________________
'यद्यपि मेरा विश्वास है कि पश्चिम को जो रास्ता उसने दिखाया, उचित ढंग से विचार करना सीखना अपने आपको माया से मुक्त करने की संभावना है।'
नहीं, पूरब के लिए या पश्चिम के लिए उपाय यही है : किस भांति विचार करने को अनसीखा किया जाए; किस भांति विचार न किया जाए-बस हुआ जाए। और पूरब के बजाय पश्चिम को इसकी अधिक आवश्यकता है, क्योंकि अरस्तु के बाद की दो सहस्राब्दियों से पश्चिम में तुम्हारी सीख सोचने, सोचने और सोचने की ही रही है। सोचना ही लक्ष्य रहा – है। पश्चिम में विचारक मन लक्ष्य रहा है; किस प्रकार से अपनी विचार–प्रक्रिया में और अधिक ठीक और वैज्ञानिक हआ जाए। विज्ञान का पूरा का पूरा संसार इसी प्रयास से उठ कर खड़ा हुआ है, क्योंकि जब तुम एक वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर रहे हो तो तुमको सोचना पड़ता है। वस्तुगत संसार में तुमको कार्य करना पड़ता है और तुमको विचार करने के और उचित, ठीक और प्रमाणिक उपायों की खोज करनी पड़ती है। और इसने अत्यधिक लाभांवित किया है। विज्ञान एक बड़ी सफलता बन चुका है। इसलिए निःसंदेह लोग सोचते हैं कि जब तुम भीतर जाते हो तब वही विधि-विज्ञान सहायक होगा। रूडोल्फ स्टीनर की भ्रांति यही
वह सोचता है कि जिस प्रकार से हम पदार्थ के 'भीतर प्रवेश करने में सफल हो चुके हैं, वही उपाय भीतर प्रवेश जाने में सहायता करेगा। यह उपाय सहायता नहीं कर सकता, क्योंकि भीतर जाने के लिए व्यक्ति को विपरीत दिशा, ठीक उलटी दिशा में जाना पड़ता है। यदि विचार करना पदार्थ को जानने में सहायता करता है, तो निर्विचार रहना तुम्हारी स्वयं को जानने में सहायता करेगा। यदि तर्क पदार्थ को जानने में सहायता करता है, तो झेन कोऑन जैसा कछ, कछ असंगत, अतयं तमको अंदर जाने में सहायता करेगा; भीतर जाने के लिए, विश्वास, श्रद्धा, प्रेम तो कम पड़ सकते हैं, किंतु तर्क कभी काम न आएगा। संसार को बेहतर ढंग से जानने में जिस किसी साधन से तुमको सहायता मिली है, वह भीतर की ओर जाने में अवरोध होने जा रहा है। और यही बाहर के संसार के बारे में भी सत्य है; जो कुछ भी तुमको अपने आपको जानने में सहायता करता है, वह पदार्थ को जान लेने में अनिवार्यत: तुम्हारी सहायता नहीं करेगा। यही कारण है कि पूरब विज्ञान को विकसित नहीं कर सका।
विज्ञान की पहली झलकियां पूरब में ही आई थीं, परंतु पूरब इसे विकसित नहीं कर सका। उस दिशा में पूरब गया ही नहीं। प्रारंभिक मूलभूत जानकारी पूरब में विकसित हुई थी।
उदाहरण के लिए, गणितीय प्रतीक, एक से दस तक के अंक भारत में विकसित | उन्होंने गणित को संभव बनाया। यह एक महान खोज थी, किंतु यह वहीं रुक गई। आरंभ तो हो गया, लेकिन पूरब उस दिशा में बहुत दूर नहीं जा सका। उसके कारण विश्व की सभी भाषाओं में अंक गणितीय संख्याओं के नाम का मूल संस्कृत से आया है।