तत्पदम् । कृतार्थों जायते जन्तुर्नात्र कार्या विचारणा ॥ तन्मना हि भवेत्प्रज्ञस्तथा स्यात्तद्गताशयः । तमेवान्तेऽभ्येति लोको नात्र कार्या विचारणा ॥ चेतसा चाप्यनुध्यातः स्वपदं यः प्रयच्छति । नारायणमनाद्यन्तं न तं सेवेत को जनः॥ सततनियतचित्तो विष्णुपादारविन्दे वितरणमनुशक्ति प्रीतये तस्थ कुर्यात् । नतिमतिरतिमस्याभिद्ये संविदध्यान् स हि खलु नरलोके पूज्यतामामुयाच ॥ (६१ ॥ ९३-१०२)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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