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________________ १२८ ... . अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . .. [संक्षिप्त पयपुराण पुत्रोंको सौंप दीजिये और स्वयं] अपने परम धामको श्रीरामचन्द्रजीने कहा-मैं प्रजापतियों और पधारिये। भगवन् ! आपको नमस्कार है।'... देवताओंसे पूजित लोककर्ता ब्रह्माजीको नमस्कार करता ...तदनन्तर श्रीरामचन्द्रजी भगवान् शंकरको प्रणाम हूँ। समस्त देवताओं, लोकों एवं प्रजाओंके स्वामी करके वहाँसे चल दिये। ऊपर-ही-ऊपर जब वे पुष्कर जगदीश्वरको प्रणाम करता हूँ। देवदेवेश्वर ! आपको तीर्थके सामने पहुंचे तो उनके विमानकी गति रुक गयी। नमस्कार है। देवता और असुर दोनों ही आपकी वन्दना अब वह आगे नहीं बढ़ पाता था। तब श्रीरामचन्द्रजीने करते हैं। आप भूत, भविष्य और वर्तमान-तीनों कहा-सुग्रीव ! इस निराधार आकाशमें स्थित होकर कालोंके स्वामी हैं। आप ही संहारकारी रुद्र हैं। आपके भी यह विमान कैसे आबद्ध हो गया है?' इसका कुछ नेत्र भूरे रंगके हैं। आप ही बालक और आप ही वृद्ध हैं। कारण अवश्य होगा, तुम नीचे जाकर पता लगाओ।' गलेमें नीला चिह्न धारण करनेवाले महादेवजी तथा लम्बे श्रीरघुनाथजीके आज्ञानुसार सुग्रीव विमानसे उतरकर जब उदरवाले गणेशजी भी आपके ही स्वरूप है। आप पृथ्वीपर आये तो क्या देखते हैं कि देवताओं, सिद्धों वेदोंके कर्ता, नित्य, पशुपति (जीवोंके स्वामी), और ब्रह्मर्षियोंके समुदायके साथ चारों वेदोंसे युक्त अविनाशी, हाथोमें कुश धारण करनेवाले, हंससे चिह्नित भगवान् ब्रह्माजी विराजमान हैं। यह देख वे विमानपर ध्वजावाले, भोक्ता, रक्षक, शंकर, विष्णु, जटाधारी, जाकर श्रीरामचन्द्रजीसे बोले-'भगवन् ! यहाँ समस्त मुण्डित, शिखाधारी एवं दण्ड धारण करनेवाले, महान् लोकोंके पितामह ब्रह्माजी लोकपालों, वसुओं, आदित्यों यशस्वी, भूतोंके ईश्वर, देवताओंके अधिपति, सबके और मरुद्रणोंके साथ विराजमान हैं। इसीलिये पुष्पक आत्मा, सबको उत्पन्न करनेवाले, सर्वव्यापक, सबका विमान उन्हें लांघकर नहीं जा रहा है।' तब श्रीरामचन्द्रजी संहार करनेवाले, सृष्टिकर्ता, जगद्गुरु, अविकारी, सुवर्णभूषित पुष्पक विमानसे उतरे और देवी गायत्रीके कमण्डलु धारण करनेवाले देवता, मुक्-सुवा आदि साथ बैठे हुए भगवान् ब्रह्माको साष्टाङ्ग प्रणाम किया। धारण करनेवाले, मृत्यु एवं अमृतस्वरूप, पारियात्र इसके बाद वे प्रणतभावसे उनकी स्तुति करने लगे। पर्वतरूप, उत्तम व्रतका पालन करनेवाले, ब्रह्मचारी, व्रतधारी, हृदय-गुहामें निवास करनेवाले, उत्तम कमल धारण करनेवाले, अमर, दर्शनीय, बालसूर्यके समान अरुण कान्तिवाले, कमलपर वास करनेवाले, षड्विध ऐश्वर्यसे परिपूर्ण, सावित्रीके पति, अच्युत, दानवोंको वर देनेवाले, विष्णुसे वरदान प्राप्त करनेवाले, कर्मकर्ता, पापहारी, हाथमें अभय-मुद्रा धारण करनेवाले, अग्निरूप मुखवाले, अग्निमय ध्वजा धारण करनेवाले, मुनिस्वरूप, दिशाओंके अधिपति, आनन्दरूप, वेदोंकी सृष्टि करनेवाले, धर्मादि चारों पुरुषार्थोक स्वामी, वानप्रस्थ, वनवासी, आश्रमोंद्वारा पूजित, जगत्को धारण करनेवाले, कर्ता, पुरुष, शाश्वत, ध्रुव, धर्माध्यक्ष, विरूपाक्ष, मनुष्योंके गन्तव्य मार्ग, भूतभावन, ऋक्, साम और यजुः-इन तीनों वेदोंको धारण करनेवाले, अनेक रूपोंवाले, हजारों सूर्योके समान तेजस्वी, अज्ञानियोंकोविशेषतः दानवोंको मोह और बन्धनमें डालनेवाले,
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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