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भूमिका
जीवन मे अधकार छा रहा था। उन दिनो मे उदासी, निराशा और वेचैनी हावी हो रही थी। इन क्षणो मे प्रेक्षा ध्यान एवं नमस्कार महामत्र की साधना का सयोग हुआ। जीवन मे प्रकाश ही प्रकाश हो गया। अधकार छट गया। राह स्पष्ट हुई। जीवन की दिशा और दशा वदल गई। प्रेक्षा ध्यान साधना मेरा जीवन बन गया। _जैन आगमो मे ध्यान, आसन आदि की विपुल सामग्री है। दीर्घकाल से इच्छा थी कि "प्रेक्षा ध्यान" के सदर्भ मे "शास्त्रीय आधार" को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाये। आचार्यश्री महाप्रज्ञ के ध्यान साहित्य से प्रचुर सकेत एव आलेख प्राप्त हुए। उन्ही सोपानो से चढ़कर "शास्त्रीय आधार" को किचित व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उस सिन्धु-सम सामग्री का यहा विन्दु मात्र ही स्पर्श हो सका है। आशा है विद्वद् जन एव शोधार्थी हेतु अतीत के अनुसधान व भविष्य के निर्माण मे यह "लघु प्रयास" दिशा-सूचक यत्र का कार्य कर सकेगा।
प्रेक्षा ध्यान के सिद्धान्तो पर मुख्य रूप से पाच दृष्टियो से विचार किया जाता है—प्रयोजन, आध्यात्मिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, प्रक्रिया एव परिणाम । इन्ही पाच पक्षो मे से चार पर (वैज्ञानिक दृष्टिकोण को छोडकर) शास्त्रीय आधार को व्यवस्थित रूप दिया गया है। __इस कार्य मे पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ, महाश्रमण श्री मुदित कुमार जी का सबल सदैव साथ रहा। मुनिश्री दुलहराजजी एव मुनिश्री राजेन्द्र जी का सान्निध्य एव सहयोग इस कार्य की गति-प्रगति का निमित्त वना। प्रत्यक्ष एव परोक्ष मे अनेक सहभागी बने है, उन सभी के प्रति विनम्र आभार।
मुनि धर्मेश