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________________ सृष्टिखण्ड ] • संजय-व्यास-संवाद-मनुष्ययोनिमें उत्पन्न हुए दैत्य और देवताओंके लक्षण. २०९ .......................................tarametermerimeterinterneteenternment... करता है, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त होती है तथा वह तथा वह तीनों लोकोंको अपने वशमें कर लेता है। स्वर्ग और मोक्षको भी पा लेता है। विद्वान् पुरुषको सम्पूर्ण देवता अपने अभीष्टकी सिद्धिके लिये जिनका चाहिये कि वह मिट्टीकी दीवारोंमें, प्रतिमा अथवा चित्रके पूजन करते हैं, समस्त विघ्नोंका उच्छेद करनेवाले उन रूपमें पत्थरपर, दरवाजेकी लकड़ीमें तथा पात्रोंमें श्रीगणेशजीको नमस्कार है।* जो भगवान् श्रीविष्णुको श्रीगणेशजीकी मूर्ति अङ्कित करा ले। इनके सिवा प्रिय लगनेवाले पुष्पों तथा अन्यान्य सुगन्धित फूलोंसे, दूसरे-दूसरे स्थानमें भी, जहाँ हमेशा दृष्टि पड़ सके, फल, मूल, मोदक और सामयिक सामग्रियोंसे, दही श्रीगणेशजीकी स्थापना करके अपनी शक्तिके अनुसार और दूधसे, प्रिय लगनेवाले बाजोंसे तथा धूप और दीप उनका पूजन करे । जो ऐसा करता है उसके समस्त प्रिय आदिके द्वारा गणेशजीकी पूजा करता है, उसे सब कार्य सिद्ध होते हैं। उसके सामने कोई विघ्न नहीं आता प्रकारकी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। संजय-व्यास-संवाद-मनुष्ययोनिमें उत्पन्न हुए दैत्य और देवताओंके लक्षण संजयने पूछा-ब्रह्मन् !सात्त्विक पुरुष मनुष्योंमें नाश हो जाता है, तब एक ही धर्मात्मा पुरुष समस्त पुर, असुर आदिके लक्षणोंको कैसे जान सकते हैं ? नाथ! प्राम, जनसमुदाय और कुलकी रक्षा करता है। मेरे इस संशयको दूर कीजिये। जो मनुष्य अपवित्र एवं दुर्गन्धयुक्त पदार्थोके व्यासजी बोले-द्विजों तथा अन्य जातियोंमें भक्षणमें आनन्द मानता है, बराबर पाप करता है और अपने पूर्वकृत पापोंके अनुरूप असुर, राक्षस और प्रेत रातमें घूम-घूमकर चोरी करता रहता है, उसे विद्वान् भी जन्म ग्रहण करते हैं; किन्तु वे अपना स्वभाव नहीं पुरुषोंको वञ्चक समझना चाहिये। जो सम्पूर्ण कर्तव्य छोड़ते। मनुष्योंमें जो असुर जन्मते हैं, वे सदा ही कार्योंसे अनभिज्ञ तथा सब प्रकारके कर्मोंसे अपरिचित लड़ाई-झगड़ा करनेको उत्सुक रहते हैं। जो मायावी, है, जिसे समयोचित सदाचारका ज्ञान नहीं है, वह मूर्ख दुराचारी और क्रूर हों, उन्हें इस पृथ्वीपर राक्षस वास्तवमें पशु ही है। जो हिंसक, सजातीय मनुष्योंको समझना चाहिये। उद्वेजित करनेवाला, कलह-प्रिय, कायर और उच्छिष्ट इसके विपरीत एक भी बुद्धिमान् एवं सुयोग्य पुत्र भोजनका प्रेमी है, वह मनुष्य कुत्ता कहा गया है। जो हो तो उसके द्वारा समूचे कुलकी रक्षा होती है। एक भी स्वभावसे ही चशल, भोजनके लिये सदा लालायित वैष्णव पुत्र अपने कुलकी अनेकों पीढ़ियोंका उद्धार कर रहनेवाला, कूद-कूदकर चलनेवाला और जंगलमें देता है। जो पुण्यतीथों और मुक्तिक्षेत्रमें ज्ञानपूर्वक रहनेका प्रेमी है, उस मनुष्यको इस पृथ्वीपर बंदर मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे संसार-सागरसे तर जाते हैं। समझना चाहिये। जो वाणी और बुद्धिद्वारा अपने और जो ब्रह्मज्ञानी होते हैं, वे स्वयं तो तरते ही है, कुटुम्बियों तथा दूसरे लोगोंकी भी चुगली खाता और दूसरोंको भी तार देते हैं। एक पतिव्रता स्त्री अपने सबके लिये उद्वेगजनक होता है, वह पुरुष सर्पके समान कुलकी अनेकों पीढ़ियोंका उद्धार कर देती है। इसी माना गया है। जो बलवान्, आक्रमण करनेवाला, प्रकार द्विज और देवताओंके पूजनमें तत्पर रहनेवाला नितान्त निर्लज्ज, दुर्गन्धयुक्त मांसका प्रेमी और भोगासक्त धर्मात्मा जितेन्द्रिय पुरुष भी अपने कुलका उद्धार करता होता है, वह मनुष्योंमें सिंह कहा गया है। उसकी है। कलियुगके अन्तमें जब शहर और गाँवोंमें धर्मका आवाज सुनते ही दूसरे भेड़िये आदिकी श्रेणीमें गिने * अभिप्रेतार्थसिस्यर्थ पूजितो यः सुरैरपि । सर्वविघ्नच्छिदे तस्मै गणाधिपतये नमः ॥ (६३ । १०)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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