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________________ सृष्टिखण्ड ] . • तारकासुरके जन्मकी कथा और ब्रह्माजीका देवताओंको सान्त्वना देना • १३७ कहा-'गुरुदेव! इस समय देवताओंके सामने काम नहीं करते थे। उन्हें प्रहार करते देख दानवराज दानवोंके साथ घोर संग्रामका अवसर उपस्थित होना तारक रथसे कूद पड़ा और करोड़ों देवताओंको उसने चाहता है; इस विषयमें हमें क्या करना चाहिये। कोई अपने हाथके पृष्ठभागसे ही मार गिराया। यह देख नीतियुक्त बात बताइये।' - देवताओंकी बची-खुची सेना भयभीत हो उठी और बृहस्पतिजी बोले-सुरश्रेष्ठ ! साम-नीति और युद्धकी सामग्री वहीं छोड़कर चारों दिशाओंमें भाग चतुरङ्गिणी सेना-ये ही दो विजयाभिलाषी वीरोंकी गयी। ऐसी परिस्थितिमें पड़ जानेपर देवताओंके हृदयमें सफलताके साधन सुने गये हैं। ये ही सनातन बड़ा दुःख हुआ और वे जगद्गुरु ब्रह्माजीकी शरणमें रक्षा-कवच है। नीतिके चार अङ्ग हैं-साम, भेद, दान जाकर सुन्दर अक्षरोंसे युक्त वाक्योंद्वारा उनकी स्तुति और दण्ड। यदि आक्रमण करनेवाले शत्रु लोभी हों तो करने लगे। उनपर सामनीतिका प्रभाव नहीं पड़ता। यदि वे एकमतके देवता बोले-सत्त्वमूर्ते! आप प्रणवरूप हैं। और संगठित हों तो उनमें फूट भी नहीं डाली जा सकती अनन्त भेदोंसे युक्त जो यह विश्व है, उसके अङ्कर तथा जो बलपूर्वक सर्वस्व छीन लेनेकी शक्ति रखते हैं, आदिकी उत्पत्तिके लिये आप सबसे पहले ब्रह्मारूपमें उनके प्रति दाननीतिके प्रयोगसे भी सफलता नहीं मिल प्रकट हुए हैं। तदनन्तर इस जगत्की रक्षाके लिये सकती; अतः अब यहाँ एक ही उपाय शेष रह जाता है। सत्वगुणके मूलभूत विष्णुरूपसे स्थित हुए हैं। इसके वह है-दण्ड। यदि आपलोगोंको जॅचे तो दण्डका ही बाद इसके संहारकी इच्छासे आपने रुद्ररूप धारण प्रयोग करें। किया। इस प्रकार एक होकर भी त्रिविध रूप धारण बृहस्पतिजीके ऐसा कहनेपर इन्द्रने अपने कर्तव्यका करनेवाले आप परमात्माको नमस्कार है। जगत्में जितने निश्चय करके देवताओंकी सभामें इस प्रकार भी स्थूल पदार्थ हैं, उन सबके आदि कारण आप ही हैं; कहा-'स्वर्गवासियो! सावधान होकर मेरी बात अतः आपने अपनी ही महिमासे सोच-विचारकर हम सुनो-इस समय युद्धके लिये उद्योग करना ही उचित देवताओंका नाम-निर्देश किया है। साथ ही इस है; अतः मेरी सेना तैयार की जाय । यमराजको सेनापति ब्रह्माण्डके दो भाग करके ऊर्ध्वलोकोंको आकाशमें तथा बनाकर सम्पूर्ण देवता शीघ्र ही संग्रामके लिये निकले।' अधोलोकोंको पृथ्वीपर और उसके भीतर स्थापित किया यह सुनकर प्रधान-प्रधान देवता कवच बाँधकर तैयार है। इससे हमें यह जान पड़ता है कि विश्वका सारा हो गये। मातलिने देवराजका दुर्जय रथ जोतकर खड़ा अवकाश आपने ही बनाया है। आप देहके भीतर किया। यमराज भैंसेपर सवार हो सेनाके आगे खड़े हुए। रहनेवाले अन्तर्यामी पुरुष है। आपके शरीरसे ही वे अपने प्रचण्ड किङ्करोंद्वारा सब ओरसे घिरे हुए थे। देवताओंका प्राकट्य हुआ है। आकाश आपका मस्तक, अग्नि, वायु, वरुण, कुबेर, चन्द्रमा तथा आदित्य-सब चन्द्रमा और सूर्य नेत्र, सर्पोका समुदाय केश और दिशाएँ लोग युद्धके लिये उपस्थित हुए। देवताओंकी वह सेना कानोंके छिद्र है। यज्ञ आपका शरीर, नदियाँ सन्धिस्थान, तीनों लोकोंके लिये दुर्जय थी। उसमें तैंतीस करोड़ पृथ्वी चरण और समुद्र उदर हैं। भगवन् ! आप देवता एकत्रित थे। तदनन्तर युद्ध आरम्भ हुआ। भक्तोंको शरण देनेवाले, आपत्तिसे बचानेवाले तथा अश्विनीकुमार, मरुद्रण, साध्यगण, इन्द्र, यक्ष और उनकी रक्षा करनेवाले हैं। आप सबके ध्यानके विषय गन्धर्व-ये सभी महाबली एक साथ मिलकर दैत्यराज हैं। आपके स्वरूपका अन्त नहीं है। तारकपर प्रहार करने लगे। उन सबके हाथोंमें नाना देवताओंके इस प्रकार स्तुति करनेपर ब्रह्माजी बहुत प्रकारके दिव्यास्त्र थे। परन्तु तारकासुरका शरीर वज्र एवं प्रसन्न हुए। उन्होंने बायें हाथसे वरद मुद्राका प्रदर्शन पर्वतके समान सुदृढ़ था। देवताओंके हथियार उसपर करते हुए देवताओंसे कहा-'देवगण ! तुम्हारा तेज
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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