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रमण महर्षि
हो सकता था ? किसकी शक्ति है कि इसे शब्दो मे अभिव्यक्त करे, जबकि तूने भी प्राचीन काल मे दक्षिणामूर्ति के रूप में प्रकट होकर इसे केवल मौनभाव से अभिव्यक्त किया था । अपनी स्थिति केवल मौनभाव से प्रकट करने के लिए तू स्वग से पृथ्वी तक प्रकाशमान पहाडी के स्प मे अवस्थित है ।" "
श्रीभगवान् पहाडी की प्रदक्षिणा के लिए हमेशा भक्तो को प्रोत्साहित किया करते थे । वृद्धो और अशक्तो को भी वह हतोत्साह नही करते थे, केवल उनसे धीरे चलने के लिए कहते थे । वस्तुत, प्रदक्षिणा धीरे-धीरे ही की जानी चाहिए, जिस प्रकार कोई गर्भवती रानी नौवे महीने मे धीरे-धीरे चलती है । मौन घ्यानावस्था मे या गाते हुए या शख बजाते हुए प्रदक्षिणा पैदल ही की जानी चाहिए, किसी सवारी मे नही, और तथ्य तो यह है कि यह नगे पाँव की जानी चाहिए । प्रदक्षिणा का सर्वाधिक शुभ समय शिवरात्रि और कार्तिकी का है | कार्तिकी के शुभ दिन कृत्तिका नक्षत्रमण्डल का पूर्ण चन्द्र के साथ सम्मिलन होता है । यह दिन प्राय नवम्बर के महीने मे पडता है । इन शुभ अवसरों पर भक्तो की निरन्तर धारा की उपमा पहाडी के चारो ओर विराजमान माला से की गयी है ।
एक वार का जिक्र है कि एक वृद्ध अपाहिज वैसाखियों के सहारे उस सडक पर चल रहा था जो पहाडी को चारो ओर से घेरे हुए है । प्राय उसने वैसाखियों के सहारे प्रदक्षिणा की थी परन्तु इस बार उसे तिरुवन्नामलाई से प्रस्थान करना था । वह अपने को अपने परिवार पर भार समझता था, परिवार मे झगडे पैदा हो गये थे और उसने परिवार वालो को छोडने और किसी गाँव मे स्वय अपनी आजीविका अर्जित करने का निश्चय कर लिया था । एकाएक एक युवक ब्राह्मण उसके सामने प्रकट हुआ और उसने यह कहते हुए उसकी वैसाखियाँ उससे छीन ली, "तुम्हें इन वैसाखियों की जरूरत नही है ।" पूर्व इसके कि अपने चेहरे पर प्रकट होने वाले क्रोध को वह शब्दो द्वारा अभिव्यक्ति प्रदान करता, उसने यह अनुभव किया कि उसके अग सीधे हैं और उसे बैसाखियो की जरूरत नही है । उसने तिरुवन्नामलाई नही छोडा, वह वही रुक गया और वहाँ वहुत विख्यात हो गया । श्रीभगवान् ने यह कहानी पूरे विस्तार के साथ कुछ भक्तो को सुनायी थी और कहा था कि यह कहानी अरुणाचल स्थल पुराण में वर्णित कहानी से हूबहू मिलती-जुलती है । उस समय वह पहाडी पर तरुणस्वामी के रूप मे थे परन्तु उन्होने यह कभी नही कहा कि वह ही ब्राह्मण युवक के रूप मे प्रकट हुए थे ।
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एट स्टॅजाज ऑॉन श्री अरुणाचल, जिल्द २, रचयिता श्रीभगवान् ।