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मे इतनी पूर्णता के साथ आदर्श प्रस्तुत किया और अपने अनुयायियो से जिसके अनुसरण के लिए कहा, मदुरा में अपने चाचा के घर पर जागरण के बाद तत्काल सभव नहीं था। भगवान के लिए जो चीज सभव है, उसे वह अपनी अनुकम्पा से अपने अनुयायियो के लिए भी सभव बनाते हैं। ___ अब हम फिर माँ की ओर आते हैं। उन्होंने जो प्रशिक्षण प्राप्त किया वह अत्यन्त कठोर था । प्राय श्रीभगवान् मां की उपेक्षा कर देते, जव वह बोलती तब उनके प्रश्नो का उत्तर नहीं देते थे हालांकि वह दूसरो का ध्यान रखते थे । अगर वह शिकायत करती तो श्रीभगवान् कहा करते, "सभी स्त्रियाँ मेरी माताएं हैं, केवल तुम्ही नहीं।" यहां हमे ईसामसीह का कयन स्मरण हो आता है । जब उनसे कहा गया कि उनकी माता और भाई भीड में सबसे आगे उनसे बात करने की प्रतीक्षा में खड़े हुए हैं, तो उन्होंने कहा था, "जो कोई स्वर्ग स्थित मेरे महान् पिता की इच्छा पालन करता है, वही मेरा भाई, बहिन
और माता है।" पहले श्रीभगवान् की मां उद्विग्न होकर अश्रुपात करने लगती थी परन्तु धीरे-धीरे उन्हें समझ आने लगी। स्वामी की माता होने की उच्च भावना लुप्त हो गयी, अह भाव क्षीण हो गया, उन्होंने अपने को भक्तो की सेवा में लगा दिया। ___ अब भी श्रीभगवान् अपनी माता के रूढिनिष्ठ मिथ्या विश्वासों का मजाक उहाया करते थे। अगर उनको साडी किसी अब्राह्मण से छू जाती तो वह परिहासमय आश्चय मे चिल्ला उठते, "देखो, देखो तुम्हारी पवित्रता नष्ट हो गयी, तुम्हारा धर्म चला गया 1" आश्रम का भोजन सर्वथा निरामिप था परन्तु कई अत्यन्त श्रद्धालु ब्राह्मणो की तरह अलगम्माल और आगे बढ़ गयी थी और कई सब्जियों को भी असात्विक समझती थी। श्रीभगवान् उनकी हंसी उहाते हुए कहा करते थे, "प्याज से बचकर रहना मोक्ष मे बसा बाधक है।" __यहाँ मैं यह बता दूं कि श्रीभगवान सामान्यत रूढ़िनिष्ठता के विरोधी नहीं थे। पर यहां रूढिनिष्ठता के प्रति मत्यधिक आसक्ति थी और इसी के वह तीव्र विरोधी थे। सामान्यत वह सात्विक भोजन की महत्ता पर बल दिया करते थे। वह प्राय बाह्य गतिविधि के सम्बन्ध में कोई आदेश नही दिया करते थे, उनका सामान्य तरीका भक्त के हृदय में आध्यात्मिक बीज वोना और इसके विकास के साथ बाह्य जीवन को रूपान्तरित करने के लिए छोड देना था। आदेश तो भवत को उसके अन्त करण से मिलते थे। एक पाश्चात्य भक्त जब आश्रम आया, तब वह पक्का मांसाहारी था, मांस को भोजन का अत्यन्त आवश्यक और अत्यन्त स्वादिष्ट अग समझता था। उसे इम मम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया, परन्तु एक समय ऐसा आया जब उसे मांस माने के विचार तक से घृणा हो गयी।