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रमण महर्षि
रूपान्तरित हो जायगी और अन्तत उसमे समा जायगी जो इस तुच्छ अह से परे है।
बहुत से व्यक्ति श्रीभगवान् के अनासक्त भाव से काय करने के आदेश से पहले उलझन मे पड जाते थे और उन्हें इस सम्बन्ध मे आश्चय होता था कि क्या वह इस प्रकार अपना काय दक्षतापूवक मपन्न कर सकेंगे । उनके सामने स्वय श्रीभगवान् का उदाहरण था क्योकि वह जो कोई भी कार्य करते थे, चाहे यह प्रूफ सशोधन का कार्य हो या जिल्दवन्दी का, भोजन तैयार करने का कार्य हो या नारियल के खोल को काटकर उममे चमचा बनाने या उस पर पालिश करने का, वह इन सब कामो को विलकुल ठीक-ठीक करते थे। और तथ्य तो यह है कि 'मैं कर्ता हूँ' इस प्रकार की भ्रान्त धारणा के लुप्त होने से पूर्व, कार्य के प्रति निरपेक्ष वृत्ति से काय खराब नही होता अपितु व्यक्ति की कार्य दक्षता तब तक बढती जाती है जब तक कि वह पूरी ईमानदारी से कार्य मे सलग्न रहता है। इसका अभिप्राय कार्य की गुणवत्ता के प्रति उदासीनता से नही बल्कि इसका अभिप्राय तो केवल काय मे अह के अहस्तक्षेप से है । अ के हस्तक्षेप के कारण ही संघर्ष और अदक्षता का आविर्भाव होता है । अगर सभी लोग कतव्य भावना से प्रेरित होकर निरभिमान और नि स्वाथ भाव से कार्य करें तो शोपण बन्द हो जायगा, प्रयत्नो का समुचित दिशा मे नियोजन होगा, प्रतिद्वन्द्विता का स्थान समन्वय ले लेगा और विश्व की अधिकाश समस्याओ का समाधान हो जायगा । कार्य-सौष्ठव को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचेगी। हमे यह स्मरण रखना चाहिए कि प्रत्येक धम मे विश्वास के युगो ने अपने को साधन मात्र समझने वाले और गुप्त रहना पसन्द करने वाले कलाकारो के माध्यम से अत्यन्त सुन्दर कलाकृतियो को-चाहे यह गॉथिक गिरजाघर के रूप मे हो या मस्जिद के, हिन्दू मूर्तिकला के रूप मे हो या ताओवादी पेंटिंग के जन्म दिया है। अन्य व्यवसायो से भी उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं । एक डाक्टर, जव भावुक नही होता तब वह अधिक दक्षता से कार्य करता है और वस्तुत यही कारण है कि वह प्राय अपने परिवार का इलाज करना पसन्द नहीं करता। जब एक वित्त-प्रबन्धक के अपने स्वार्थ निहित नहीं होते तब वह अधिक ठडे दिमाग से और दक्षता से काम करता है। खेलो मे भी भाग्य उसी का साथ देता है जो निरपेक्ष भाव से खेलता है।
पारिवारिक जीवन जारी रखने के आदेश पर कई बार लोग यह आक्षेप करते थे कि स्वय श्रीभगवान् ने गह-त्याग कर दिया है। इमका वह अत्यन्त मक्षिप्त उत्तर दिया करते थे कि प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रारब्ध के अनुसार कार्य करता है। परन्तु हमे यह स्मरण रखना चाहिए कि जीवन के दैनिक कार्यक्रम में पूण वाह्य सामान्यता और योगदान, जिसका भगवान् ने वाद के वयों