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________________ सृष्टिखण्ड ] . श्रीरामके द्वारा शम्बूकका वध और मरे हुए ब्राह्मणवालकको जीवनकी प्राप्ति . ११५ mmmmmmmm..mernamentertainment.m.me.net.me.me...... .. चाहिये।" ऐसा विचारकर महात्मा रघुनाथजी पुनः पहले सत्ययुगमें सब ओर ब्राह्मणोंकी ही प्रधानता थी। प्रजा-पालनमें लग गये। एक दिन एक बूढ़ा ब्राह्मण, जो कोई ब्राह्मणेतर पुरुष तपस्वी नहीं होता था। उस समय उसी प्रान्तका रहनेवाला था, अपने मरे हुए पुत्रको लेकर सभी अकालमृत्युसे रहित और चिरजीवी होते थे। फिर राजद्वारपर आया और इस प्रकार कहने लगा-'बेटा! त्रेतायुग आनेपर ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनोंकी प्रधानता हो मैंने पूर्वजन्ममें ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिससे तुझ जाती है-दोनों ही तपमें प्रवृत्त होते हैं। द्वापरमें वैश्योंमें इकलौते पुत्रको आज मैं मौतके मुखमें पड़ा देख रहा हूँ। भी तपस्याका प्रचार हो जाता है। यह तीनों युगोंके निश्चय ही यह महाराज श्रीरामका ही दोष है, जिसके धर्मकी विशेषता है। इन तीनों युगोंमें शूद्रजातिका मनुष्य कारण तेरी मृत्यु [इतनी जल्दी] आ गयी। रघुनन्दन ! तपस्या नहीं कर सकता, केवल कलियुगमें शूद्रजातिको अब मैं भी स्त्रीसहित प्राण त्याग दूंगा। फिर आपको भी तपस्याका अधिकार होगा। राजन् ! इस समय बालहत्या, ब्रह्महत्या और स्त्रीहत्या- तीन पाप लगेंगे। आपके राज्यकी सीमापर एक खोटी बुद्धिवाला शूद्र रघुनाथजीने उस ब्राह्मणकी दुःख और शोकसे भरी अत्यन्त कठोर तपस्या कर रहा है। उसीके शास्त्रविरुद्ध सारी बात सुनी। फिर उसे चुप कराकर महर्षि आचरणके प्रभावसे इस बालककी मृत्यु हुई है। राजाके वसिष्ठजीसे पूछा-'गुरुदेव ! ऐसी अवस्थामें इस राज्य या नगरमें जो कोई भी अधर्म अथवा अनुचित अवसरपर मुझे क्या करना चाहिये? इस ब्राह्मणकी कही कर्म करता है, उसके पापका चतुर्थांश राजाके हिस्सेमें हुई बात सुनकर मैं किस प्रकार अपने दोषका मार्जन आता है। अतः पुरुषश्रेष्ठ ! आप अपने राज्यमें घूमिये करूँ-कैसे इस बालकको जीवन-दान हूँ?' [इतने में और जहाँ कहीं भी पाप होता दिखायी दे, उसे रोकनेका ही देवर्षि नारद वहाँ आ पहुंचे। वे वसिष्ठके सामने प्रयत्न कीजिये। ऐसा करनेसे आपके धर्म, बल और खड़े हो अन्य ऋषियोंके समीप महाराज श्रीरामसे आयुकी वृद्धि होगी। साथ ही यह बालक भी जी उठेगा। नारदजीके इस कथनपर श्रीरघुनाथजीको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे अत्यन्त हर्षमें भरकर लक्ष्मणसे बोले-'सौम्य ! जाकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मणको सान्त्वना दो और उस बालकके शरीरको तेलसे भरी नावमें रखवा दो। जिस प्रकार भी उस निरपराध बालकके शरीरकी रक्षा हो सके, वह उपाय करना चाहिये।' उत्तम लक्षणोंसे युक्त सुमित्राकुमार लक्ष्मणको इस प्रकार आदेश देकर भगवान् श्रीरामने पुष्पक विमानका स्मरण किया। रघुनाथजीका अभिप्राय जानकर इच्छानुसार चलनेवाला वह स्वर्णभूषित विमान एक ही मुहूर्तमें उनके समीप आ पहुँचा और हाथ जोड़कर बोला- 'महाराज ! आपका आज्ञाकारी यह दास सेवामें उपस्थित है।' पुष्पककी सुन्दर उक्ति सुनकर महाराज श्रीराम महर्षि वसिष्ठको प्रणाम करके विमानपर आरूढ़ हुए और धनुष, भाथा एवं चमचमाता हुआ खड़ लेकर तथा लक्ष्मण और भरतको नगरका भार सौंप बोले-'रघुनन्दन ! इस बालककी जिस प्रकार दक्षिण दिशाकी ओर चल दिये। [दण्डकारण्यके पास अकालमृत्यु हुई है, उसका कारण बताता हूँ सुनिये। पहुँचनेपर] एक पर्वतके दक्षिण किनारे बहुत बड़ा तालाब मंन्तपु.५
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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