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________________ ३५८ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण तथा धन भी धन्य है; क्योंकि इस समय आपलोगोंके इन करनेवाला है। यदि कभी किसी गृहस्थके घरपर ब्रह्मचरणोंका दर्शन हुआ, जो तीनों तापोंका विनाश ज्ञानी महात्मा आकर संतोषपूर्वक विश्राम करें तो वे करनेवाला है। भगवान् विष्णुकी भाँति आपलोगोंका उसके जन्मभरके पापोंका अपने दृष्टिपातमात्रसे नाश दर्शन भी किसी धन्य व्यक्तिको ही होता है। कर डालते हैं।* एक रात गृहस्थके घरपर विश्राम इस प्रकार उनका पूजन करके तुमने अतिथियोंके करनेवाला संन्यासी उसके जीवनभरके सारे पापोंको पाँव पखारे और चरणोदक लेकर बड़ी श्रद्धाके साथ भस्म कर देता है। वैश्य ! वही पुण्य तुम अपने भाईको अपने मस्तकपर चढ़ाया। फिर चन्दन, फूल, अक्षत, दे दो, जिसके द्वारा उसका नरकसे उद्धार हो जाय। धूप और दीप आदिके द्वारा भक्ति-भावके साथ उन देवदूतकी यह बात सुनकर विकुण्डलने तत्काल ही यतियोंकी पूजा करके उन्हें उत्तम अन्न भोजन कराया। वे वह पुण्य अपने भाईको दे दिया। तब उसका भाई भी चारों परमहंस तृप्त होकर रातको तुम्हारे भवनमें विश्राम प्रसन्न होकर नरकसे निकल आया। फिर तो देवताओंने और सूर्य आदिके भी प्रकाशक परब्रह्मका ध्यान करते उन दोनोंपर पुष्पोंकी वृष्टि करते हुए उनका पूजन किया रहे। उनका आतिथ्य-सत्कार करनेसे जो पुण्य तुम्हें प्राप्त तथा वे दोनों भाई स्वर्गलोकमें चले गये। तदनन्तर हुआ है, उसका एक हजार मुखोंसे भी वर्णन करनेमें मैं दोनोंसे सम्मानित होकर देवदूत यमलोकमें लौट आया। असमर्थ हूँ। भूतोंमें प्राणधारी श्रेष्ठ हैं, उनमें भी नारदजी कहते हैं-राजन् । देवदूतका वचन बुद्धिजीवी, बुद्धिजीवियोंमें भी मनुष्य और मनुष्योंमें भी वेद-वाक्यके समान था, उसमें सम्पूर्ण लोकका ज्ञान भरा ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं। ब्राह्मणोंमें विद्वान्, विद्वानोंमें पवित्र था, उसे वैश्यपुत्र विकुण्डलने सुना और अपने किये हुए बुद्धिवाले पुरुष, उनमें भी कर्म करनेवाले व्यक्ति तथा पुण्यका दान देकर अपने भाईको भी तार दिया। उनमें भी ब्रह्मज्ञानी पुरुष सबसे श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार तत्पश्चात् वह भाईके साथ ही देवराज इन्द्रके श्रेष्ठ लोकमें ब्रह्मज्ञानी तीनों लोकोंमें सर्वश्रेष्ठ माने गये हैं, अतः गया। जो इस इतिहासको पढ़ेगा या सुनेगा, वह सबके परमपूज्य हैं। उनका सङ्ग महान् पातकोंका नाश शोकरहित होकर सहस्र गोदानका फल प्राप्त करेगा। सुगन्ध आदि तीर्थोकी महिमा तथा काशीपुरीका माहात्म्य नारदजी कहते हैं-राजेन्द्र ! तदनन्तर तीर्थयात्री करनेवाला पुरुष अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। पुरुष विश्वविख्यात सुगन्ध नामक तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ कर्णहदमें स्नान और भगवान् शङ्करकी पूजा करके वहाँ सब पापोंसे चित्त शुद्ध हो जानेपर वह ब्रह्मलोकमें मनुष्य कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता। इसके बाद क्रमशः प्रतिष्ठित होता है। तत्पश्चात् रुद्रावर्त तीर्थमें जाय । वहाँ कुब्जाम्रक-तीर्थको प्रस्थान करना चाहिये। वहाँ स्नान स्नान करके मनुष्य स्वर्गलोकमें सम्मानित होता है। करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है और मनुष्य नरश्रेष्ठ ! गङ्गा और सरस्वतीके सङ्गममें स्नान स्वर्गलोकमें जाता है। राजन् ! इसके बाद अरुन्धतीवटमें ___* भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठाः प्राणिनां मतिजीविनः ॥ मतिमत्सु नराः श्रेष्ठा नरेषु ब्राजातयः । ब्राह्मणेषु च विद्वांसो विद्वत्सु कृतबुद्धयः॥ कृतबुद्धिषु कर्तारः कर्तषु ब्रह्मवेदिनः । अत एव सुपूज्यास्ते तस्मालेष्ठा जगत्त्रये ॥ सत्संगतिर्विशी श्रेष्ठ महापातकनाशिनी॥ विश्रान्ता गृहिणो गेहे संतुष्टा ब्रह्मवेदिनः । आजन्मसंचितं पापं नाशयन्तीक्षणेन वै॥ (३१ । २००-२०४). या
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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