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रमण महर्षि
बहुत बढिया कशीदाकारी का काम किया हुआ होता है । यह चादरे भक्तो से मेंट में मिली होती हैं। सभी चादरें अत्यन्त स्वच्छ होती है और उन्हे बडी सावधानी से बिछाया जाता है क्योकि सेवक जानते हैं कि उनकी दृष्टि वडी तीक्ष्ण है और वह हर चीज़ को वडी बारीकी से देखते है, चाहे वह इसके सम्बन्ध मे कुछ कहे या न कहे ।
आठ बजे तक श्रीभगवान् सभा-भवन मे वापस आ जाते हैं और भक्तो का आना शुरू हो जाता है । नौ बजे तक सभा-भवन भर जाता है। अगर आप नवागन्तुक हैं, आप सम्भवत अनुभव करते हैं कि सभा-भवन जाना पहचाना है । आप स्वय को श्रीभगवान् के अत्यन्त निकट अनुभव करते हैं। सभा-भवन का सम्पूर्ण क्षेत्र ४० फुट X १५ फुट है । यह पूर्व और पश्चिम में फैला हुआ है, लम्बाई की ओर हर तरफ दरवाजा है । उत्तर की ओर का दरवाजा जिस तरफ पहाडी है, वृक्षाच्छादित वर्गाकार स्थान की ओर खुलता है, जिसके पूर्व की ओर भोजन-कक्ष है और जिसके पश्चिम की ओर वाटिका तथा डिसपेंसरी हैं । दक्षिण की ओर के दरवाजे से मन्दिर को जाते हैं और इससे परे सडक है, जिस तरफ से भक्त जन आते हैं । तख्त सभा-भवन के पूर्वोत्तर मे है । इसके पास एक घूमने वाली पुस्तको की अलमारी है, जिसमे वह पुस्तकें हैं जिनकी अक्सर मांग रहती है और इस पर एक घडी रखी है, दूसरी घडी तख्त के पास दीवार पर टंगी है, दोनो घडियो विलकुल ठीक समय देती हैं।
अगर निर्देश के लिए किसी पुस्तक की आवश्यकता होती है तो श्रीभगवान् को तुरन्त पता चल जाता है कि यह कौन से खाने मे है । उन्हे प्राय निर्देशित परे का पृष्ठ भी ज्ञात होता है । दक्षिणी दीवार के सहारे वडी-बड़ी पुस्तकें रखने की शीशे की अलमारियां हैं ।
अधिकाश भक्त श्रीभगवान् की ओर अर्थात् पूर्व की ओर मुंह करके सभा-भवन के बीच में बैठते हैं। सभा-भवन के उत्तरी आधे भाग मे महिलाएं उनके सामने बैठती हैं, पुरुप उनके वाई ओर बैठते हैं। कुछ थोडे से पुरुप तख्त के निकट बैठते हैं, उनकी पीठ दक्षिणी दीवार की ओर होती है और वह दूसरो को अपेक्षा श्रीभगवान् के अधिक निकट होते हैं। कुछ वर्ष पूर्व महिलाओ को यह विशेषाधिकार प्राप्त था, फिर किसी कारणवश स्थान-परिवर्तन कर दिया गया । हिन्दू-परम्परा के अनुसार पुरुपो और महिलाओ को पृथक्-पृथक् वैठना चाहिए । श्रीभगवान् इसे स्वीकार करते हैं, क्योकि उनका विचार है कि म्मीपुरुपो के पारस्परिक आकर्पण से महान् आध्यात्मिक आकर्पण विक्षुब्ध हो सकता है। सभा-भवन को छोड कर अन्यत्र स्त्री-पुरुप एक दूसरे मे स्वतन्त्रतापूर्वक मिल सकते हैं।