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________________ हो जाती है! जब तुम ऐसे लोगों के साथ उठते-बैठते हो जो उदास हैं, तो अचानक तुम्हारी ऊर्जा मंद हो जाती है। फिर यह गणित आसान है। यदि तुम प्रसन्न होना चाहते हो, लोगों को प्रसन्न करो। यदि तुम वास्तव में ज्ञानोपलब्ध होना चाहते हो, तो लोगों की ज्ञानोपलब्ध होने में सहायता करो। यदि तुम ध्यानपूर्ण होना चाहते हो, तो एक ध्यानमय संसार का सृजन करो। यही कारण है कि बुद्ध ने संन्यासियों का विराट संघ, एक महासागर जैसा वातावरण, जहां लोग आकर स्वयं को डुबा सकें, निर्मित किया। अभी उस रात्रि. को एक संन्यासी मेरे पास आया और वह बोला, मैं संन्यास के साथ बहुत असहज अनुभव कद रहा हूं क्योंकि मुझको लगता है कि मैं बस किसी झुंड का एक भाग बन गया हूं। अब हंपूर्ण दृष्टिकोण है। बस भीड़ का एक भाग? हर व्यक्ति अलग होना चाहता है, हर व्यक्ति स्व-निर्भर, स्वयं वही, एक शिखर की भांति अकेला, असंबंधित होना चाहता है। यही तो है अहंकार की दौड। मैं तुम्हें गैरिक वस्त्र देता हूं तुम्हारे नाम परिवर्तित कर देता हूं और धीरे-धीरे तुम एक सागर में खो जाते हो जहां तुम्हारा अलग से कोई अस्तित्व नहीं रहता। तुम स्वयं को दूसरों के साथ विलीन करना आरंभ कर देते हो। निःसंदेह अहंकार आहत, असहज, असुविधापूर्ण अनुभव करेगा। लेकिन तुम्हारा रोग अहंकार है; इसे छोड देना पड़ेगा। और व्यक्ति को अन-अस्तित्व में: होने का, इतना सामान्य, इतना घुला-मिला होने का, आनंद लेने में समर्थ होना चाहिए कि आने वाला कोई भी व्यक्ति यह न जान पाए कि तुम दूसरों से अलग हो, भिन्न हो। किंतु अहंकार के पास बस एक ही विचार होता है. किस भांति भिन्न और अलग हुआ जाए। मैंने उस संन्यासी से कहा नहीं। मैं उससे कहना तो चाहता था, परंतु मैंने सोचा कि शायद यह बात उसे बुरी लगे। ऐसा अहंकारी जो सोचता है कि बस गैरिक में होना बहुत असहज लगता है, वह किसी झुंड का हिस्सा हो गया है। मैं उससे कहना चाहता था कि बेहतर यही रहेगा कि तुम अपनी आधी मूंछ, आधी दाढ़ी और सिर के आधे बाल साफ करा लो, जिससे तुम जहां कहीं भी जाओ तुम अलग रहोगे। और अपने मस्तक पर गोदने गुदवा लो, और ऐसे कार्य करो जो कोई नहीं कर रहा है। तुम सदैव अच्छा पूर्ण अनुभव करोगे। अहंकार वही कर रहा है। मैंने एक व्यक्ति के बारे में सुना है जो बहुत प्रसिद्ध होना चाहता था, जो समाचार पत्रों में अपनी तस्वीरें देखना चाहता था। उसने अपने सिर के आधे भाग के बालों, आधी मूंछे, आधी दाढ़ी साफ कर डाली, और वह नगर में पैदल घूमने लगा। तीन दिन के भीतर वह नगर का सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति हो गया। सभी समाचार पत्रों ने उसकी तस्वीरें प्रकाशित कर दी, और उसके चारों ओर बच्चे शोर मचाते और चिल्लाते हुए दौड़ने लगे, और उसने इस सबका बहुत मजा लिया। तुम भी उसी ढंग से वही कर सकते हो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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