SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त परापुराण ... .. .... .... .... ...... ......REAMIRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR रहनेके कारण कभी देवताओं, गौओं तथा अतिथियोंका हिरण्यगर्भ आदि देवताओंके स्वामी तथा तीन नेत्रोंसे पूजन नहीं किया। कभी थोड़ा-बहुत भी पुण्यका कार्य सुशोभित हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। जिनमें इस नहीं किया। अतः इस समय भूख-प्याससे व्याकुल जगत्की उत्पत्ति और लय होते हैं, जिन शिवस्वरूप होनेके कारण मैं हिताहितका ज्ञान खो बैठा हूँ। प्रभो! परमात्माने इस समस्त दृश्य-प्रपञ्चको व्याप्त कर रखा है यदि आप मेरे उद्धारका कोई उपाय जानते हों तो कीजिये। तथा जो वेदोंकी सीमासे भी परे हैं, उन भगवान् शङ्करको आपको नमस्कार है। मैं आपकी शरणमें आया हूँ।' प्रणाम करके मैं सदाके लिये उनकी शरणमें आ पड़ा हैं। शङ्ककर्णने कहा-तुम शीघ्र ही एकाग्रचित्त जो लिङ्गरहित (किसीकी पहचानमें न आनेवाले) होकर इस कुण्डमें स्नान करो, इससे शीघ्र ही इस घृणित आलोकशून्य (जिन्हें कोई प्रकाशित नहीं कर सकतायोनिसे छुटकारा पा जाओगे। जो स्वयंप्रकाश है), स्वयंप्रभु, चेतनाके स्वामी, एकरूप दयालु मुनिके इस प्रकार कहनेपर पिशाचने तथा ब्रह्माजीसे भी उत्कृष्ट परमेश्वर हैं, जिनके सिवा त्रिनेत्रधारी देववर भगवान् कपर्दीश्वरका स्मरण किया दूसरी कोई वस्तु है ही नहीं तथा जो वेदसे भी परे हैं, और चित्तको एकाग्र करके उस कुण्डमें गोता लगाया। उन्हीं आप भगवान् कपर्दीश्वरको मैं नमस्कार करता हूँ। मुनिके समीप गोता लगाते ही उसने पिशाचका शरीर सबीज समाधिका त्याग करके निर्बीज समाधिको सिद्ध त्याग दिया। भगवान् शिवकी कृपासे उसे तत्काल बोध कर परमात्मरूप हुए योगीजन जिसका साक्षात्कार करते प्राप्त हुआ और मुनीश्वरोका समुदाय उसकी स्तुति करने हैं और जो वेदसे भी परे है, वह आपका ही स्वरूप है; लगा। तत्पश्चात् जहाँ भगवान् शङ्कर विराजते हैं, उस मैं आपको सदा प्रणाम करता हूँ। जहाँ नाम आदि त्रयीमय श्रेष्ठ धाममें वह प्रवेश कर गया। पिशाचको इस विशेषणोंकी कल्पना नहीं है, जिनका स्वरूप इन प्रकार मुक्त हुआ देख मुनिको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने चर्म-चक्षुओका विषय नहीं होता तथा जो स्वयम्भूमन-ही-मन भगवान् महेश्वरका चिन्तन करके कारणहीन तथा वेदसे परे हैं, उन्हीं आप भगवान् शिवकी कपर्दीश्वरको प्रणाम किया तथा उनकी इस प्रकार स्तुति मैं शरणमें हूँ और सदा आपको प्रणाम करता हूँ। जो करने लगे-'भगवन् ! आप जटा-जूट धारण करनेके देहसे रहित, ब्रह्म (व्यापक), विज्ञानमय, भेदशून्य, कारण कपर्दी कहलाते हैं, आप परात्पर, सबके रक्षक, और एक-अद्वितीय है; तथापि वेदवादमें आसक्त एक-अद्वितीय, पुराण-पुरुष, योगेश्वर, ईश्वर, आदित्य मनुष्य जिसमें अनेकता देखते हैं, उस आपके वेदातीत और अग्निरूप तथा कपिल वर्णके वृषभ नन्दीश्वरपर स्वरूपको मैं नित्य प्रणाम करता हूँ। जिससे प्रकृतिकी आरूढ़ हैं; मैं आपकी शरणमें आया हूँ। आप सबके उत्पत्ति हुई है, स्वयं पुराणपुरुष आप जिसे तेजके रूपमें हृदयमें स्थित सारभूत ब्रह्म है, हिरण्यमय पुरुष हैं, योगी धारण करते हैं, जिसे देवगण सदा नमस्कार करते हैं हैं तथा सबके आदि और अन्त हैं। आप 'रु'- तथा जो आपकी ज्योतिमें सन्निहित है, उस आपके दुःखको दूर करनेवाले हैं, अतः आपको रुद्र कहते हैं; स्वरूपभूत बृहत् कालको मैं नमस्कार करता हूँ। मैं आप आकाशमें व्यापकरूपसे स्थित, महामुनि, सदाके लिये कार्तिकेयके स्वामीकी शरण जाता हैं। ब्रह्मस्वरूप एवं परम पवित्र है; मैं आपकी शरणमें आया स्थाणुका आश्रय लेता हूँ, कैलाश पर्वतपर शयन हूँ। आप सहस्रों चरण, सहस्रों नेत्र तथा सहस्रों करनेवाले पुराणपुरुष शिवकी शरणमें पड़ा हूँ। भगवन् ! मस्तकोंसे युक्त हैं; आपके सहस्रों रूप हैं, आप आप कष्ट हरनेके कारण 'हर' कहलाते हैं, आपके अन्धकारसे परे और वेदोंकी भी पहुँचके बाहर हैं, मस्तकमें चन्द्रमाका मुकुट शोभा पा रहा है तथा आप कल्याणोत्पादक होनेसे आपको 'शम्भु' कहते हैं, आप पिनाक नामसे प्रसिद्ध धनुष धारण करनेवाले हैं; मैं
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy