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________________ . . . . . . २१२ - अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि पर पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण ........ ................... हो जाता है।* जो मनुष्य चाण्डाल, गोधाती (कसाई), हो। तुम्हारे बिना समस्त संसारका जीवन एक दिन भी पतित, कोढ़ी, महापातकी और उपपातकीके दीख नहीं रह सकता । तुम्हीं सम्पूर्ण लोकोंके प्रभु तथा चराचर जानेपर भगवान् सूर्यका दर्शन करते हैं, वे भारी-से- प्राणियोंके रक्षक, पिता और माता हो। तुम्हारी ही कृपासे भारी पापसे मुक्त हो पवित्र हो जाते हैं। सूर्यको उपासना यह जगत् टिका हुआ है। भगवन् ! सम्पूर्ण देवताओंमें करनेमात्रसे मनुष्यको सब रोगोंसे छुटकारा मिल जाता तुम्हारी समानता करनेवाला कोई नहीं है। शरीरके भीतर, है। जो सूर्यको उपासना करते हैं, वे इहलोक और बाहर तथा समस्त विश्वमें-सर्वत्र तुम्हारी सत्ता है। परलोकमे भी अंधे, दरिद्र, दुःखी और शोकप्रस्त नहीं तुमने ही इस जगत्को धारण कर रखा है। तुम्हीं रूप होते। श्रीविष्णु और शिव आदि देवताओंके दर्शन सब और गन्ध आदि उत्पन्न करनेवाले हो । रसोंमें जो स्वाद लोगोंको नहीं होते, ध्यानमें ही उनके स्वरूपका है, वह तुम्हींसे आया है। इस प्रकार तुम्ही सम्पूर्ण साक्षात्कार किया जाता है; किन्तु भगवान् सूर्य प्रत्यक्ष जगत्के ईश्वर और सबकी रक्षा करनेवाले सूर्य हो। देवता माने गये हैं। प्रभो ! तीर्थों, पुण्यक्षेत्रों, यज्ञों और जगत्के एकमात्र - देवता बोले-ब्रान् ! सूर्य देवताको प्रसन्न कारण तुम्हीं हो। तुम परम पवित्र, सबके साक्षी और करनेके लिये आराधना, उपासना अथवा पूजा तो दूर गुणोंके धाम हो । सर्वज्ञ, सबके कर्ता, संहारक, रक्षक, रहे, इनका दर्शन ही प्रलयकालकी आगके समान है। अन्धकार, कीचड़ और रोगोंका नाश करनेवाले तथा भूतलके मनुष्य आदि सम्पूर्ण प्राणी इनके तेजके प्रभावसे दरिद्रताके दुःखोंका निवारण करनेवाले भी तुम्ही हो। इस मृत्युको प्राप्त हो गये। समुद्र आदि जलाशय नष्ट हो लोक तथा परलोकमें सबसे श्रेष्ठ बन्धु एवं सब कुछ गये। हमलोगोंसे भी इनका तेज सहन नहीं होता; फिर जानने और देखनेवाले तुम्ही हो। तुम्हारे सिवा दूसरा दूसरे लोग कैसे सह सकते हैं। इसलिये आप ही ऐसी कोई ऐसा नहीं है, जो सब लोकोंका उपकारक हो।। कृपा करें, जिससे हमलोग भगवान् सूर्यका पूजन कर आदित्यने कहा-महाप्राज्ञ पितामह ! आप सकें। सब मनुष्य भक्तिपूर्वक सूर्यदेवकी आराधना कर विश्वके स्वामी तथा स्रष्टा हैं, शीघ्र अपना मनोरथ सकें-इसके लिये आप ही कोई उपाय करें। बताइये। मैं उसे पूर्ण करूंगा। व्यासजी कहते हैं-देवताओंके वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले-सुरेश्वर ! तुम्हारी किरणे अत्यन्त ब्रह्माजी ग्रहोंके स्वामी भगवान् सूर्यके पास गये और सम्पूर्ण प्रखर हैं। लोगोंके लिये वे अत्यन्त दुःसह हो गयी जगत्का हित करनेके लिये उनकी स्तुति करने लगे। हैं। अतः जिस प्रकार उनमें कुछ मृदुता आ सके, वही ब्रह्माजी बोले-देव ! तुम सम्पूर्ण संसारके उपाय करो। नेत्रस्वरूप और निरामय हो। तुम साक्षात् ब्रह्मरूप हो। आदित्यने कहा-प्रभो! वास्तवमे मेरी तुम्हारी ओर देखना कठिन है। तुम प्रलयकालकी कोटि-कोटि किरणें संसारका विनाश करनेवाली ही है। अग्निके समान तेजस्वी हो। सम्पूर्ण देवताओंके भीतर अतः आप किसी युक्तिद्वारा इन्हें खरादकर कम कर दें। तुम्हारी स्थिति है। तुम्हारे श्रीविग्रहमें वायुके सखा अग्नि तब ब्रह्माजीने सूर्यके कहनेसे विश्वकर्माको बुलाया निरन्तर विराजमान रहते हैं। तुम्हींसे अन्न आदिका पाचन और वज्रकी सान बनवाकर उसीके ऊपर प्रलयकालके तथा जीवनकी रक्षा होती है। देव ! तुम्हींसे उत्पत्ति और समान तेजस्वी सूर्यको आरोपित करके उनके प्रचण्ड प्रलय होते हैं। एकमात्र तुम्ही सम्पूर्ण भुवनोंके स्वामी तेजको छाँट दिया। उस छैटे हुए तेजसे ही भगवान् * सन्ध्योपासनमात्रेण कल्मषात् पूतां व्रजेत्। (७५ ॥ १६)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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