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________________ ३४६ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण ...............1 यज्ञका फल पाता और अपने कुलका भी उद्धार करता शरीरकी शुद्धि होती है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। है। तदनन्तर लोकविख्यात सङ्गम-तीर्थमें जाना चाहिये तथा जिसका शरीर शुद्ध हो जाता है, वह कल्याणमय और वहाँ सरस्वती नदीमें परम पुण्यमय भगवान् उत्तम लोकोंको प्राप्त होता है। तत्पश्चात् लोकोद्धार नामक जनार्दनकी उपासना करनी चाहिये। उस तीर्थमें स्नान तीर्थको यात्रा करनी चाहिये, जहाँ पूर्वकालमें सबको करनेसे मनुष्यका चित्त सब पापोंसे शुद्ध हो जाता है और उत्पत्तिके कारणभूत भगवान् विष्णुने समस्त लोकोंका वह शिवलोकको प्राप्त होता है। उद्धार किया था। राजन् ! वहाँ पहुँचकर उस उतम तीर्थमें राजेन्द्र ! तदनन्तर कुरुक्षेत्रको यात्रा करनी स्नान करके मनुष्य आत्मीय जनोंका उद्धार कर देता है। जो चाहिये। उसकी सब लोग स्तुति करते हैं। वहाँ गये हुए कपिला-तीर्थमें जाकर ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए समस्त प्राणी पापमुक्त हो जाते हैं। धीर पुरुषको उचित एकाप्रचित्त होकर स्नान तथा देवता-पितरोंका पूजन करता है कि वह कुरुक्षेत्रमें सरस्वती नदीके तटपर एक मासतक है, वह मानव एक सहस्र कपिला-दानका फल पाता है। निवास करे । युधिष्ठिर ! जो मनसे भी कुरुक्षेत्रका चिन्तन जो सूर्यतीर्थमें जाकर स्नान करता और मनको काबूमें रखते करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह हुए उपवास-परायण होकर देवताओं तथा पितरोंकी पूजा ब्रह्मलोकको जाता है। धर्मज्ञ ! वहाँसे भगवान् विष्णुके करता है, उसे अग्रिष्टोम यज्ञका फल मिलता है तथा वह उत्तम स्थानको, जो 'सतत' नामसे प्रसिद्ध है, जाना सूर्यलोकको जाता है। गोभवन नामक तीर्थमें जाकर स्नान चाहिये। वहाँ भगवान् सदा मौजूद रहते हैं। जो उस करनेवालेको सहल गोदानका फल मिलता है। तीर्थमें नहाकर त्रिभुवनके कारण भगवान् विष्णुका दर्शन तदनन्तर ब्रह्मावर्तकी यात्रा करे । ब्रह्मावर्तमें स्नान करता है, वह विष्णुलोकमें जाता है। तत्पश्चात् पारिणवमें करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है। वहाँसे अन्यान्य जाना चाहिये। वह तीनों लोकोंमें विख्यात तीर्थ है। तोोंमें घूमते हुए क्रमशः काशीश्वरके तीर्थोंमें पहुंचकर उसके सेवनसे मनुष्यको अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञोंका स्रान करनेसे मनुष्य सब प्रकारके रोगोंसे छुटकारा पाता फल मिलता है। तत्पश्चात् तीर्थसेवी मनुष्यको और ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है। तदनन्तर शौचशाल्विकिनि नामक तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ सन्तोष आदि नियमोंका पालन करते हुए शीतवनमें जाय। दशाश्वमेध घाटपर नान करनेसे भी वही फल प्राप्त होता वहाँ बहुत बड़ा तीर्थ है, जो अन्यत्र दुर्लभ है । वह दर्शनहै। तदनन्तर पचनदमें जाकर नियमित आहार करते हुए मात्रसे एक दण्डमें पवित्र कर देता है। वहाँ एक दूसरा भी नियमपूर्वक रहे। वहाँ कोटि-तीर्थमें स्नान करनेसे श्रेष्ठ तीर्थ है, जो नान करनेवाले लोगोंका दुःख दूर अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है। तत्पश्चात् परम उत्तम करनेवाला माना गया है। वहाँ तत्त्वचिन्तन-परायण विद्वान् वाराह-तीर्थकी यात्रा करे, जहाँ पूर्वकालमें भगवान् विष्णु ब्राह्मण स्रान करके परम गतिको प्राप्त होते हैं। वराहरूपसे विराजमान हुए थे। उस तीर्थमें निवास स्वर्णलोमापनयन नामक तीर्थमें प्राणायामके द्वारा जिनका करनेसे अनिष्टोम यज्ञका फल प्राप्त होता है। तदनन्तर अन्तःकरण पवित्र हो चुका है, वे परम गतिको प्राप्त होते जयिनीमे जाकर सोमतीर्थमें प्रवेश करे । वहाँ स्रान करके हैं। दशाश्वमेध नामक तीर्थमें भी स्रान करनेसे उत्तम मानव राजसूय यज्ञका फल प्राप्त करता है। कृतशौच- गतिकी प्राप्ति होती है। तीर्थमें जाकर उसका सेवन करनेवाला पुरुष पुण्डरीक तत्पश्चात् लोकविख्यात मानुष-तीर्थकी यात्रा करे। यज्ञका फल पाता है और स्वयं भी पवित्र हो जाता है। राजन् ! पूर्वकालमें एक व्याधके बाणोंसे पीड़ित हुए कुछ 'पम्पा' नामका तीर्थ तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है, वहाँ जाकर कृष्णमृग उस सरोवरमें कूद पड़े थे और उसमें गोता स्नान करनेसे मनुष्य अपनी सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त लगाकर मनुष्य-शरीरको प्राप्त हुए थे। [तभीसे वह कर लेता है। कायशोधन-तीर्थमें जाकर स्नान करनेवालेके मानुष-तीर्थके नामसे प्रसिद्ध हुआ।) इस तीर्थमें स्नान
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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