SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिखण्ड ] . कुजल पक्षी और उसके पुत्र कपिालका संवाद . ३२३ Arrrrrrrr r ................... ........................ गिरिराज हिमालयकी कन्या पार्वती थी या समुद्र-तनया लिये कण्टकरूप उस पापी दैल्यने उपद्रव मचाना आरम्भ लक्ष्मी। इन्द्र या यमराजकी पत्नी भी ऐसी सुन्दरी नहीं किया। समस्त प्रजाको पीडा देने लगा। उसके तेजसे दिखायी देतीं। उसके शील, सद्भाव, गुण तथा रूप जैसे संतप्त होकर इन्द्र आदि देवता परम तेजस्वी देवाधिदेव दीख पड़ते थे, वैसे अन्य दिव्याङ्गनाओंमें नहीं दृष्टिगोचर भगवान् श्रीविष्णुकी शरणमें गये और बोले-'भगवन् ! होते। शिलाके ऊपर बैठी हुई वह कन्या किसी भारी विहुण्डके महान् भयसे आप हमारी रक्षा करें। दुःखसे व्याकुल थी और फूट-फूटकर रो रही थी और भगवान् विष्णु बोले-पापी विहुण्ड देवताओंके कोई स्वजन-सम्बन्धी उसके पास नहीं थे। नेत्रोंसे गिरते लिये कण्टकरूप है, मैं अवश्य उसका नाश करूँगा। हुए निर्मल अश्रुविन्दु मोतीके दाने-जैसे चमक रहे थे। देवताओंसे यों कहकर भगवान् श्रीविष्णुने मायाको वे सब-के-सब गङ्गाजीके स्रोतमें ही गिरते और सुन्दर प्रेरित किया। सम्पूर्ण विश्वको मोहित करनेवाली कमल-पुष्पके रूपमें परिणत हो जाते थे। इस प्रकार महाभागा विष्णुमायाने विहुण्डका वध करनेके लिये रूप अगणित सुन्दर पुष्प गङ्गाजीके जलमें पड़े थे और और लावण्यसे सुशोभित तरुणी स्त्रीका रूप धारण पानीके वेगके साथ वह रहे थे। किया। वह नन्दनवनमें आकर तपस्या करने लगी। इसी पिताजी ! इस प्रकार मैंने यह अपूर्व बात देखी है। समय दैत्यराज विहुण्ड देवताओंका वध करनेके लिये आप वक्ताओंमें श्रेष्ठ हैं; यदि इसका कारण जानते हों तो दिव्य मार्गसे चला । नन्दनवनमें पहुँचनेपर उसकी दृष्टि मुझपर कृपा करके बतायें। गङ्गाके मुहानेपर जो सुन्दरी तपस्विनी मायापर पड़ी। वह इस बातको नहीं जान सका स्त्री रो रही थी, जिसके नेत्रोंसे गिरे हुए आँसू सुन्दर कि यह मेरा ही नाश करनेके लिये उत्पन्न हुई है। यह कमलके फूल बन जाते थे, वह कौन थी? यदि मैं सुन्दरी स्त्री कालरूपा है, यह बात उसकी समझमें नहीं आपका प्रिय हूँ तो मुझे यह सारा रहस्य बताइये। आयी। मायाका शरीर तपाये हुए सुवर्णके समान दमक कुञ्जल बोला-बेटा ! बता रहा हूँ, सुनो। यह रहा था। रूपका वैभव उसकी शोभा बढ़ा रहा था। देवताओका रचा हुआ वृत्तान्त है। इसमें महात्मा पापात्मा विहुण्ड उस सुन्दरी युवतीको देखते ही लुभा श्रीविष्णुके चरित्रका वर्णन है, जो सब पापोका नाश गया और बोला-'भद्रे ! तुम कौन हो? कौन हो? करनेवाला है। एक समयकी बात है, राजा नहुषने तुम्हारे शरीरका मध्यभाग बड़ा सुन्दर है, तुम मेरे चित्तको संग्राममें महापराक्रमी हुंड नामक दैत्यको मार डाला। मथे डालती हो । सुमुखि ! मुझे संगम प्रदान करो और उस दैत्यके पुत्रका नाम विहुण्ड था, वह भी बड़ा कामजनित वेदनासे मेरी रक्षा करो। देवेश्वरि ! अपने पराक्रमी और तपस्वी था। उसने जब सुना कि राजा समागमके बदले इस समय तुम जिस-जिस वस्तुकी नहुषने उसके पिताका मन्त्री तथा सेनासहित वध किया इच्छा करो, वह सब तुम्हे देनेको तैयार हैं। है, तब उसे बड़ा क्रोध हुआ और वह देवताओंका माया बोली-दानव ! यदि तुम मेरा ही उपभोग विनाश करनेके लिये उद्यत होकर तपस्या करने लगा। करना चाहते हो, तो सात करोड़ कमलके फूलोंसे तपसे बढ़े हुए उस दुष्ट दैत्यका पुरुषार्थ सम्पूर्ण भगवान् शङ्करकी पूजा करो। वे फूल कामोदसे उत्पन्न, देवताओंको विदित था। वे जानते थे कि समरभूमिमें दिव्य, सुगन्धित और देवदुर्लभ होने चाहिये। उन्हीं विहुण्डके वेगको सहन करना अत्यन्त कठिन है। उधर, फूलोकी सुन्दर माला बनाकर मेरे कण्ठमें भी पहनाओ। विहुण्डके मनमें त्रिलोकीका नाश कर डालनेकी इच्छा तभी मैं तुम्हारी प्रिय भार्या बनूंगी। हुई। उसने निश्चय किया, मैं मनुष्यों और देवताओको विहुण्डने कहा-देवि ! मैं ऐसा ही करूंगा। मारकर पिताके वैरका बदला लँगा। इस प्रकार तुम्हारा माँगा हुआ वर तुम्हें दे रहा हूँ। अत्याचारके लिये उद्यत हो देवताओं और ब्राह्मणोंके यह कहकर दैत्यराज विहुण्ड जितने भी दिव्य एवं
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy