________________ अहंकार भिन्न होना चाहता है; और इसीलिए अहंकार झूठा है, क्योंकि भिन्नता झूठी है। साथ-साथ होना सच्चाई है। प्रत्येक विभाजन झूठा और भ्रम है, और मिल-जुल कर रहना सदैव सच्चा और वास्तविक है। पांचवा प्रश्न: प्रवचन के दौरान आप 'प्रसन्नता प्राप्त करना' वाक्यांश का प्रयोग करते है, और मेरा मन बीच में कुद पड़ता है, और अधिक कार्य करो, और कठोर श्रम करो। किंतु मैं समर्पण के लिए किस भांति कार्य कर सकती हूं? वह दीवानापन लगता है। यह प्रश्न अमिदा ने पूछा है। उसके पास एक बहुत बड़ा कार्य-उन्मुख मन है। कार्य मूल्यवान है, खेल मूल्यहीन है; और जो कुछ भी उपलब्ध किया जाना है उसे कार्य के माध्यम से ही उपलब्ध करना पड़ता है। उसके मन में यह स्थायी आदत बन चुकी है। किंतु प्रत्येक व्यक्ति को यही सिखाया गया है। सारा संसार कार्य के इसी नीतिशास्त्र के अनुसार जीया करता है। खेल को तो अधिक से. अधिक बस सह लिया जाता है। कार्य की प्रशंसा की जाती है। इसलिए यहां भी जब मैं समर्पण के बारे में बात कर रहा हं जब मैं ग्रहणशील और स्त्रैण होने की बात कर रहा हं तम्हारा कार्य-उन्मख मन बार-बार उठ खड़ा होता। जब कभी इसे थोड़ी सी भी सहायता मिलती है यह तुरंत उठ खड़ा होता है और कहता है, ही। इस शब्द 'उपलब्धि' ने तुम्हारे भीतर विचारों की श्रृंखला आरंभ कर दी : उपलब्धि? –कार्य, कठोर श्रम करना पड़ेगा। बस एक शब्द ने विचारों की श्रृंखला को उद्दीप्त कर दिया, जैसे कि मन बस निरीक्षण कर रहा था और किसी ऐसी बात की प्रतीक्षा में था जिस पर कूदने से इस को सातत्य मिल सके। इसी प्रकार से तुम मुझको सुनते हो। मुझे शब्दों का उपयोग करना पड़ता है, शब्द जो तुम्हारे अर्थों से भरे हुए हैं, वे शब्द जिनको तुमने विभिन्न ढंगों से समझ रखा है, वे शब्द जिनके तुम्हारे साथ विभिन्न साहचर्य हैं, संबंध हैं, जिनके तुम्हारे लिए अर्थ भिन्न हैं। मुझको भाषा का उपयोग करना पड़ता है, और भाषा बहुत खतरनाक चीज है। बस उपलब्धि शब्द को सुन कर ही पूरा कार्य-उन्मुख मन सक्रिय हो जाता है। तब तुम मुझे नहीं सुनते, वह नहीं सुनते जो मैं कह रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि उपलब्धि केवल तभी संभव है जब तुम उपलब्धि का प्रयास नहीं करते हो। उपलब्धि केवल तभी