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________________ भूमिखण्ड] - • गुरुतीर्थक प्रसङ्गमें महर्षि च्यवनका कथा . ३१३ अव व्रतोंके भेद बताता हूँ, जिनके द्वारा भगवान् ज्ञानद, ज्ञानदायक, अच्युत, सबल, चन्द्रवक्त्र श्रीविष्णुको आराधना होती है। जया, विजया, (चन्द्रमाके समान मनोहर मुखवाले), व्याप्तपरावर पापनाशिनी, जयन्ती, त्रिःस्पृशा, वञ्जुली, तिलगन्धा, (कार्य-कारणरूप सम्पूर्ण जगत्में व्याप्त), योगेश्वर, अखण्डा तथा मनोरक्षा-ये सब एकादशी या जगद्योनि (जगत्की उत्पत्तिके स्थान), ब्रह्मरूप, महेश्वर, द्वादशियोंके भेद है। इनके सिवा और भी बहुत-सी ऐसी मुकुन्द, वैकुण्ठ, एकरूप, कवि, धुव, वासुदेव, महादेव, तिथियाँ हैं, जिनका प्रभाव दिव्य है। अशून्यशयन और ब्राह्मण्य ब्राह्मण-प्रिय, गोप्रिय, गोहित, यज्ञ, यज्ञाङ्ग. जन्माष्टमी--ये दोनों महान् व्रत है। इन व्रतोंका आचरण यज्ञवर्धन (यज्ञोंका विस्तार करनेवाले), यज्ञ-भोक्ता, करनेसे प्राणियोंके सब पाप दूर हो जाते है। 1... वेद-वेदाङ्गपारग, वेदज्ञ, वेदरूप, विद्यावास, सुरेश्वर, ___पुत्र ! अब भगवान्के शतनाम स्तोत्रका वर्णन प्रत्यक्ष, महाहस, शङ्खपाणि, पुरातन, पुष्कर, पुष्कराक्ष, करता हूँ। यह मनुष्योंकी पापराशिका नाशक और उत्तम वाराह, धरणीधर, प्रद्युम्न, कामपाल, व्यासध्यात गति प्रदान करनेवाला है। विष्णुके इस शतनाम स्तोत्रके (व्यासजीके द्वारा चिन्तित), महेश्वर (महान् ईश्वर). ऋषि ब्रह्मा, देवता ओंकार तथा छन्द अनुष्टुप् है । सम्पूर्ण सर्वसौख्य, महासौख्य, सांख्य, पुरुषोत्तम, योगरूप, कामनाओंकी सिद्धि तथा मोक्षके निमित्त इसका महाज्ञान, योगीश्वर, अजित, प्रिय, असुरारि, लोकनाथ, विनियोग किया जाता है।* ... पद्महस्त, गदाधर, गुहावास, सर्ववास, पुण्यवास, ____ हृषीकेश (इन्द्रियोंके स्वामी), केशव, मधुसूदन महाजन, वृन्दानाथ, बृहत्काय, पावन, पापनाशन, (मधु दैत्यको मारनेवाले), सर्वदैत्यसूदन (सम्पूर्ण गोपीनाथ, गोपसख, गोपाल, गोगणाश्रय, परात्मा, दैत्योंके संहारक), नारायण, अनामय (रोग-शोकसे पराधीश, कपिल तथा कार्यमानुष (संसारका उद्धार रहित), जयन्त, विजय, कृष्ण, अनन्त, वामन, विष्णु, करनेके लिये मानव-शरीर धारण करनेवाले) आदि विश्वेश्वर, पुण्य, विश्वात्मा, सुरार्चित (देवताओंद्वारा नामोंसे प्रसिद्ध सर्वस्वरूप परमेश्वरको मैं प्रतिदिन मन, पूजित), अनघ (पापरहित), अपहर्ता, नारसिंह, श्रीप्रिय वाणी तथा क्रियाद्वारा नमस्कार करता हूँ। जो पुण्यात्मा (लक्ष्मीके प्रियतम), श्रीपति, श्रीधर, श्रीद (लक्ष्मी पुरुष शतनामस्तोत्र पढ़कर स्थिरचित्तसे भगवान प्रदान करनेवाले), श्रीनिवास, महोदय (महान् श्रीकृष्णकी स्तुति करता है, वह सम्पूर्ण दोषोंका त्याग अभ्युदयशाली), श्रीराम, माधव, मोक्ष, क्षमारूप, करके इस लोकमें पुण्यस्वरूप हो जाता है तथा अन्तमें जनार्दन, सर्वज्ञ, सर्ववेत्ता, सर्वेश्वर, सर्वदायक, हरि, वह भगवान् मधुसूदनके लोकको प्राप्त होता है। यह मुरारि, गोविन्द, पद्मनाभ, प्रजापति, आनन्द, ज्ञानसम्पत्र, शतनाम स्तोत्र महान् पुण्यका जनक और समस्त गुडाकेशाः सन्ति यस्य अधरं बिम्बसन्निभम्। शोभते पुण्डरीकाक्षः किरौटेनापि पुरक ।। विशालेनापि रूपेण केशवस्तु सुचक्षुषा । कौस्तुभेनापि वै तेन राजमानो जनार्दनः । सूर्यतेजःप्रकाशाभ्यां कुण्डलाभ्यां प्रभाति च। श्रीवत्साडून पुण्येन सर्वदा राजते हरिः ।। केयूरकणहरिमौक्तिकैप्रक्षसनिमः । वपुषा प्राजमानस्तु विजयो जयतां वरः ॥ राजते सोऽपि गोबिन्दो हेमवणेन वासना । मुद्रिकारत्रयुक्ताभिरङ्गालीभिर्विराजते ॥ सर्वायुधैः सुसंपूर्णो दिव्यैराभरणैर्हरिः । वैनतेयसमारूदो लोककर्ता जगत्पतिः ॥ एवं तं ध्यायते नित्यमनन्यमनसा नरः । मुख्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति ॥ एतत्ते सर्वमाख्यातं ध्यानमेवं जगत्पतेः ॥ ८६॥ ७८-९२) * शतनाम स्तोत्रका विनियोग इस प्रकार है-ॐ अस्य श्रीविष्णुशतनामस्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋपिरनुष्टुप् छन्दः प्रणवो देवता सर्वकामिकसंसिय मोक्षार्थे च जपे विनियोगः ।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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