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प्रवचन 81 - पंचभूतों पर आधिपत्य
योग-सूत्र:
(विभुतिपाद)
बहिरकल्पिता वृत्तिर्महाविदेहा तत: प्रकाशावरणक्षय://44//
चेतना के आयाम को संस्पर्शित करने की शक्ति मनस शरीर के परे है, अत: अकल्पनीय है, महाविदेह कहलाती है.।...इस शक्ति के द्वारा प्रकाश पर छाया हुआ आवरण हट जाता है।
स्थूल स्वरूपस्वान्वयार्थवत्वसंयमाक्सजयः।। 45 ।।
उनके स्थूल, सतत, सूक्ष्म, सर्वव्यापी और क्रियाशील स्वरूप पर संपन्न हुआ संयम, पंचभूतों, पाँच तत्वों पर आधिपत्य ले आता है।
ततोउणिमादिप्रादुर्भाव: कायसंपत्तदधर्मानाभिधातश्च।। 46।।
इसके उपरांत अणिमा आदि, देह की संपूर्णता और देह को बाधित करने वाले तत्वों के निर्मलन की उपलब्धि प्राप्त होती है।
रूपालावण्यवलवज्रसंहननत्वानि कायसंपत।। 47।।
सौंदर्य, लावण्य, शक्ति और वज्र सी कठोरता, ये सभी मिल कर संपूर्ण देह का निर्माण करती है।