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________________ ३७२ • अर्चवस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पापुराण करनेवाली और मङ्गलमय पदार्थोंके लिये भी जानकर प्रयागके प्रति सदा श्रद्धा रखनी चाहिये । जिनका मङ्गलकारिणी हैं।* चित्त पापसे दूषित है, वे अश्रद्धालु पुरुष उस राजन् ! पुनः प्रयागका माहात्म्य सुनो, जिसे सुनकर स्थानको-देवनिर्मित प्रयागको नहीं पा सकते। मनुष्य सब पापोंसे निःसंदेह मुक्त हो जाता है। गङ्गाके राजन् ! अब मैं अत्यन्त गोपनीय रहस्यकी बात उत्तर-तटपर मानस नामक तीर्थ है। वहाँ तीन रात बताता हूँ, जो सब पापोंका नाश करनेवाली है; सुनो। जो उपवास करनेसे समस्त कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। प्रयागमें इन्द्रिय-संयमपूर्वक एक मासतक निवास करता मनुष्य गौ, भूमि और सुवर्णका दान करनेसे जिस है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है-ऐसा ब्रह्माजीका फलको पाता है, वह उस तीर्थका बारंवार स्मरण करनेसे कथन है। वहाँ रहनेसे मनुष्य पवित्र, जितेन्द्रिय, ही मिल जाता है। जो गङ्गामें मृत्युको प्राप्त होता है, वह अहिंसक और श्रद्धालु होकर सब पापोंसे छूट जाता और मृत व्यक्ति स्वर्गमें जाता है। उसे नरक नहीं देखना परमपदको प्राप्त होता है। वहाँ तीनों काल स्नान और पड़ता । माघ मासमें गङ्गा और यमुनाके संगमपर छाछठ भिक्षाका आहार करना चाहिये; इस प्रकार तीन महीनोंहजार तीर्थोंका समागम होता है। विधिपूर्वक एक लाख तक प्रयागका सेवन करनेसे वे मुक्त हो जाते हैंगौओंका दान करनेसे जो फल मिलता है, वह माघ इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। तत्त्वके ज्ञाता युधिष्ठिर ! मासमें प्रयागके भीतर तीन दिन स्नान करनेसे ही प्राप्त हो तुम्हारी प्रसन्नताके लिये मैंने इस धर्मानुसारी सनातन गुह्य जाता है। जो गङ्गा-यमुनाके बीचमें पञ्चाग्निसेवनकी रहस्यका वर्णन किया है। साधना करता है, वह किसी अङ्गसे हीन नहीं होता; युधिष्ठिर बोले-धर्मात्मन् ! आज मेरा जन्म उसका रोग दूर हो जाता है तथा उसकी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ सफल हुआ, आज मेरा कुल कृतार्थ हो गया। आज सबल रहती हैं। इतना ही नहीं, उस मनुष्यके शरीरमें आपके दर्शनसे मैं प्रसन्न हूँ, अनुगृहीत हूँ तथा सब जितने रोमकूप होते हैं, उतने ही हजार वर्षांतक वह पातकोंसे मुक्त हो गया हूँ। महामुने ! यमुनामें स्नान स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। यमुनाके उत्तर-तटपर और करनेसे क्या पुण्य होता है, कौन-सा फल मिलता है? प्रयागके दक्षिण भागमें ऋणप्रमोचन नामक तीर्थ है, जो ये सब बातें आप अपने प्रत्यक्ष अनुभव एवं श्रवणके अत्यन्त श्रेष्ठ माना गया है। वहाँ एक रात निवास करनेसे आधारपर बताइये। मनुष्य समस्त ऋणोंसे मुक्त हो जाता है। उसे मार्कण्डेयजीने कहा-राजन्! सूर्य-कन्या सूर्यलोककी प्राप्ति होती है तथा वह सदाके लिये ऋणसे यमुना देवी तीनों लोकोंमें विख्यात हैं। जिस हिमालयसे छूट जाता है। प्रयागका मण्डल पाँच योजन विस्तृत है, गङ्गा प्रकट हुई हैं, उसीसे यमुनाका भी आगमन हुआ उसमें प्रवेश करनेवाले पुरुषको पग-पगपर अश्वमेध है। सहस्रों योजन दूरसे भी नामोच्चारण करनेपर वे यज्ञका फल प्राप्त होता है। जिस मनुष्यको वहाँ मृत्यु पापोंका नाश कर देती हैं। युधिष्ठिर ! यमुनामें नहाने, होती है, वह अपनी पिछली सात पीढ़ियोंको और आगे जल पीने और उनके नामका कीर्तन करनेसे मनुष्य आनेवाली चौदह पीढ़ियोंको तार देता है। महाराज ! यह पुण्यका भागी होकर कल्याणका दर्शन करता है। * यावदस्थानि गङ्गायां तिष्ठन्ति तस्य देहिनः । तावद्वर्षसहस्त्राणि स्वर्गलोके महीयते ॥ तीर्थानां तु पर तीर्थ नदीनामुत्तमा नदी । मोक्षदा सर्वभूतानी महापातकिनामपि ।। सर्वत्र सुलभा गङ्गा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा । गङ्गाद्वारे प्रयागे च गङ्गासागरसङ्गमे । तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति ये मृतास्तेऽपुनर्भवाः । सर्वेषां चैव भूतानां पापापहतचेतसाम। गतिरन्यत्र मत्यांनी नास्ति गङ्गासमा गतिः ॥ पवित्राणां पवित्रं या मङ्गलानां च मङ्गलम्।महेश्वरशिरोभ्रष्टा सर्वपापहरा शुभा ॥(४३ । ५२-५६)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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