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________________ सृष्टिखण्ड ] • ब्राह्मणोंके जीविकोपयोगी कर्म और उनका महत्त्व, गौओंकी महिमा, गोदानका फल . १६५ सम्पूर्ण तीर्थ, मूत्रस्थानमें गङ्गाजी, रोमकूपोंमें ऋषि, मुख जाता है और दाता पुरुष विष्णुरूप होकर वैकुण्ठमें और पृष्ठभागमें यमराज, दक्षिण पार्श्वमें वरुण और निवास करता है। जो दस गौएँ दान करता है तथा जो कुबेर, वाम पार्श्वमें तेजस्वी और महाबली यक्ष, मुखके भार ढोने में समर्थ एक ही बैल दान करता है, उन दोनोंका भीतर गन्धर्व, नासिकाके अग्रभागमें सर्प, खुरोंके पिछले फल ब्रह्माजीने समान ही बतलाया है। जो पुत्र पितरोंके भागमें अप्सराएँ, गोबरमें लक्ष्मी, गोमूत्रमें पार्वती, उद्देश्यसे साँड़ छोड़ता है, उसके पितर अपनी इच्छाके चरणोंके अग्रभागमें आकाशचारी देवता, रंभानेकी अनुसार विष्णुलोकमें सम्मानित होते हैं। छोड़े हुए साँड़ आवाजमें प्रजापति और थनोंमें भरे हुए चारों समुद्र या दान की हुई गौओंके जितने रोएँ होते हैं, उतने हजार निवास करते हैं। जो प्रतिदिन स्रान करके गौका स्पर्श वर्षोंतक मनुष्य स्वर्गका सुख भोगते हैं। छोड़ा हुआ साँड़ करता है, वह मनुष्य सब प्रकारके स्थूल पापोंसे भी मुक्त अपनी पूँछसे जो जल फेंकता है, वह एक हजार वर्षांतक हो जाता है। जो गौओंके खुरसे उड़ी हुई धूलको सिरपर पितरोंके लिये तृप्तिदायक होता है। वह अपने खुरसे धारण करता है, वह मानो तीर्थक जलमें स्नान कर लेता जितनी भूमि खोदता है, जितने ढेले और कीचड़ है और सब पापोंसे छुटकारा पा जाता है। उछालता है, वे सब लाखगुने होकर पितरोंके लिये 'नारदजीने पूछा-गुरुश्रेष्ठ ! परमेष्ठिन् ! विभिन्न स्वधारूप हो जाते हैं। यदि पिताके जीते-जी माताकी रंगोंकी गौओंमें किसके दानसे क्या फल होता है? मृत्यु हो जाय तो उसकी स्वर्ग-प्राप्तिके लिये चन्दन-चर्चित इसका तत्त्व बतलाइये। धेनुका दान करना चाहिये। ऐसा करनेसे दाता पितरोंके ब्रह्माजीने कहा-बेटा ! ब्राह्मणको श्वेत गौका ऋणसे मुक्त हो जाता है तथा भगवान् श्रीविष्णुकी भांति दान करके मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है। सदा महलमें पूजित होकर अक्षय स्वर्गको प्राप्त करता है। सब प्रकारके निवास करता है तथा भोग-सामग्रियोंसे सम्पन्न होकर शुभ लक्षणोंसे युक्त, प्रतिवर्ष बच्चा देनेवाली नयी दुधार सुख-समृद्धिसे भरा-पूरा रहता है। धूएँके समान गाय पृथ्वीके समान मानी गयी है। उसके दानसे रङ्गवाली गौ स्वर्ग प्रदान करनेवाली तथा भयङ्कर संसारमें भूमि-दानके समान फल होता है। उसे दान करनेवाला पापोंसे छुटकारा दिलानेवाली है। कपिला गौका दान मनुष्य इन्द्रके तुल्य होता है और अपनी सौ पीढ़ियोंका अक्षय फल प्रदान करनेवाला है। कृष्णा गौका दान उद्धार कर देता है। जो गौका हरण करके उसके बछड़ेकी देकर मनुष्य कभी कष्टमें नहीं पड़ता। भूरे रङ्गकी गौ मृत्युका कारण बनता है, वह महाप्रलयपर्यन्त कीड़ोंसे भरे संसारमें दुर्लभ है। गौर वर्णकी धेनु समूचे कुलको हुए कुएँ पड़ा रहता है। गौओंका वध करके मनुष्य आनन्द प्रदान करनेवाली होती है। लाल नेत्रोंवाली गौ अपने पितरोंके साथ घोर रौरव नरकमें पड़ता है तथा रूपकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको रूप प्रदान करती है। उतने ही समयतक अपने पापका दण्ड भोगता रहता है। नीली गौ धनाभिलाषी पुरुषकी कामना पूर्ण करती है। जो इस पवित्र कथाको एक बार भी दूसरोंको सुनाता है, एक ही कपिला गौका दान करके मनुष्य सारे पापोंसे उसके सब पापोंका नाश हो जाता है तथा वह देवताओंके मुक्त हो जाता है। बचपन, जवानी और बुढ़ापेमें जो पाप साथ आनन्दका उपभोग करता है। जो इस परम पुण्यमय किया गया है, क्रियासे, वचनसे तथा मनसे भी जो पाप प्रसङ्गका श्रवण करता है, वह सात जन्मोंके पापोंसे बन गये है, उन सबका कपिला गौके दानसे क्षय हो तत्काल मुक्त हो जाता है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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