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________________ भूमिखण्ड ] . वसिष्ठजीके द्वारा सोमशर्माके पूर्वजन्मका वर्णन तथा उन्हें भगवळजनका उपदेश . २३१ वसिष्ठजीके द्वारा सोमशर्माके पूर्वजन्म-सम्बन्धी शुभाशुभ कर्मोंका वर्णन तथा उन्हें भगवानके भजनका उपदेश सोमशर्माने पूछा-कल्याणी ! मैं किस प्रकार त्यागी, प्रिय वचन बोलनेवाला, भगवान् श्रीविष्णुके सर्वज्ञ और गुणवान् पुत्र प्राप्त कर सकूँगा? ध्यानमें तत्पर, नित्य शान्त, जितेन्द्रिय, सदा जप सुमना बोली-स्वामिन्! आप महामुनि करनेवाला, पितृभक्तिपरायण, सदा समस्त स्वजनोंपर वसिष्ठजीके पास जाइये; वे धर्मके ज्ञाता है, उन्हींसे नेह रखनेवाला, कुलका उद्धारक, विद्वान् तथा कुलको प्रार्थना कीजिये। उनसे आपको धर्मज्ञ एवं धर्मवत्सल सन्तुष्ट करनेवाला हो-ऐसे गुणोंसे युक्त उत्तम पुरुष ही पुत्रकी प्राप्ति होगी। सुख देनेवाला होता है। इसके सिवा दूसरे तरहके पुत्र सूतजी कहते हैं-पत्नीके यों कहनेपर द्विजश्रेष्ठ सम्बन्ध जोड़कर केवल शोक और सन्ताप देते हैं। ऐसा सोमशर्मा सब बातोंके जाननेवाले, तेजस्वी और तपस्वी पुत्र किस कामका । उसके होनेसे कोई लाभ नहीं है। महात्मा वसिष्ठजीके पास गये। वे गङ्गाजीके तटपर स्थित महाप्राज्ञ ! तुम पूर्वजन्ममें शूद थे। तुम्हें धर्माधर्मका ज्ञान अपने पवित्र आश्रममें विराजमान थे। सोमशर्माने बड़ी नहीं था, तुम बड़े लोभी थे। तुम्हारे एक स्त्री और भक्तिके साथ बारंबार उन्हें दण्डवत्-प्रणाम किया। तब बहुत-से पुत्र थे। तुम दूसरोंके साथ सदा द्वेष रखते थे। पापरहित महातेजस्वी ब्रह्मपुत्र वसिष्ठजी उनसे बोले- तुमने सत्यका कभी श्रवण नहीं किया था। तीर्थोंकी यात्रा 'महामते ! इस पवित्र आसनपर सुखसे बैठो।' यह नहीं की थी। महामते ! तुमने एक ही काम किया कहकर उन योगीश्वरने पूछा-'महाभाग ! तुम्हारे था-खेती करना । बार-बार तुम उसीमें लगे रहते थे। पुण्यकर्म और अग्निहोत्र आदि कार्य कुशलसे हो रहे हैं द्विजश्रेष्ठ ! तुम पशुओंका पालन भी करते थे। पहले न? शरीरसे तो नीरोग रहते हो न? धर्मका पालन तो गाय पालते थे, फिर भैस और घोड़ोंको भी पालने लगे। सदा करते ही होगे। द्विजश्रेष्ठ ! बताओ, मैं तुम्हारी तुमने अन्नको बहुत महँगा कर रखा था। तुम इतने कौन-सी प्रिय कामना पूर्ण करूँ?' इस प्रकार संभाषण निर्दयी थे कि कभी किसीको किश्चित् भी दान नहीं करके वसिष्ठजी चुप हो गये। तब सोमशर्माने कहा- किया। देवताओंकी पूजा नहीं की। पर्व आनेपर 'तात ! किस पापके कारण मुझे दरिद्रताका कष्ट भोगना ब्राह्मणोंको धन नहीं दिया तथा श्राद्धकाल उपस्थित पड़ता है? मुझे पुत्रका सुख क्यों नहीं मिलता, इस होनेपर भी तुमने श्रद्धापूर्वक कुछ नहीं किया। तुम्हारी बातका मेरे मनमें बड़ा सन्देह है। किस पापसे ऐसा हो साध्वी स्त्री कहती थी-'आज श्राद्धका दिन है। यह रहा है, यह बताइये। महामते ! मैं महान् पापसे मोहित श्वशुरके श्राद्धका समय है और यह सासके।' महामते ! एवं विवेकशून्य हो गया था, अपनी प्यारी पत्नीके उसकी ये बातें सुनकर तुम घर छोड़ कहीं अन्यत्र भाग समझाने और भेजनेसे आज आपके पास आया हूँ। जाते थे। तुमने धर्मका मार्ग न कभी देखा था, न सुना वसिष्ठजीने कहा-द्विजश्रेष्ठ ! मैं तुम्हारे सामने ही था । लोभ ही तुम्हारी माता, लोभ ही पिता, लोभ ही पुत्रके पवित्र लक्षणका वर्णन करता हूँ। जिसका मन आता और लोभ ही स्वजन एवं बन्धु था। तुमने सदाके पुण्यमें आसक्त हो, जो सदा सत्यधर्मके पालनमें तत्पर लिये धर्मको तिलाअलि देकर एकमात्र लोभका ही रहता हो और जो बुद्धिमान, ज्ञानसम्पन्न, तपस्वी, आश्रय लिया था; इसीलिये तुम दुःखी और गरीबीसे वक्ताओंमें श्रेष्ठ, सब कोंमें कुशल, धीर, वेदाध्ययन- पीड़ित हुए हो। परायण, सम्पूर्ण शास्त्रोंका वक्ता, देवता और ब्राह्मणोंका तुम्हारे हदयमें प्रतिदिन महातृष्णा बढ़ती जाती थी। पुजारी, समस्त यज्ञोंका अनुष्ठान करनेवाला, ध्यानी, रातमें सो जानेपर भी तुम सदा धनकी ही चिन्तामें लगे
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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