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________________ स्वर्गखण्ड ] *............................... • भारतवर्षका वर्णन और वसिष्ठजीके द्वारा पुष्कर तीर्थकी महिमाका बखान .................................................................................................................................................................................... इन्द्रिय बताया है। विप्रगण ! आकाश, वायु, तेज, जल कर उस अण्डके भीतर विराजमान हुए। और पृथ्वी – ये क्रमशः शब्दादि उत्तरोत्तर गुणोंसे युक्त हैं। ये पाँचों भूत पृथक्-पृथक् नाना प्रकारकी शक्तियोंसे सम्पन्न हैं, किन्तु परस्पर संघटित हुए बिना वे प्रजाकी सृष्टि करनेमें समर्थ न हुए। इसलिये महत्तत्त्वसे लेकर पञ्चभूतपर्यन्त सभी तत्त्व परम पुरुष परमात्माद्वारा अधिष्ठित और प्रधानद्वारा अनुगृहीत होनेके कारण पूर्णरूपसे एकत्वको प्राप्त हुए। इस प्रकार एक दूसरेसे संयुक्त होकर परस्परका आश्रय ले उन्होंने अण्डकी उत्पत्ति की। महाप्राज्ञ महर्षियो ! इस तरह भूतोंसे प्रकट हो क्रमशः वृद्धिको प्राप्त हुआ वह विशाल अण्ड पानीके बुलबुलेकी तरह सब ओरसे समान - गोलाकार दिखायी देने लगा। वह पानीके ऊपर स्थित होकर ब्रह्मा (हिरण्यगर्भ) के रूपमें प्रकट हुए भगवान् विष्णुका उत्तम स्थान बन गया। सम्पूर्ण विश्वके स्वामी अव्यक्त स्वरूप भगवान् विष्णु स्वयं ही ब्रह्माजीका रूप धारण ― ३३३ ..............................*** उस समय मेरु पर्वतने उन महात्मा हिरण्यगर्भके लिये गर्भको ढकनेवाली झिल्लीका काम दिया, अन्य पर्वत जरायु— जेरके स्थानमें थे और समुद्र उसके भीतरका जल था। उस अण्डमें ही पर्वत और द्वीप आदिके सहित समुद्र, ग्रहों और ताराओंके साथ सम्पूर्ण लोक तथा देवता, असुर और मनुष्योंसहित सारी सृष्टि प्रकट हुई। आदि-अन्तरहित सनातन भगवान् विष्णुकी नाभिसे जो कमल प्रकट हुआ था, वही उनकी इच्छासे सुवर्णमय अण्ड हो गया। परमपुरुष भगवान् श्रीहरि स्वयं ही रजोगुणका आश्रय ले ब्रह्माजीके रूपमें प्रकट होकर संसारकी सृष्टिमें प्रवृत्त होते हैं। वे परमात्मा नारायणदेव ही सृष्टिके समय ब्रह्मा होकर समस्त जगत्की रचना करते हैं, वे ही पालनकी इच्छासे श्रीराम आदिके रूपमें प्रकट हो इसकी रक्षामें तत्पर रहते हैं तथा अन्तमें वे ही इस जगत्का संहार करनेके लिये रुद्रके रूपमें प्रकट हुए हैं। ★ - भारतवर्षका वर्णन और वसिष्ठजीके द्वारा पुष्कर तीर्थकी महिमाका बखान सूतजी कहते हैं— महर्षिगण ! अब मैं आपलोगों से परम उत्तम भारतवर्षका वर्णन करूँगा। राजा प्रियमित्र देव, वैवस्वत मनु पृथु इक्ष्वाकु ययाति, अम्बरीष, मान्धाता नहुष, मुचुकुन्द, कुबेर, उशीनर, ऋषभ, पुरूरवा राजा नृग, राजर्षि कुशिक, गाधि, सोम तथा राजर्षि दिलीपको, अन्यान्य बलिष्ठ क्षत्रिय राजाओंको एवं सम्पूर्ण भूतोंको ही यह उत्तम देश भारतवर्ष बहुत ही प्रिय रहा। इस देशमें महेन्द्र, मलय, सह्य शुक्तिमान् ऋक्षवान्, विन्ध्य तथा पारियात्र—ये सात कुल पर्वत हैं। इनके आसपास और भी हजारों पर्वत है। भारतवर्षके लोग जिन विशाल नदियोंका जल पीते हैं, उनके नाम ये हैं- गङ्गा, सिन्धु, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, बाहुदा, शतद्रु (सतलज), चन्द्रभागा, यमुना, दृषद्वती, विपाशा (व्यास), वेत्रवती (बेतवा, कृष्णा, वेणी, इरावती, ( इरावदी), वितस्ता (झेलम), पयोष्णी, देविका, वेदस्मृति, वेदशिरा, त्रिदिवा, सिन्धुलाकृमि, करीषिणी, चित्रवहा, त्रिसेना, गोमती, चन्दना, कौशिकी (कोसी), हृद्या, नाचिता, रोहितारणी, रहस्या, शतकुम्भा, सरयू, चर्मण्वती, हस्तिसोमा, दिशा, शरावती, भीमरथी, कावेरी, बालुका, तापी (ताप्ती), नीवारा, महिता, सुप्रयोगा, पवित्रा, कृष्णला, वाजिनी, पुरुमालिनी, पूर्वाभिरामा, वीरा, मालावती, पापहारिणी, पलाशिनी, महेन्द्रा, पाटलावती, असिक्री, कुशवीरा, मरुत्वा प्रवरा, मेना, होरा, घृतवती, अनाकती, अनुष्णी, सेव्या, कापी, सदावीरा, अधृष्या, कुशचीरा, रथचित्रा, ज्योतिरथा, विश्वामित्रा, कपिञ्जला, उपेन्द्रा, बहुला, कुवीरा, वैनन्दी, पिञ्जला, वेणा, तुङ्गवेगा, महानदी, विदिशा, कृष्णवेगा, ताम्रा, कपिला, धेनु, सकामा, वेदस्वा, हविः सावा, महापथा, क्षिप्रा (सिप्रा), पिच्छला, भारद्वाजी, कौर्णिकी, शोणा (सोन), चन्द्रमा, अन्तः शिला, ब्रह्ममेध्या, परोक्षा, रोही, जम्बूनदी (जम्मू), सुनासा, तपसा दासी, सामान्या, वरुणा, असी, नीला, धृतिकरी,
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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