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श्रीभगवान् का दैनिक जीवन
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सभा भवन में अगरबत्तियाँ जल रही हैं । कई भक्तजन आँखें बन्द करके चिन्तन में बैठे हुए हैं, दूसरे विश्राम कर रहे हैं और श्रीभगवान् की ओर देख रहे हैं । एक दर्शक श्रीभगवान् की प्रशसा मे स्वरचित गीत गाता है । सुदूर यात्रा से वापस आने वाला एक भक्त श्रीभगवान् के चरणो में फलों की भेंट चढाता है और फिर उनके सामने बैठ जाता है। एक सेवक श्रीभगवान् के प्रसाद के रूप में भेंट का कुछ हिस्सा भक्त को वापस दे देता है, कुछ प्रसाद सभा भवन मे आने वाले बच्चो मे बांट दिया जाता है । तख्त के पास खिडकी में बैठे हुए या दरवाजे के पास ताक-झांक करने वाले बन्दरों, मोरो या अगर लक्ष्मी गौ वहाँ उपस्थित हो तो उसे भी प्रसाद दे दिया जाता है। शेष प्रसाद भोजन कक्ष में बैठे भक्तो में बांट दिया जाता है ।
श्रीभगवान् अपने लिये कुछ स्वीकार नही करते। उनकी दृष्टि में अवर्णनीय कोमलता है । उनके हृदय में न केवल भक्तों के तात्कालिक कष्टों के प्रति अपितु समस्त ससार के प्रति सहानुभूति है । परन्तु इस कोमलता के वावजूद उनके चेहरे की रेखाओं से उस व्यक्ति की कठोरता द्योतित होती है जिसने हमेशा विजयश्री प्राप्त की है और कभी समझौता नही किया । उनकी यह कठोरता प्राय सफेद वालो मे छिप जाती है, क्योकि सन्यासी हर पूणमासी को चेहरे और सिर की हजामत करवाते हैं । बहुत से भक्त उनकी हजामत को पसन्द नही करते क्योकि चेहरे और सिर पर सफेद बालो की वृद्धि से भगवान् की कोमलता और आकषण में वहुत अधिक वृद्धि होती है, परन्तु कोई श्रीभगवान् से इसका जिक्र नहीं करता ।
उनका चेहरा, जल के सदृश है, सदा परिवर्तनशील परन्तु सदा एक रस | यह वडे आश्चय का विषय है कि किस प्रकार शीघ्रता से श्रीभगवान् में कोमलता के स्थान पर चट्टान की सी दृढ़ता और हँसी के स्थान पर करुणा के भाव का आविर्भाव हो जाता है । कोमलता और कठोरता का प्रत्येक पक्ष इतना पूर्ण होता है कि व्यक्ति को ऐसा अनुभव होता है कि यह एक व्यक्ति का नही बल्कि समस्त मानव जाति का चेहरा है। तकनीकी दृष्टि से श्रीभगवान् भले ही सुन्दर प्रतीत न हो क्योकि उनकी मुखाकृति सुष नही है परन्तु सर्वाधिक सुन्दर चेहरा भी उनके सामने फीका पड जाता है। उनके चेहरे मे ऐसी वास्तविकता है कि इसकी छाप स्मृति पटल पर गहरी पडती है जब कि अन्य स्मृतियाँ धुंधली पड जाती हैं। जिन लोगो ने उन्हें केवल घोडी देर के लिए या केवल फोटो में देखा है, उनके मनश्चक्षुओं के आगे भी उन व्यक्तियो की अपेक्षा जिन्हें वह अच्छी तरह जानते हैं, श्रीभगवान् का चित्र अधिक स्वप्टता से उमर कर जाता है। वस्तुत इसका कारण यह हो सकता है कि उनके मुखमण्डल पर प्रेम, कृपालुता, प्रज्ञा, सद्भावना और बाल-सुलभ सरलता