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________________ छठा अध्याय अरुणाचल अरुणाचल का दृश्य बसा ऊवड-खाबड है । चारो ओर पत्थर इस प्रकार पहे हैं मानो किमी दैत्याकार हाथ ने उन्हें इधर-उधर विखेर दिया हो । जहाँतहाँ सूखे कांटो और नागफणी के घेरे हैं, धूप के झुलसते हुए खेत हैं, मयानक आकार की छोटी-छोटी पहाडियां हैं, और धूल भरी सहक के साथ-साथ विशालकाय छायादार वृक्ष हैं और कही-कही तालाव या कुएं के निकट हरेभरे धान के खेत हैं । अरुणाचल की पहाडी के चारो भोर रूक्ष सौन्दय विसरा पठा है। यद्यपि यह पहाडी केवल २,६८२ फुट ऊंची है तथापि यह समस्त ग्रामीण प्रदेश मे छायी हुई है। दक्षिण अर्थात् आश्रम की तरफ से यह अत्यन्त सीधी है-~-एक सममित पहाडी जिसके दोनो ओर दो लगभग वरावर तराइयों हैं । इस पहाडी की चोटी पर प्रात काल के समय प्राय धवल मेघ या धुन्ध का एक मुकुट बन जाता है और यह सममितता और अधिक पूण दिखायी देती है। परन्तु यह वही आश्चमजनक बात है कि जैसे-जैसे कोई व्यक्ति पहाडी के चारो ओर स्थित ८ मील लम्बी सड़क पर निर्धारित माग से दक्षिण से पश्चिम की और अपना दायां पाश्य पहाडी की ओर किये जाता है तो दृश्य बदलता जाता है और प्रत्येक दृश्य की अपनी विशेषता तथा प्रतीकात्मकता हैकही तो प्रतिध्वनि की गूंज सुनायी देती है, कही दोनो तराइयो के बीच मे मुश्किल से चोटी के दर्शन होते हैं, जिम प्रकार कि दो विचारो के मध्यावकाश मे आत्म-तत्व के, कही पांचो चोटियो के दर्शन होते हैं, कही शिव और शक्ति के, और इसी प्रकार के अन्य दृश्य । ___ आठों दिशामो मे पवित्र तालाव हैं और विभिन्न महत्त्वपूर्ण स्थानों पर मण्डप बने हुए है। इन मण्डपो में से प्रसिद्ध दक्षिणामूत्ति का मण्डप दक्षिणी फोने पर है। दक्षिणामूत्ति मे मौनभाव से उपदेश देते हुए शिव हैं। यह है अरुणाचल का दृश्य । "कौन द्रष्टा है ? जब मैंने अन्तर्मुख होकर देखा तो द्रष्टा का लोप हो गया और कुछ भी शेष न रहा। "मैंने देखा' इस प्रकार का कोई विचार पैदा न हमा, जो "मैंने नही देखा' इस प्रकार का विचार कैसे पैदा
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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