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________________ ४०६ . अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त परापुराण इसमें सन्देह नहीं कि साक्षात् श्रीहरि ही उस अन्नको अत्यन्त दुर्लभ है। पुराणकी कथा बड़ी निर्मल है तथा भोग लगाते हैं। ब्राह्मणोंके रहनेसे ही यह पृथ्वी धन्य अन्तःकरणको निर्मल बनानेका उत्कृष्ट साधन है। मानी गयी है। उनके हाथमें जो कुछ दिया जाता है, वह व्यासरूपधारी श्रीहरिने वेदार्थोका संग्रह करके पुराणकी भगवान्के हाथमें ही समर्पित होता है। उनको नमस्कार रचना की है; अतः उसके श्रवणमें तत्पर रहना चाहिये। करनेसे पापोका नाश होता है। ब्राह्मणकी वन्दना करनेसे पुराण में धर्मका निश्चय किया गया है और धर्म साक्षात् मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पापोंसे मुक्त हो जाता है। केशवका स्वरूप है; अतः विद्वान् पुरुष पुराण सुन लेनेपर इसलिये ब्राह्मण सत्पुरुषोंके लिये विष्णुबुद्धिसे आराधना विष्णुरूप हो जाता है। एक तो ब्राह्मण ही साक्षात् करनेके योग्य हैं। भूखे ब्राह्मणके मुखमें यदि कुछ अन्न श्रीहरिका रूप है, दूसरे पुराण भी वैसा ही है; अतः उन दिया जाय तो दाता मृत्युके पश्चात् परलोकमें जानेपर दोनोंका सङ्ग पाकर मनुष्य विष्णुरूप ही हो जाता है। करोड़ कल्पोंतक अमृतकी धारासे अभिषिक्त होता है। इसी प्रकार गङ्गाजीके जलसे अभिषिक्त होनेपर ब्राह्मणोंका मुख ऊसर और काँटोंसे रहित बहुत बड़ा मय पर as मनुष्य अपने पापोंको दूर भगा देता है; भगवान् केशव है; वहाँ यदि कुछ बोया जाता है तो उसका कोटि ही जलके रूपमें इस भूमण्डलका पापसे उद्धार कर रहे कोटिगुना अधिक फल प्राप्त होता है। ब्राह्मणको हैं। यदि वैष्णव पुरुष विष्णुके भजनकी अभिलाषा घृतसहित भोजन देकर मनुष्य एक कल्पतक आनन्दका रखता हो तो उसे गङ्गाजीके जलका निर्मल अभिषेक अनुभव करता है। जो ब्राह्मणको संतुष्ट करनेके लिये प्राप्त करना चाहिये, क्योंकि वह अन्तःकरणको शुद्ध नाना प्रकारके सुन्दर मिष्टान्न दान करता है, उसे कोटि कल्पोंतक महान् भोग-सम्पन्न लोक प्राप्त होते हैं। करनेका उत्तम साधन है। इस पृथ्वीपर भगवती गङ्गा विष्णुभक्ति प्रदान करनेवाली बतायी जाती हैं। लोकोंका ब्राह्मणको आगे करके ब्राह्मणके द्वारा ही कही हुई उद्धार करनेवाली गङ्गा वास्तवमें श्रीविष्णुका ही स्वरूप पुराण-कथाका प्रतिदिन श्रवण करना चाहिये। पुराण बड़े-बड़े पापोंके वनको भस्म करनेके लिये महान् है। ब्राह्मणोंमें, पुराणोंमें, गङ्गामें, गौओंमें तथा पीपलके दावानलके समान है। पुराण सब तीर्थोकी अपेक्षा श्रेष्ठ वृक्षमें नारायण-बुद्धि करके मनुष्योंको उनके प्रति तीर्थ बताया जाता है, जिसके चतुर्थाशका श्रवण करनेसे निष्काम भक्ति करनी चाहिये।* तत्त्वज्ञ पुरुषोंने इन्हें श्रीहरि प्रसन्न हो जाते हैं। जैसे भगवान् श्रीहरि सम्पूर्ण विष्णु विष्णुका प्रत्यक्ष स्वरूप निश्चित किया है। अतः विष्णुजगत्को प्रकाश देने तथा सबको दृष्टि प्रदान करनेके भक्तिकी अभिलाषा रखनेवाले पुरुषोंको सदा इनकी पूजा लिये सूर्यका स्वरूप धारण करके विचरते हैं. उसी प्रकार करना चाहिये। श्रीहरि ही अन्तःकरणमें ज्ञानका प्रकाश फैलानेके लिये विष्णुमें भक्ति किये बिना मनुष्योंका जन्म निष्फल पुराणोंका रूप धारण करके जगत्में विचरते हैं। पुराण बताया जाता है। कलिकाल ही जिसके भीतर जल-राशि परम पावन शास्त्र है। अतः यदि श्रीहरिकी प्रसन्नता प्राप्त है, जो पापरूपी ग्रहोंसे भरा हुआ है, विषयासक्ति ही करनेका मन हो तो मनुष्योंको निरन्तर श्रीकृष्णरूपी जिसमें भँवर है, दुर्बोध ही फेनका काम देता है, परमात्माके पुराणका श्रवण करना चाहिये। विष्णुभक्त महादुष्टरूपी सोके कारण जो अत्यन्त भयानक प्रतीत पुरुषको शान्तभावसे पुराण सुनना उचित है; क्योंकि वह होता है, उस दुस्तर भवसागरको हरिभक्तिकी नौकापर * विष्णुभक्तिपदा देवी गङ्गा भुवि च गीयते । विष्णुरूपा हि सा गङ्गा लोकनिस्तारकारिणी ॥ ब्राह्मणेषु पुराणेषु गङ्गाया गोषु पिप्पले । नारायणधिया पुम्भिर्भक्तिः कार्या ह्यहैतुकी ।। (६१।६९-७०)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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