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________________ स्वर्गखण्ड ] . धर्मतीर्थ आदिकी महिमा, स्वर्ग तथा नरकमें ले जानेवाले शुभाशुभ कमोंका वर्णन • ३४९ लोकोंमें कुरुक्षेत्रको अधिक महत्व दिया गया है। हवासे तरह शोकके योग्य नहीं होते। तरण्डकसे लेकर उड़ायी हुई कुरुक्षेत्रको धूलि भी यदि देहपर पड़ जाय तो अरण्डकतक तथा रामहद (परशुराम-कुण्ड) से लेकर वह पापीको भी परमगतिकी प्राप्ति करा देती है। कुरुक्षेत्र मचक्रुकतकके भीतरका क्षेत्र समन्तपञ्चक कहलाता है। ब्रह्मवेदीपर स्थित है। वह ब्रह्मर्षियोंसे सेवित पुण्यमय यही कुरुक्षेत्र है। इसे ब्रह्माजीके यज्ञकी उत्तर-वेदी कहा तीर्थ है। राजन् । जो उसमें निवास करते हैं, वे किसी गया है। धर्मतीर्थ आदिकी महिमा, यमुना-स्त्रानका माहात्म्य-हेमकुण्डल वैश्य और उसके , पुत्रोंकी कथा एवं स्वर्ग तथा नरकमें ले जानेवाले शुभाशुभ कर्मोका वर्णन नारदजी कहते हैं-धर्मके ज्ञाता युधिष्ठिर ! (हरिद्वार) को यात्रा करे तथा वहाँ एकाग्रचित हो कुरुक्षेत्रसे तीर्थयात्रीको परम प्राचीन धर्मतीर्थमें जाना कोटितीर्थमें स्रान करे। ऐसा करनेवाला पुरुष पुण्डरीक चाहिये, जहां महाभाग धर्मने उत्तम तपस्या की थी। यज्ञका फल पाता और अपने कुलका भी उद्धार कर देता धर्मशील मनुष्य एकाग्रचित्त हो वहाँ स्नान करके अपनी है। वहाँ एक रात निवास करनेसे सहस्र गोदानोंका फल सात पीढ़ियोंतकको पवित्र कर देता है। वहाँसे उत्तम मिलता है। सप्तगङ्ग, त्रिगङ्ग और शक्रावर्त नामक तीर्थमें कलाप-वनकी यात्रा करनी उचित है; उस तीर्थमे देवता तथा पितरोंका विधिपूर्वक तर्पण करनेवाला पुरुष एकाग्रतापूर्वक स्रान करके मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञका फल पुण्यलोकमें प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद कनखलमें पाता और विष्णुलोकको जाता है। राजन् ! तत्पश्चात् स्नान करके तीन राततक उपवास करनेवाला मनुष्य मानव सौगन्धिक-वनकी यात्रा करे। उस वनमें प्रवेश अश्वमेध यज्ञका फल पाता और स्वर्गलोकको जाता है। करते ही वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। उसके बाद वहाँसे ललितिका-(ललिता) में, जो राजा शन्तनुका नदियोंमें श्रेष्ठ सरस्वती आती हैं, जिन्हें प्लक्षा देवी भी उत्तम तीर्थ है, जाना चाहिये । राजन् ! वहाँ सान करनेसे कहते हैं। उनमें जहाँ वल्मीक-(बाँबी )से जल निकला मनुष्यकी कभी दुर्गति नहीं होती। है, वहाँ स्नान करे। फिर देवताओं तथा पितरोका पूजन महाराज युधिष्ठिर ! तत्पश्चात् उत्तम कालिन्दीकरके मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता है। भारत! तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये । वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य सुगन्धा, शतकुम्भा तथा पञ्चयज्ञकी यात्रा करके मनुष्य दुर्गतिमें नहीं पड़ता। नरश्रेष्ठ ! पुष्कर, कुरुक्षेत्र, ब्रह्मावर्त, स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। पृथूदक, अविमुक्त क्षेत्र (काशी) तथा सुवर्ण नामक तत्पश्चात् तीनों लोकोंमें विख्यात सुवर्ण नामक तीर्थमें भी जिस फल की प्राप्ति नहीं होती, वह यमुनामें तीर्थमें जाय; वहाँ पहुँचकर भगवान् शङ्करकी पूजा स्नान करनेसे मिल जाता है। निष्काम या सकाम भावसे करनेसे मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और भी जो यमुनाजीके जलमें गोता लगाता है, उसे इस गणपति-पदको प्राप्त होता है। वहाँसे धूमवन्तीको प्रस्थान लोक और परलोकमें दुःख नहीं देखना पड़ता। जैसे करे। वहाँ तीन रात निवास करनेवाला मनुष्य कामधेनु और चिन्तामणि मनोगत कामनाओंको पूर्ण कर मनोवाञ्छित कामनाओंको प्राप्त कर लेता है, इसमें देती हैं, उसी प्रकार यमुनामें किया हुआ स्नान सारे तनिक भी सन्देह नहीं है। देवीके दक्षिणार्ध भागमें मनोरथोंको पूर्ण करता है। सत्ययुगमे तप, त्रेतामें ज्ञान, रथावर्त नामक स्थान है। वहाँ जाकर श्रद्धालु एवं द्वापरमें यज्ञ तथा कलियुगमे दान सर्वश्रेष्ठ माने गये है। जितेन्द्रिय पुरुष महादेवजीकी कृपासे परमगतिको प्राप्त किन्तु कलिन्द-कन्या यमुना सदा ही शुभकारिणी हैं। होता है। तत्पश्चात् महागिरिको नमस्कार करके गङ्गाद्वार राजन् ! यमुनाके जलमें स्नान करना सभी वर्गों तथा
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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